प्राचीन काल से ही गाय हमारे जीवन यापन का महत्वपूर्ण साधन रही है। धार्मिक दृष्टि से यह पूजनीय तो रही ही है, सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से गाय भारतीय जीवन प्रणाली की रीढ़ की हड्डी रही है। किन्तु अगर हम निरन्तर इस देश पर हुए आक्रमणों के बाद उत्पन्न स्थिति पर नजर डालें तो हमारी पूजनीय और जीवनदायिनी गाय को विदेशी आक्रन्ताओं व मतों (भारत के बाहरी मत पंथ) को मानने वालों नें गाय को दयनीय स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। वर्तमान आजाद भारत में हम भारतीय इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। खासकर आजादी के बाद बनी सरकारें इस दृष्टि से भारतीय जीवन शैली हिन्दूधर्म की प्रतीक गाय को निम्नतम स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया है।
आजादी के बाद से निरन्तर चलने वाली एकपरिवारीय सरकार (कुछ अपवाद स्वरुप वर्षों को छोड़कर) जो अपने को गाँधी का वंशज मानती है और लगभग उनको पेटेंट कराकर बैठी है। उसी सरकार नें महात्मा गाँधी के मरने के बाद भी लगातार उनकी हत्या की है। कम से कम गाय के परिप्रेक्ष्य में तो यह कहा ही जा
आजादी के बाद से निरन्तर चलने वाली एकपरिवारीय सरकार (कुछ अपवाद स्वरुप वर्षों को छोड़कर) जो अपने को गाँधी का वंशज मानती है और लगभग उनको पेटेंट कराकर बैठी है। उसी सरकार नें महात्मा गाँधी के मरने के बाद भी लगातार उनकी हत्या की है। कम से कम गाय के परिप्रेक्ष्य में तो यह कहा ही जा