We owe a lot to the Indians, who taught us how to count, without which no worthwhile scientific discovery could have been made.
-Albert Einstein
हम भारतियों के प्रति हमेशा कृतज्ञ रहेंगे जिन्होंने हमें गणना करना सिखाया, उसके बिना किसी वैज्ञानिक आविष्कार का होना संभव नहीं था।
-अलबर्ट आइन्स्टीन
India is the cradle of the human race, the birthplace of human speech, the mother of history, the grandmother of legend and the great grand mother of tradition.
-Mark Twain
भारतभूमि, मानव प्रजाति की पालनकर्ता है, मानवीय वाणी की जन्मस्थली है, इतिहास की माता है, दिव्य-गाथाओं की दादी है और परमपराओं की पर-दादी है।
-मार्क ट्वेन
If there is one place on the face of earth where all dreams of living men have found a home from the very earliest days when man began the dream of existence, it is India.
-French scholar Romain Rolland
अगर दुनिया में ऐसा कोई स्थान है, जिसे मानव के उन सारे सपनों का घर कहा जाये,जो सपने मानव बहुत शुरुआत से अस्तित्व के लिए देखा करता था, तो वो स्थान है भारत।
-फ़्रांसीसी विद्वान् रोमेन रोलांड
हड़प्पा-मोहनजोदारो सभ्यता के साथ इतिहास में जिस सभ्यता का वर्णन आता है वो है आर्य-सभ्यता। आर्य मूल भारतीय थे या फिर मध्य एशिया से आये थे, ये अभी भी शोध का विषय बना हुआ है। लेकिन आर्यों की मौलिकता के बारे में महर्षि दयानंद सरस्वती के द्वारा प्रस्तुत किये गए तथ्य काफी तर्कसंगत लगते हैं। ये वो समय था जब यूरोपीय देशों के लोग जंगलों में घुमन्तु की जिन्दगी जी रहे थे, पूरी दुनिया अज्ञानता के अँधेरे में सोयी हुयी थी, उस समय भारत के लोग ऐसी कार्यशालाओं का व्यापार (Trade of workshops) चला रहे थे जिसमें धातु-निष्कर्षण (Mettalurgy), वस्त्र रंजन (Dyeing of Fabric), औषधि-निर्माण (Drugs Formation), शल्य-चिकित्सा (Surgery) जैसे काम हुआ करते थे।
आर्यों के जीवन का मूल आधार थे 'वेद'.
वेदों को सिर्फ किसी धर्म के धर्म-ग्रन्थ मान लेना बहुत बड़ी गलती होगी।
वेदों की रचना उस समय हुयी थी जब विभिन्न सम्प्रदाय हुआ ही नहीं करते थे।
उस समय केवल एक धर्म था सनातन-मानवता का धर्म।
वेद किसी संप्रदाय-विशेष को आध्यात्मिक ज्ञान देने मात्र के ग्रन्थ नहीं हैं।
वेदों में Physics, Chemistry, Mathematics, Cosmology, Biology आदि के विषयों पर अथाह सिद्धांत लिखे हुए हैं।
सवाल ये उठता है की अगर वेदों में इतना ज्ञान है तो ये जग जाहिर क्यों नहीं होता। इसका कारण है वेदों की अत्यंत जटिल भाषा। वेदों में लिखे टेक्स्ट्स को decode करना कितना मुश्लिक काम है ये बात दैनिक भाष्कर की 2012 की इस खबर से साफ़ हो जाता है-
Pre-Vedic India knew about DNA: Indore scholar . आज वेदों को decode करने के लिए कई संस्थाएं काम कर रही हैं , उनमें से इन्दौर के एक विद्वान् ने वेदों में DNA के वर्णन को सफलतापूर्वक decode करने का दावा किया है। लेकिन वैदिक भारत के कई विद्वानों ने वेदों के बहुत से श्लोकों को समझ कर उन पर न सिर्फ अपनी भाषा में संहितायें लिखी बल्कि उनको व्यावहारिकता में भी लाया।
यहाँ पर मैं वैदिक भारत द्वारा किये गए महान वैज्ञानिक आविष्कारों और उनके आविष्कारकों में से कुछ का वर्णन कर रहा हूँ।
600 ईसा पूर्व (600 BC) कनद ऋषि ने परमाणु(Atom) का सिद्धांत दिया था। कणद का कथन है कि-
"सभी वस्तुएं परमाणु(Atoms) से बनी हुयी हैं, विभिन्न परमाणु आपस में जुड़ कर अणु(Molecule) का निर्माण करते हैं"
उन्होंने ये कथन John Dalton से 2500 वर्ष पहले दिया था।
