प्राचीन काल से ही गाय हमारे जीवन यापन का महत्वपूर्ण साधन रही है। धार्मिक दृष्टि से यह पूजनीय तो रही ही है, सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से गाय भारतीय जीवन प्रणाली की रीढ़ की हड्डी रही है। किन्तु अगर हम निरन्तर इस देश पर हुए आक्रमणों के बाद उत्पन्न स्थिति पर नजर डालें तो हमारी पूजनीय और जीवनदायिनी गाय को विदेशी आक्रन्ताओं व मतों (भारत के बाहरी मत पंथ) को मानने वालों नें गाय को दयनीय स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। वर्तमान आजाद भारत में हम भारतीय इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। खासकर आजादी के बाद बनी सरकारें इस दृष्टि से भारतीय जीवन शैली हिन्दूधर्म की प्रतीक गाय को निम्नतम स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया है।
आजादी के बाद से निरन्तर चलने वाली एकपरिवारीय सरकार (कुछ अपवाद स्वरुप वर्षों को छोड़कर) जो अपने को गाँधी का वंशज मानती है और लगभग उनको पेटेंट कराकर बैठी है। उसी सरकार नें महात्मा गाँधी के मरने के बाद भी लगातार उनकी हत्या की है। कम से कम गाय के परिप्रेक्ष्य में तो यह कहा ही जा
सकता है। उदाहरण स्वरुप हम महात्मा गाँधी के उस परामर्श को देखें (यंग इणिडया 77-1927) जिसका शीर्षक था ''गाँधी और गोरक्षा" जिसे भारत सरकार के सूचना मंत्रालय द्वारा अप्रैल 1967 में ''गाँधी और गोरक्षा नामक पुस्तक में छापी गयी थी। उस पुस्तक के पृष्ठ 12-14 में उद्धृत है कि :-
''मेरे विचार में, गोरक्षा के प्रश्न के आर्थिक पक्ष को ठीक से उठाया जाय तो इसका नाजुक धार्मिक पक्ष भी अपने आप सुलझ जायेगा। आर्थिक दृष्टि से गोहत्या को बिलकुल निरर्थक बना देना चाहिए और ऐसा किया जा सकता है। लेकिन दुर्भाग्य से दुनिया भर में, हिन्दुओं के पूज्य पशु गाय को मारना कहीं इतना सस्ता नही जितना हिन्दुओं के इस देश में है। इसके लिए मैं ये सुझाव दूँगा :-
1) सरकार खुले बाजार में बेचे जाने वाले हर पशु को ऊँची बोली लगाकर खुद खरीदे।
2) सरकार सब बड़े-बड़े शहरों में अपनी ओर से दूधशालाएं चलाये जिससे लोगों को सस्ता दूध मिले।
3) सरकार अपने पाले हुए मृत पशुओं की खाल और हडिडयों का उपयोग करने के लिए चमड़ा कमाने के कारखाने चलाये और दूसरों के मरे हुए पशु भी खरीदे।
4) सरकार आदर्श पशु-शालाएं खोले और लोगों को सिखावे कि पशुओं को कैसे पाला जाता है और इसकी नस्ल कैसे सुधारी जाती है।
5) सरकार पशुओं के लिए यथेष्ठ गोचर जमीन की व्यवस्था करे और पशु-पालन के अच्छे से अच्छे विशेषज्ञ दुनिया भर से बुलावे और लोगों को पशुपालन का वैज्ञानिक तरीका सिखावे।
6) इस काम के लिए एक अलग सरकारी विभाग खोला जाय। यह विभाग लाभ कमाने के लिए नही चलाया जाय और इससे लोगों को अच्छी नस्ल के पशु तैयार करने और दूसरी बातों में मदद मिले।
बूढ़े, बीमार और अपंग पशुओं की देखभाल इस योजना में आ ही जाती है। इसमें कोइ शक नही है कि इस योजना पर भारी खर्च होगा, लेकिन यह ऐसा बोझ है, जिसे सब राज्यों को और सबसे बढ़कर हिन्दु राज्य को तो ख़ुशी से उठाना चाहिए।
मैनें इस प्रश्न पर जो विचार किया है, उससे मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि वैज्ञानिक ढंग की गौशालाएं और चमड़ा कारखाने चलाने से सरकार को इतनी आमदनी अवश्य होगी, जिससे उन पशुओं को पालने का खर्च निकाला जा सके जो आर्थिक दृष्टि से बेकार हों। उनके गोबर से खाद के अलावा, उनका चमड़ा, चमड़े का सामान, दूध और दूध से बनी चीजें और बहुत सी चीजें जो मरे हुए ढोरों से बन सकती हैं, बाजार भाव पर बेचकर आमदनी की जा सकती है। अभी मूर्खतावश या वैज्ञानिक जानकारी के कारण मरे हुए पशु प्राय: फेंक दिये जाते हैं या उनसे पूरा फायदा नहीं उठाया जाता।(प्राचीन भारत में गोमांस: एक समीक्षा प्रकाषक अ.भा.इ.संकलन योजना से साभार)
अब क्या तथाकथित अपने को गाँधी का वंशज कहने वाला सरकारी परिवार, तथाकथित गाँधी का देश, तथाकथित गाँधी को राष्ट्रपिता कहने वाला राजनेता व समाज इस गाँधी को गाली नही दे रहा? क्या गाँधी जी के इस हिन्दूराष्ट्र के तथाकथित अनुयायी रोज कटती गाय के साथ गाँधी की हत्या नही कर रहे? इससे पहले कि आप अपने जड़ो से उखड़ जाएं और दुबारा सृजन की क्षमता न रहे और भारतीय संस्कृति सभ्यता के साथ आप विलुप्त हो जाएं, बेहतर होगा कि इस देश, गाय और गाँधी के इस विचार को बचाने का प्रयास करें।
