गुरुवार, 19 नवंबर 2015
दशरथ माँझी
प्रेम, सच्चा प्रेम, अथाह प्रेम, ‘दशरथ माँझी का प्रेम’। अगर कोई आम व्यक्ति उथले तौर पर देखे तो दशरथ माँझी को सनकी-ठरकी जैसे शब्दों से संबोधित करेगा। परन्तु यदि कोई वास्तव में
प्रेम की गहराई को समझे तो वह प्रेम की एक ऐसी मिसाल हैं जो वर्तमान पीढ़ी को एक सुंदर एवं हृदयस्पर्शी संदेश देते हैं। उन्हें दिए गए ‘सनकी’ संबोधन को यदि सही शब्दावली दी जाए तो वे ‘जुनूनी’ थे। हवा के रूख के विपरीत स्वतंत्र आकाश में विचरण करने वाले ‘विजेता’। लगनशील, धैर्यशील एवं कभी हार न मानने वाले। समस्त विपरीत परिस्थितियों में, नकारात्मक संवादों के मध्य स्वयं को मात्र अपने प्रेम को समर्पित करने वाले ‘दशरथ माँझी’।
वर्तमान युवा पीढ़ी के लिए प्रेम की जो परिभाषा है वह अत्यधिक संदिग्ध है। वास्तव में वे प्रेम, आकर्षण एवं हवस के मध्य भेद स्पष्ट करने में समर्थ नहीं हैं। उनके लिए प्रेम के मायने मात्र मौज-मस्ती एवं साथ जीवन बिताना है। और भी अनेक भद्दे क्रियाकलाप उनकी दिनचर्या के अंग हैं जिन्हें वे प्रेम का नाम देकर या तो अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं या वे वास्तव में अनभिज्ञ हैं। उन सभी को दशरथ माँझी के जीवन पर बनी यह फिल्म अवश्य देखनी चाहिए और समझना चाहिए कि सच्चा प्रेम किसी को उठा ले जाना, किसी की हत्या करना, किसी पर एसिड फेंकना या किसी के साथ दुराचार करना नहीं वरन् किसी के लिए समर्पित होना है। उसके दुःख-सुख को अपनाना है। उसकी भावनाओं को समझना है। उसकी आँखांे मंे आँसू अवश्य हो मगर खुशी के। परन्तु अत्यन्त खेद के साथ कहना पड़ता है कि वर्तमान पीढ़ी ने प्रेम की अत्यधिक शर्मनाक परिभाषा गढ़ी है। ‘तू नहीं तो कोई और सही, कोई और नहीं तो कोई और सही’ या ‘तू मेरी नहीं तो किसी की भी नहीं’। दोनों ही स्थितियों मेें प्रेम का एक घृणित रूप प्रकट होता है। ‘लिव-इन’ जैसे संबंधों ने तो रिश्तों को ओच्छा रूप दे दिया। रिश्तों में बंधना एवं एक-दूसरे के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करना हमारी युवा पीढ़ी को बंधंन प्रतीत होता है। स्वतंत्रता से स्वच्छंदता के सफ़र में वे आत्मीयता को खो चुके हैं। ‘लव-इश्क-मोहब्बत’ का राग अलापने वाले या तो पारिवारिक जिम्मेदारियों में बंधना नहीं चाहते और यदि बंध गए तो उनका गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार पल-पल प्रेम व रिश्तों को अपमानित करता है। दुःखद यह है कि आगामी समय में इसका और विभत्स रूप ही देखने की उम्मीद है।
व्यक्तिगत् स्तर पर मैं यह महसूस करती हूँ कि ताजमहल की भाँति दशरथ माँझी द्वारा बनाए गए उस मार्ग को ‘राष्ट्रीय संपदा’ घोषित किया जाना चाहिए। हमारी लगभग समस्त ‘राट्रीय संपदाएँ’ भले ही हमारे सम्मानीय पूर्वजों प्रदत्त अनमोल उपहार हों परन्तु दशरथ माँझी की स्वनिर्मित यह रचना एवं कठोर तपस्या उनके सम्मुख अतुलनीय है। ताजमहल ‘प्रेम की निशानी’ अवश्य है परन्तु दशरथ माँझी के मार्ग एवं ताजमहल के मध्य तुलना की जाए तो ताजमहल ‘दीवानेपन’ का परिणाम है और ‘दशरथ माँझी मार्ग’ समर्पण का प्रमाण है। निश्चित रूप से अकेले विकट परिस्थितियों में पहाड़ तोड़ना, अपने दीवानेपन को अपने दासों की सुंदर कल्पना के माध्यम से प्रकट करने से कहीं ज़्यादा जटिल एवं महान है। दशरथ माँझी के उस प्रेम के तुल्य अभी तक कोई मिसाल मेरी जानकारी में नहीं है। वास्तव में इसकी तुलना करके इस पवित्र प्रेम को अपमानित भी नहीं किया जाना चाहिए।
जहाँ एक ओर ‘दशरथ माँझी मार्ग’ अपार प्रेम को दर्शाता है वहीं दूसरी ओर यह दशरथ माँझी की जनहित भावनाओं को भी प्रदर्शित करता है। वे इस मार्ग का निर्माण इसलिए भी करना चाहते थे जिससे जो दुःखद घटना उनके जीवन का अंग बनी, उसकी पुनरावृत्ति किसी और जीवन में न हो। वे उस अपार कष्ट से इतने व्यत्थित थे इसकी कल्पना तक भी वे किसी अन्य के प्रति न कर सके। परहित के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। दूसरों के कष्टों को अपने जीवन का अंग बनाने वाले- ऐसे थे दशरथ माँझी।
केतन मेहता द्वारा निर्देशित यह फिल्म न केवल निर्देशन की दृष्टि से वरन् पात्रों के अभिनय की दृष्टि से भी अत्यधिक भावुक एवं बेहतरीन फिल्म है। निर्देशक ने छोटे-छोटे दृश्यों के माध्यम से पिता का बच्चों के प्रति प्रेम, सरकारी तंत्रों की निकृष्टता, गरीबी, राजनेताओं का भद्दा प्रदर्शन, तानाशाही, जमींदारों की क्रूरता को अत्यंत संवेदनशील ढंग से प्रदर्शित किया है। हम आभारी हैं केतन मेहता के जिन्होंने दशरथ माँझी जैसे महान व्यक्तित्व एवं उनके कठोर जीवन से हमारा परिचय कराया।
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