इसके आगे कणद परमाणुओं की Dimensions, गतियों और आपस में रासायनिक अभिक्रियाओं(Chemical Reactions) का वर्णन करते हैं।
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Acharya Kanad: Atomic Theory was given in 600 BC |
400-500 ईसा पूर्व भाष्कराचार्य ने अपनी किताब सूर्य-सिद्धांत में ये कथन लिखा था-
" वस्तुयों का पृथ्वी पे गिरने का कारण, पृथ्वी द्वारा उन पे लगने वाला आकर्षण बल है। पृथ्वी में ये क्षमता उसके अत्यधिक गुरुत्व (Mass) के कारण आती है।"
उन्होंने ये कथन Sir Issac Newton से लगभग 1200 वर्ष पहले दिया था।
सूर्य सिद्धांत में भाष्कराचार्य लिखते हैं-
"पृथ्वी, ग्रह, चंद्रमा, सूर्य आदि इस गुरुत्वाकर्षण के कारण अपने कक्षक में बने रहते हैं"
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Bhashkaracharya: Law of Gravitation was given in 500 BC |
10वीं सदी में नागार्जुन ने अपनी किताब रसरत्नाकर
Rasaratnanakara में बहुत से धातुकर्म विधियों के बारे में लिखा है जैसे:
विभिन्न धातुओं जैसे सोना,चांदी,तम्बा और टिन का उनके अयस्कों (Ores) से निष्कर्षण।
द्रवीकरण(liquefaction),आसवन(distillation),उर्ध्वपातन(sublimation) आदि विधियों का वर्णन।
विभिन्न रस (Liquid Metal) जैसे पारा (Mercury) का निर्माण।
धातुकर्म के क्षेत्र में भारत 5000 वर्षों से अधिक समय तक विश्व-गुरु रहा है।
सोने के आभूषण 3000 BC से पहले उपलब्ध थे।कांसे और पीतल के मिले बर्तनों का अनुमान 1300 BC लगाया गया है।
जस्ता (जिंक) को इसके अयस्क (Ore) से आसवन विधि द्वारा निकालना भारत में 400 BC में ज्ञात था, European William Campion से 2000 वर्ष पहले।
ताम्बे की मुर्तियों की आयु का अनुमान 500 BC लगाया गया है।
दिल्ली में एक लौह स्तम्भ है जो 400 BC पुराना है और उस पर आज तक जंग या क्षय का कोई निशान नहीं है।
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Nagarjuna: Invention of Mettalurgy |
dīrghasyākṣaṇayā rajjuḥ pārśvamānī, tiryaḍam mānī,
किसी समकोण त्रिभुज में दीर्घ-अक्ष(Hypotenuse) का वर्ग, रज्जू(Base) और पार्श्ववमिनी(Hight) के वर्ग के योग के बराबर होता है।
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Bouddhayan: Great mathematician of 600 BC |
बौद्धायन ने वृत की परिधि और व्यास का अनुपात 3 बताया था।लेकिन उनके बाद 499 AD में आर्यभट्ट ने π के मान की गणना दशमलव के 4 स्थान तक की (3.1416).
825 AD में एक अरबी गणितज्ञ मुहम्मद इब्ना मूसा ने ये कहा कि ये मान भारतियों के द्वारा दिया गया है।
Zero की अवधारणा शुरूआती संस्कृत लेखों में 'शून्य' के रूप में आती है और पिंडाला के 'चंदा: सूत्र' (200 AD) में भी समझायी गयी है। भ्रह्मगुप्त के 'ब्रह्म फुता सिद्धांत' (400 AD) में शून्य को विस्तार से समझाया गया है। भारतीय गणितज्ञ भाष्कराचार्य ने सिद्ध किया की X को 0 से विभाजित करने पर अनंत (Infinty) आता है जिसको फिर कितना ही विभाजित करें अनंत ही रहता है।
लेकिन शून्य के महत्व के आविष्कार का श्रेय आर्यभट्ट को जाता है।
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Aryabhatt: Great Mathemeticial, who has given Concept of Decimal and Zero |
दशमलव के आविष्कार का भी मुख्य श्रेय आर्यभट्ट को दिया जाता है। उन्होने हर गणना का आधार 10 को बनाया जिस से बड़ी से बड़ी संख्या भी 10 की घात के रूप में आसानी से व्यक्त की जाने लगीं।
अंग्रेजी का शब्द Geometry संस्कृत के शब्द 'ज्यामिति' से आया हुआ है।जिसका अर्थ होता है 'पृथ्वी का मापन'.
