क्या आप जानते हैं जब 2000 भारतीय सैनिको की हत्या कांग्रेस के नोबल के कीड़े ने कर दी??आप सभी ने सुना होगा की राजीव गांधी की हत्या लिट्टे के उग्रवादियों ने कर दी थी..मगर मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या तरह ये कम ही लोग जान पाये की राजीव गांधी की हत्या क्यों की गयी?? श्रीलंका में लिट्टे
दो दिन पहले एक कांग्रेसी नेता मनीष तिवारी ने "नोबल का मच्छर" नरेंद्र मोदी की पाक यात्रा के लिए उपयोग किया तो राजीव गांधी जी याद आ गए..
अंग्रेजो के जमाने में तमिलो की एक बडी सख्या श्रीलंका(सीलोन) के चायबगानो में नौकरों के रूप में कार्यकरने ले जाई गयी जो कालान्तर में वहीँ बस गयी. वहां का सबसे बड़ी जनसंख्या वाला समुदाय सिंहली था। 1948 में स्वतंत्रता के बाद श्रीलंका में तमिलो को नागरिकता के अधिकार से वंचित कर दिया गया क्योंकि वो भारत से आ के बसे थे. बाद में बने कानूनों के अनुसार भारतीय मूल के तमिल श्रीलंका में जहां वो सदियो पहले आ के बस गए थे दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में थे जैसे वर्तमान में पाकिस्तानी हिंदुओं का हाल है..विरोध हुआ.अत्याचार हुआ.. तमिलो के विरोध में दंगे हुए हजारो तमिल मारे गए..और तमिलो की पार्टी पर प्रतिबन्ध लगा के तमिलों के गृहभूमि पूर्वी प्रान्त में सिंहलियों को बसा दिया गया..श्रीलंका के तमिलो पर भारत आने या आके पढाई करने पर प्रतिबन्ध लगाया गया..भारत के अखबार, पत्रिकाएंश्रीलंका में प्रतिबंधित कर दिए गए..तमिलो को स्कूलों कॉलेजों में दाखिल नहीं मिलता था. तमिलों की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले जाफना में तमिल प्रतीकों पुस्तकालयों को आग लगा दी गयी..
परिणामस्वरूप अपने ही देश में दोयम दर्जे के नागरिक हो चुके तमिलो ने छोटे छोटे समूहों में सशत्र विद्रोह कर दिया. उसके बाद पुरे देश में तमिल विरोधी भावनाएं बढ़ गयी और सडको पर तमिलों का कत्लेआम और नरसंहार होने लगा..सरकार और तमिलो दोनों का खून बहा और कालान्तर में पीड़ित शोषित तमिल समुदाय को "वेलुपिल्लई प्रभाकरण" नाम के विद्रोही नेता नेें सभी तमिल विद्रोही समूहों को एक बैनर के नीचे ला के "LTTE"(Liberation Tigers of Tamil Eelam) बना के अलग तमिल इलम की मांग करते हुए युद्ध शुरू कर दिया और श्रीलंका के कई क्षेत्रों में कब्ज़ा कर लिया..उनकी अपनी सेना..अपने हथियार..अपने विमान सब थे..
चूकी श्रीलंका सरकार श्रीलंका के तमिलों के नरसंहार और दमन पर लगी थी इसलिए श्रीलंका से सटे भारत में बसे तमिल इसका विरोध करने लगे..तात्कालिक राजीव गांधी कांग्रेस सरकार ने मौके की नजाकत भांपते हुए लिट्टे और प्रभाकरण का परोक्ष समर्थन कर दिया जिससे की तमिलनाडु में कांग्रेस का वोट बैंक मजबूत हो जाये.भारतीय सेना ने तमिलनाडु के जंगलों में बकायदा ट्रेनिंग कैम्प लगा के प्रभाकरण और लिट्टे के लड़ाकों को
सैनिक ट्रेनिंग,हथियार और पैसे उपलब्ध कराये..इससे तमिलनाडु में लिट्टे की जड़ और मजबूत ही गयी..लिट्टे का प्रमुख प्रभाकरण नई दिल्ली में राजीव गांधी का ख़ास मेहमान हुआ करता था जिसकी कांग्रेस सरकार राजकीय मेहमान की तरह आवभगत करती थी..अब श्रीलंका सरकार भी चाहती थी की लिट्टे के बढ़ते प्रभाव के कारण श्रीलंका टूट सकता है अतः कोई समझौता किया जाये इसमें भारत प्रमुख भूमिका अदा करता..