आजादी के बाद से निरन्तर चलने वाली एकपरिवारीय सरकार (कुछ अपवाद स्वरुप वर्षों को छोड़कर) जो अपने को गाँधी का वंशज मानती है और लगभग उनको पेटेंट कराकर बैठी है। उसी सरकार नें महात्मा गाँधी के मरने के बाद भी लगातार उनकी हत्या की है। कम से कम गाय के परिप्रेक्ष्य में तो यह कहा ही जा
सकता है। उदाहरण स्वरुप हम महात्मा गाँधी के उस परामर्श को देखें (यंग इणिडया 77-1927) जिसका शीर्षक था ''गाँधी और गोरक्षा" जिसे भारत सरकार के सूचना मंत्रालय द्वारा अप्रैल 1967 में ''गाँधी और गोरक्षा नामक पुस्तक में छापी गयी थी। उस पुस्तक के पृष्ठ 12-14 में उद्धृत है कि :-
''मेरे विचार में, गोरक्षा के प्रश्न के आर्थिक पक्ष को ठीक से उठाया जाय तो इसका नाजुक धार्मिक पक्ष भी अपने आप सुलझ जायेगा। आर्थिक दृष्टि से गोहत्या को बिलकुल निरर्थक बना देना चाहिए और ऐसा किया जा सकता है। लेकिन दुर्भाग्य से दुनिया भर में, हिन्दुओं के पूज्य पशु गाय को मारना कहीं इतना सस्ता नही जितना हिन्दुओं के इस देश में है। इसके लिए मैं ये सुझाव दूँगा :-
1) सरकार खुले बाजार में बेचे जाने वाले हर पशु को ऊँची बोली लगाकर खुद खरीदे।
2) सरकार सब बड़े-बड़े शहरों में अपनी ओर से दूधशालाएं चलाये जिससे लोगों को सस्ता दूध मिले।
3) सरकार अपने पाले हुए मृत पशुओं की खाल और हडिडयों का उपयोग करने के लिए चमड़ा कमाने के कारखाने चलाये और दूसरों के मरे हुए पशु भी खरीदे।
4) सरकार आदर्श पशु-शालाएं खोले और लोगों को सिखावे कि पशुओं को कैसे पाला जाता है और इसकी नस्ल कैसे सुधारी जाती है।
5) सरकार पशुओं के लिए यथेष्ठ गोचर जमीन की व्यवस्था करे और पशु-पालन के अच्छे से अच्छे विशेषज्ञ दुनिया भर से बुलावे और लोगों को पशुपालन का वैज्ञानिक तरीका सिखावे।
6) इस काम के लिए एक अलग सरकारी विभाग खोला जाय। यह विभाग लाभ कमाने के लिए नही चलाया जाय और इससे लोगों को अच्छी नस्ल के पशु तैयार करने और दूसरी बातों में मदद मिले।
बूढ़े, बीमार और अपंग पशुओं की देखभाल इस योजना में आ ही जाती है। इसमें कोइ शक नही है कि इस योजना पर भारी खर्च होगा, लेकिन यह ऐसा बोझ है, जिसे सब राज्यों को और सबसे बढ़कर हिन्दु राज्य को तो ख़ुशी से उठाना चाहिए।
मैनें इस प्रश्न पर जो विचार किया है, उससे मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि वैज्ञानिक ढंग की गौशालाएं और चमड़ा कारखाने चलाने से सरकार को इतनी आमदनी अवश्य होगी, जिससे उन पशुओं को पालने का खर्च निकाला जा सके जो आर्थिक दृष्टि से बेकार हों। उनके गोबर से खाद के अलावा, उनका चमड़ा, चमड़े का सामान, दूध और दूध से बनी चीजें और बहुत सी चीजें जो मरे हुए ढोरों से बन सकती हैं, बाजार भाव पर बेचकर आमदनी की जा सकती है। अभी मूर्खतावश या वैज्ञानिक जानकारी के कारण मरे हुए पशु प्राय: फेंक दिये जाते हैं या उनसे पूरा फायदा नहीं उठाया जाता।(प्राचीन भारत में गोमांस: एक समीक्षा प्रकाषक अ.भा.इ.संकलन योजना से साभार)
अब क्या तथाकथित अपने को गाँधी का वंशज कहने वाला सरकारी परिवार, तथाकथित गाँधी का देश, तथाकथित गाँधी को राष्ट्रपिता कहने वाला राजनेता व समाज इस गाँधी को गाली नही दे रहा? क्या गाँधी जी के इस हिन्दूराष्ट्र के तथाकथित अनुयायी रोज कटती गाय के साथ गाँधी की हत्या नही कर रहे? इससे पहले कि आप अपने जड़ो से उखड़ जाएं और दुबारा सृजन की क्षमता न रहे और भारतीय संस्कृति सभ्यता के साथ आप विलुप्त हो जाएं, बेहतर होगा कि इस देश, गाय और गाँधी के इस विचार को बचाने का प्रयास करें।
i agree to your proposal... i m wid u always
जवाब देंहटाएंhttp://premchand-sahitya.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंयदि आप को प्रेमचन्द की कहानियाँ पसन्द हैं तो यह ब्लॉग आप के ही लिये है |
यदि यह प्रयास अच्छा लगे तो कृपया फालोअर बनकर उत्साहवर्धन करें तथा अपनी बहुमूल्य राय से अवगत करायें |
बिलकुल इस भारत देश कि को यदि सब और से मजबूत बनाना है तो गोऊ माता को बचाना होगा
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट ,बधाई आभार .
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें .
सार्थक पोस्ट आभार
जवाब देंहटाएंVery nice thoughts.........really.......congratz
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