इसी तरह से अंग्रेजी का शब्द 'Trignometry' भी संस्कृत के शब्द 'त्रिकोणमिति' से बना है।
युक्लिड का निर्माण 300 BC में Geometry के अविष्कार के बाद हुआ जबकि भारत में ज्यामिति का उद्भव 1000 BC में ही आग वेदियों (fire altars) के निर्माण से हो गया था "चतुर्भुज में वर्ग का निर्माण".
सूर्य सिद्धांत में त्रिकोणमिति का प्रखर वर्णन किया है, जो कि 1200 साल बाद यूरोप में 1600 इसवी में Briggs द्वारा दिया गया।
भाष्कराचार्य ने 1150 AD में अपनी प्रसिद्ध किताब 'सिद्धांता-सिरोमन' लिखी,जिसके चार भाग हैं:
लीलावती(Arithmetic)
गोलाध्याय (Celestial Glob)
बीजगणित (Treatise of Algebra)
ग्रहगणित (Mathematics of Planets)
भारत से ही sinƟ funtion 8वीं सदी में अरब में पहुँचा। भारत में sinƟ को 'ज्या' कहते थे जो कि अरब में Jiba / Jyb में अनुवादित हो गया। अरबी में Jaib शब्द का मतलब होता है महिला-पोशाक का गले के पास से खुला होना, Jaib शब्द का लैटिन में अनुवाद हुआ Sinus, जिसका अर्थ होता है पोशाक में तह या Curve. और इस प्रकार अंत में Sine (sinƟ) शब्द बना।
आज की गणित में 10 की अधिकतम घात के लिए उपसर्ग (Prefix) है- 'D' दस की घात 30 (from Greek Deca).
जबकि 100 BC पहेल भारतियों ने 10 की घात 53 तक के लिए सटीक नामों का आविष्कार कर लिया था।
1= एकं =1, 10 था दशकं , 100 था शतं (10 to the power of 10), 1000 tha सहस्रं (10 power of 3), 10000 था दशासहस्रम (10 power of 4), 100000 था लक्शः (10 power of 5), 1000000 था दशालक्शः (10 power of 6), 10000000 था कोटिः (10 power of 7)……विभुतान्गामा (10 power of 51), तल्लाक्षनाम (10 power of 53).
word-numeral system, अंक को 10 के गुणांक के रूप में लिखते हुए आगे बढ़ता है। जैसे संख्या 60799 को संस्कृत में इस तरह लिखते हैं-
"सस्टीम सहस्र सप्त सतानी नवाटीम नवा"
(sastim (60), shsara (thousand), sapta (seven) satani (hundred), navatim (nine ten times) and nava (nine))
इस system के नियम इस प्रकार है:
1.शुरू के नौ अंकों के नाम-eka, dvi, tri, catur, pancha, sat, sapta, asta, nava
2.अगले नौ अंको का समूह, उपर्युक्त प्रत्येक अंक को 10 से गुना करके प्राप्त होता है-dasa, vimsat, trimsat, catvarimsat, panchasat, sasti, saptati, astiti, navati
3. इसी प्रकार अगला समूह 10 के अगले गुणांक के रूप में प्राप्त होता है-satam sagasara, ayut, niyuta, prayuta, arbuda, nyarbuda, samudra, Madhya, anta, parardha….
प्राचीन भारतीय वो पहले लोग थे जिन्होंने सूर्य के Heliocentric System का सुझाव दिया.
उन्होंने प्रकाश का वेग 1,85,016 miles/sec परिकलित किया.
उन्होंने पृथ्वी का चन्द्रमा के बीच की दूरी भी परिकलित की- चन्द्रमा के व्यास का 108 गुना.