इसी समय सन 1987 में भारत के #कांग्रेसी #प्रधानमंत्री #राजीव_गांधी को #नोबल_के_मच्छर ने काट खाया और #शांति_के_नोबल पाने के चक्कर में राजीव गांधी ने #ऐतिहासिक_भूल करते हुए श्रीलंका सरकार और अन्य छोटे छोटे श्रीलंकाई तमिल समूहों के साथ समझौता कर डाला और भारत की सेना को शांति स्थापित करने के लिए श्रीलंका भेज दिया..सबसे आश्चर्यजनक ये था की सबसे बड़े LTTE समूह, जिसके स्वयं के सेना से लेकर हवाईजहाज तक थे,जिसे भारतीय सेना से ट्रेनिंग और हथियार मिले,जिसे राजीव गांधी सरकार ने पैसे दिए,और जिसका प्रमुख प्रभाकरण भारतीय सरकार का राजकीय मेहमान था उसे इसे समझौते से अलग और किनारे रक्खा गया.. मतलब जो समझौता हुआ वो सिर्फ नाम का हुआ और जो शांति के नाम पर भारत की सेना वहां भेजी गयी थी उसका असली काम वहां जा कर श्रीलंका के अनजान अपरिचित जंगलों में लिट्टे और प्रभाकरण के उन सैनिको से युद्ध करना था जिन्हें ट्रेनिंग भी उन्होंने ही दी थी,जिनके वास हथियार भी भारतीय सेना के थे जिनके पास स्ट्रेटेजी भी भारतीय सेना की थी...
अब श्रीलंका में भारतीय सेना को उनके द्वारा ट्रैंड लड़ाके,उनके द्वारा ही दिए हथियार से अपने जंगलो में चुन चुन कर मार रहे थे और #राजीव #गांधी जी नोबल शांति पुरस्कार की प्रतीक्षा में लगे रहे..
उस समय सेना में एक बात प्रचलित थी की इन्डियन एयर फ़ोर्स या एयर इण्डिया के जिस विमान से लिट्टे और प्रभाकरण से लड़ने के लिए भारतीय सैनिक और हथियार भेजे जाते थे उसी विमान से LTTE और प्रभाकरण के लिए भी हथियारों का बक्सा भेजा जाता था.
2000 से ज्यादा भारतीय सैनिक राजीव गांधी के असफल नोबल पुरस्कार अभियान में मारे गए।।अंततः रोज सैनिको की मौत के कारण सेना और जनता के दबाव में श्रीलंका से भारतीय सेना 1990 में वापस बुला ली गयी...सरकारी आकड़ो में 1255 सैनिको की मौत दर्ज की गई..लिट्टे का भी नुक्सान हुआ और श्रीलंका इस कूटनीतिक नोबल कामयाबी पर प्रसन्न था..21 मई 1991 को श्रीपेरुंबुदुरकी रैली में धनु नामक लिट्टे की एक आत्मघाती हमलावर ने राजीव गांधी की हत्या कर दी और नोबल के इस मच्छर ने एक प्रधानमंत्री को मार डाला...
इसके बाद प्रभाकरण और श्रीलंका सेना में युद्ध चलता रहा.. सन 2009 में अप्रैल के महीने में एल टापू पर लिट्टे प्रमुख वेलुपिल्लई प्रभाकरण को घेर लिया गया।उसी समय भारत में लोकसकभा चुनाव हो रहे थे। प्रतीक्षा इस बात की थी की यदि राष्ट्रवादी भाजपा की सरकार बनती है तो प्रभाकरण को राजनैतिक अपराधी माना जायेगा और कांग्रेस की सरकार बनी तो गांधी परिवार के दुश्मन को सजा दी जायेगी..16 मई 2009 को भारत में चुनाव परिणाम घोषित हुए..भाजपा चुनाव हार गयी..कांग्रेस की सत्ता वापस आई. नतीजे आने के 24 घंटे के अंदर कांग्रेस और भारतीय सरकार की हरी झंडी मिलते ही 17 मई 2009 को भारतीय तमिलो के अधिकारो के लिए आजीवन लड़ने वाले "वेणुपिल्लई प्रभाकरण" के सर में गोली मार कर उसकी हत्या कर दी गयी...
प्रभाकरण के मरने के बाद भारतीय तमिलो पर जो अत्याचार शुरू हुआ उसे मानवता के सबसे बड़े अत्याचारों में एक माना जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी कई बार इसपर हस्तक्षेप किया..मगर नरसंहार और तमिलो का दमन जारी रहा....
यदि एक #शांति_के_नोबल वाले मच्छर ने राजीव गांधी को नहीं काटा होता तो आज श्रीलंका ने जो चीन को हम्बनटोटा बंदरगाह देकर हमे घेरने में सहायता की है वो नहीं होता..शायद 2 हजार से ज्यादा भारतीय सैनिक नहीं मरते..उनके बच्चे अनाथ नहीं होते..उनकी स्त्रियां विधवा नहीं होती... शायद एक स्वतंत्र तमिल ईलम प्रभाकरण के नेतृत्व में भारत का मित्र राष्ट्र होता..शायद राजीव जिन्दा होते.. शायद लाखो तमिलों की बर्बर हत्या नहीं हुई रहती......