पृथ्वी और सूर्य के मध्य दूरी का अनुमान लगाया- पृथ्वी के व्यास का 108 गुना.
ये सब बातें महान वैज्ञानिक गैलिलिओ से हजारों साल पहले की हैं.
भारतीय गणितग्य भाष्कराचार्य ने अपने निबंध सूर्य-सिद्धांत में, पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में लगने वाले समय का दशमलव के नौंवें स्थान तक सही मान बताया (365.258756484 दिन).
भाष्कराचार्य के सैकड़ों वर्ष बाद 5वीं में astronomer Smart ने इसी मान की गणना की।
समय की गणना के लिए प्राचीन भारतीयों ने दुनिया को समय की सबसे छोटी इकाई से लेकर सबसे बड़ी इकाई प्रदान की:
Unit | Equivalent | Equivalent |
Krati | | 34,000th of a second |
1 Truti | | 300th of a second |
2 Truti | 1 Luv | |
2 Luv | 1 Kshana | |
30 Kshana | 1 Vipal | |
60 Vipal | 1 Pal | |
60 Pal | 1 Ghadi | 24 minutes |
2.5 Gadhi | 1 Hora | 1 Hour |
24 Hora | 1 Divas | 1 Day |
7 Divas | 1 Saptaah | 1 Week |
4 Saptaah | 1 Maas | 1 Month |
2 Maas | 1 Rutu (season) | |
6 Rutu | 1 Varsh | 1 Year |
100 Varsh | 1 Shataabda | 1 Century |
10 Shataabda | 1 Sahasraabda | 10 Centuries or 1000 Years |
432 Sahasraabda | 1 Yuga | 4320 Centuries or 432000 Years |
10 Yuga | 1 Mahayuga | 43200 Centuries or 4320000 Years |
1000 Mahayuga | 1 Kalpa | 43200000 Centuries or 4.32 Billion Years |
भारतीय काल गणनाओं में तीन chronologies आज तक प्रचलित है:
कलिय्ब्दा: जो कलियुग के शुरू होने के साथ शुरू होती है, यानी 5107 वर्ष पुरानी।
कल्पब्दा: जो वर्तमान कल्प "श्वेतवर कल्प" के शुरुआत के साथ शुरू होती है यानी 1,971,221,107 वर्ष पुरानी।
सृश्ब्द: जो ब्रह्माण्ड के निर्माण के साथ शुरू होती है यानी 155,521,971,221,107 वर्ष पुरानी।
अभी बहुत सी ऐसी काल-गणना प्रणालियाँ हैं जो इसाई क्रोनोलोज़ी से बहुत पुरानी हैं:
Chronology | Antiquity in years |
Roman | 2,753 |
Greek | 3,576 |
Turkish (new) | 4,294 |
Chinese (new) | 4,360 |
Hindu (Kalyabda) | 5,106 |
Jewish | 5,764 |
Iran (new) | 6,008 |
Turkish (old) | 7,610 |
Egyptian | 28,667 |
Iran (old) | 189,971 |
Chinese (old) | 96,002,301 |
Hindu (Kalpābda) | 1,971,221,106 |
Hindu (Sŗşābda) | 155,521,971,221,106 |
पश्चिम में Hippocrates (460 – 377 BC) को Father of Medicine कहा जाता है लेकिन उनसे पहले 500 BC में महर्षि चरक ने एक प्रसिद्ध किताब 'चरक संहिता' लिखी थी। चरक-संहिता विस्तार से 8 मुख्य चिकित्सीय नियमों का वर्णन करती है -
आयुर्वेद
शल्य-चिकित्सा (surgery)
शालक्य-चिकित्सा (head, eye, nose, throat)
काया-चिकित्सा (mental health)
कौमार्यभ्रुत-चिकित्सा (pediatrics)
अगाड़-चिकित्सा (toxicology)
रसायन तंत्र (Pharmacology)
वाजीकर्ण तंत्र (reproductive medicine)
इसके अलावा चरक ने अपनी किताब चरक-संहिता में Anatomy की जानकारी भी बहुत विस्तार से लिखी ,जिसमें ह्रदय और परिसंचरण तंत्र की कार्य-प्रणाली का विस्तृत वर्णन सम्मिलित है।
चरक को अरब और roman दोनों जगहों पे medical authority के रूप में सम्मान मिलता है।
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Acharya Charak: Worlds first Physician |