आशुतोष की कलम से
(Ashutosh Ki Kalam se ) https://www.facebook.com/ashutoshkikalam
tweet @ashu2aug
दो दिन पहले एक कांग्रेसी नेता मनीष तिवारी ने "नोबल का मच्छर" नरेंद्र मोदी की पाक यात्रा के लिए उपयोग किया तो राजीव गांधी जी याद आ गए..
अंग्रेजो के जमाने में तमिलो की एक बडी सख्या श्रीलंका(सीलोन) के चायबगानो में नौकरों के रूप में कार्यकरने ले जाई गयी जो कालान्तर में वहीँ बस गयी. वहां का सबसे बड़ी जनसंख्या वाला समुदाय सिंहली था। 1948 में स्वतंत्रता के बाद श्रीलंका में तमिलो को नागरिकता के अधिकार से वंचित कर दिया गया क्योंकि वो भारत से आ के बसे थे. बाद में बने कानूनों के अनुसार भारतीय मूल के तमिल श्रीलंका में जहां वो सदियो पहले आ के बस गए थे दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में थे जैसे वर्तमान में पाकिस्तानी हिंदुओं का हाल है..विरोध हुआ.अत्याचार हुआ.. तमिलो के विरोध में दंगे हुए हजारो तमिल मारे गए..और तमिलो की पार्टी पर प्रतिबन्ध लगा के तमिलों के गृहभूमि पूर्वी प्रान्त में सिंहलियों को बसा दिया गया..श्रीलंका के तमिलो पर भारत आने या आके पढाई करने पर प्रतिबन्ध लगाया गया..भारत के अखबार, पत्रिकाएंश्रीलंका में प्रतिबंधित कर दिए गए..तमिलो को स्कूलों कॉलेजों में दाखिल नहीं मिलता था. तमिलों की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले जाफना में तमिल प्रतीकों पुस्तकालयों को आग लगा दी गयी..
परिणामस्वरूप अपने ही देश में दोयम दर्जे के नागरिक हो चुके तमिलो ने छोटे छोटे समूहों में सशत्र विद्रोह कर दिया. उसके बाद पुरे देश में तमिल विरोधी भावनाएं बढ़ गयी और सडको पर तमिलों का कत्लेआम और नरसंहार होने लगा..सरकार और तमिलो दोनों का खून बहा और कालान्तर में पीड़ित शोषित तमिल समुदाय को "वेलुपिल्लई प्रभाकरण" नाम के विद्रोही नेता नेें सभी तमिल विद्रोही समूहों को एक बैनर के नीचे ला के "LTTE"(Liberation Tigers of Tamil Eelam) बना के अलग तमिल इलम की मांग करते हुए युद्ध शुरू कर दिया और श्रीलंका के कई क्षेत्रों में कब्ज़ा कर लिया..उनकी अपनी सेना..अपने हथियार..अपने विमान सब थे..
चूकी श्रीलंका सरकार श्रीलंका के तमिलों के नरसंहार और दमन पर लगी थी इसलिए श्रीलंका से सटे भारत में बसे तमिल इसका विरोध करने लगे..तात्कालिक राजीव गांधी कांग्रेस सरकार ने मौके की नजाकत भांपते हुए लिट्टे और प्रभाकरण का परोक्ष समर्थन कर दिया जिससे की तमिलनाडु में कांग्रेस का वोट बैंक मजबूत हो जाये.भारतीय सेना ने तमिलनाडु के जंगलों में बकायदा ट्रेनिंग कैम्प लगा के प्रभाकरण और लिट्टे के लड़ाकों को
सैनिक ट्रेनिंग,हथियार और पैसे उपलब्ध कराये..इससे तमिलनाडु में लिट्टे की जड़ और मजबूत ही गयी..लिट्टे का प्रमुख प्रभाकरण नई दिल्ली में राजीव गांधी का ख़ास मेहमान हुआ करता था जिसकी कांग्रेस सरकार राजकीय मेहमान की तरह आवभगत करती थी..अब श्रीलंका सरकार भी चाहती थी की लिट्टे के बढ़ते प्रभाव के कारण श्रीलंका टूट सकता है अतः कोई समझौता किया जाये इसमें भारत प्रमुख भूमिका अदा करता..
इसी समय सन 1987 में भारत के #कांग्रेसी #प्रधानमंत्री #राजीव_गांधी को #नोबल_के_मच्छर ने काट खाया और #शांति_के_नोबल पाने के चक्कर में राजीव गांधी ने #ऐतिहासिक_भूल करते हुए श्रीलंका सरकार और अन्य छोटे छोटे श्रीलंकाई तमिल समूहों के साथ समझौता कर डाला और भारत की सेना को शांति स्थापित करने के लिए श्रीलंका भेज दिया..सबसे आश्चर्यजनक ये था की सबसे बड़े LTTE समूह, जिसके स्वयं के सेना से लेकर हवाईजहाज तक थे,जिसे भारतीय सेना से ट्रेनिंग और हथियार मिले,जिसे राजीव गांधी सरकार ने पैसे दिए,और जिसका प्रमुख प्रभाकरण भारतीय सरकार का राजकीय मेहमान था उसे इसे समझौते से अलग और किनारे रक्खा गया.. मतलब जो समझौता हुआ वो सिर्फ नाम का हुआ और जो शांति के नाम पर भारत की सेना वहां भेजी गयी थी उसका असली काम वहां जा कर श्रीलंका के अनजान अपरिचित जंगलों में लिट्टे और प्रभाकरण के उन सैनिको से युद्ध करना था जिन्हें ट्रेनिंग भी उन्होंने ही दी थी,जिनके वास हथियार भी भारतीय सेना के थे जिनके पास स्ट्रेटेजी भी भारतीय सेना की थी...
अब श्रीलंका में भारतीय सेना को उनके द्वारा ट्रैंड लड़ाके,उनके द्वारा ही दिए हथियार से अपने जंगलो में चुन चुन कर मार रहे थे और #राजीव #गांधी जी नोबल शांति पुरस्कार की प्रतीक्षा में लगे रहे..
उस समय सेना में एक बात प्रचलित थी की इन्डियन एयर फ़ोर्स या एयर इण्डिया के जिस विमान से लिट्टे और प्रभाकरण से लड़ने के लिए भारतीय सैनिक और हथियार भेजे जाते थे उसी विमान से LTTE और प्रभाकरण के लिए भी हथियारों का बक्सा भेजा जाता था.
2000 से ज्यादा भारतीय सैनिक राजीव गांधी के असफल नोबल पुरस्कार अभियान में मारे गए।।अंततः रोज सैनिको की मौत के कारण सेना और जनता के दबाव में श्रीलंका से भारतीय सेना 1990 में वापस बुला ली गयी...सरकारी आकड़ो में 1255 सैनिको की मौत दर्ज की गई..लिट्टे का भी नुक्सान हुआ और श्रीलंका इस कूटनीतिक नोबल कामयाबी पर प्रसन्न था..21 मई 1991 को श्रीपेरुंबुदुरकी रैली में धनु नामक लिट्टे की एक आत्मघाती हमलावर ने राजीव गांधी की हत्या कर दी और नोबल के इस मच्छर ने एक प्रधानमंत्री को मार डाला...
इसके बाद प्रभाकरण और श्रीलंका सेना में युद्ध चलता रहा.. सन 2009 में अप्रैल के महीने में एल टापू पर लिट्टे प्रमुख वेलुपिल्लई प्रभाकरण को घेर लिया गया।उसी समय भारत में लोकसकभा चुनाव हो रहे थे। प्रतीक्षा इस बात की थी की यदि राष्ट्रवादी भाजपा की सरकार बनती है तो प्रभाकरण को राजनैतिक अपराधी माना जायेगा और कांग्रेस की सरकार बनी तो गांधी परिवार के दुश्मन को सजा दी जायेगी..16 मई 2009 को भारत में चुनाव परिणाम घोषित हुए..भाजपा चुनाव हार गयी..कांग्रेस की सत्ता वापस आई. नतीजे आने के 24 घंटे के अंदर कांग्रेस और भारतीय सरकार की हरी झंडी मिलते ही 17 मई 2009 को भारतीय तमिलो के अधिकारो के लिए आजीवन लड़ने वाले "वेणुपिल्लई प्रभाकरण" के सर में गोली मार कर उसकी हत्या कर दी गयी...
प्रभाकरण के मरने के बाद भारतीय तमिलो पर जो अत्याचार शुरू हुआ उसे मानवता के सबसे बड़े अत्याचारों में एक माना जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी कई बार इसपर हस्तक्षेप किया..मगर नरसंहार और तमिलो का दमन जारी रहा....
यदि एक #शांति_के_नोबल वाले मच्छर ने राजीव गांधी को नहीं काटा होता तो आज श्रीलंका ने जो चीन को हम्बनटोटा बंदरगाह देकर हमे घेरने में सहायता की है वो नहीं होता..शायद 2 हजार से ज्यादा भारतीय सैनिक नहीं मरते..उनके बच्चे अनाथ नहीं होते..उनकी स्त्रियां विधवा नहीं होती... शायद एक स्वतंत्र तमिल ईलम प्रभाकरण के नेतृत्व में भारत का मित्र राष्ट्र होता..शायद राजीव जिन्दा होते.. शायद लाखो तमिलों की बर्बर हत्या नहीं हुई रहती......
आशुतोष की कलम से
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