भारतीय विद्वान वो पहले लोग थे जिन्होंने विच्छेदन (amputation),सिजेरियन(cesarean surgery) और कपाल शल्य(cranial surgery) को व्यवहारिकता में लाया।
महर्षि सुश्रुत ने सर्वप्रथम 600 BC में गाल की त्वचा का उपयोग नाक,कान ,होंठ के आकार को ठीक करने के लिए प्लास्टिक सर्जरी (plastic surgery) में किया।
उन्होंने अपने निबंध सुश्रुत-संहिता में निम्न 8 प्रकार की शल्य चिकित्सायों का वर्णन किया है:
1.आहार्य (extracting solid bodies),
2.भेद्य (excision),
3.इश्य (probing),
4.लेख्य (sarification),
5.वेध्य (puncturing),
6.विस्राव्य (extracting fluids)
7.सिवया (suturing)
सुश्रुत ने 300 से भी ज्यादा शल्य क्रियाओं जैसे extracting solid bodies, excision, incision, probing, puncturing, evacuating fluids and suturing का अविष्कार किया।
भारतीय वे पहले लोग थे जिन्होंने amputations (ख़राब अंग को ऑपरेशन से अलग करना), caesarean (ऑपरेशन से प्रसव कराना), cranall surgeries (खोपड़ी का ऑपरेशन) 42 विधियों से सफलता पूर्वक किया। उन्होंने 125 प्रकार के शल्य उपकरणों का उपयोग किया जैसे scalpels, lancets, needles, catheters आदि।
यहाँ तक कि सुश्रुत ने non-invasive surgical treatments (बिना चीर-फाड़ के ऑपरेशन) , प्रकाश किरणों और ऊष्मा की सहायता से किया।
सुश्रुत और उनकी टीम ने जटिल operatios जैसे मोतियाबिंद(cataract), कृत्रिम अंग(artificial limbs), प्रसव(cesareans), अस्थि-भंग(fractures), मूत्राशय की पथरी(urinary stones), प्लास्टिक सर्जरी (plastic surgery) और मस्तिष्क सर्जरी(brain surgeries) भी किये।
चाणक्य के 'अर्थशास्त्र' में पोस्ट-मोरटम(Post mortems) और 'भोज-प्रबंध' में मस्तिष्क सर्जरी(brain surgeries) के बारे में लिखा है कि राजा भोज 2 surgeons ने कैसे मस्तिष्क की गाँठ का सफलता पूर्वक शल्य उपचार किया।
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Acharya Sushrut: Worlds first Surgen |
महर्षि पतंजलि ने योग-सूत्र में, स्वस्थ रहने के लिए शारीरिक और मानसिक व्यायाम की विपुल विधियां बतायीं।
व्यायाम से परे योग का अर्थ होता है स्व-अनुशासन।
महर्षि पतंजलि के अनुसार मानव के शरीर में कई मार्ग(channels) होते हैं जिन्हें 'नाड़ी' कहते हैं और कई केंद्र होते हैं जिन्हें 'चक्र' कहते हैं। यदि इन पर नियंत्रण पा लिया जाये तो शरीर में छिपी ऊर्जा निखर आती है, इस उर्जा को कहते हैं 'कुंडलीनी'.
कुंडलीनी के जागरण से वो शक्तियां भी हमारे अन्दर आ जाती है जो सामान्य मनुष्य के वश के बाहर होती हैं।
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Acharya Patanjali |
योग के चरण:(Stages of Yoga)
- यम (universal moral commandments)
- नियम (self-purification through discipline)
- आसन (posture)
- प्राणायाम (breath-control)
- प्रत्याहार (withdrawal of mind from external objects)
- धारणा (concentration)
- ध्यान (meditation)
- समाधी (state of super-consciousness)
आयुर्वेद का शाब्दिक अर्थ होता है: आयु-LIfe , वेद -Knowledge.
अन्य उपचार पद्धतियों की तरह आयुर्वेद 'रोग के लक्षण' पर काम नहीं करता बल्कि 'रोग के कारण' को दूर करने पे काम करता है।
आयुर्वेद में अनेक प्रकार की प्राकृतिक औषधियां आती है। आयुर्वेद में सरल से लेकर जटिल रोगों के समूल इलाज के लिए असंख्य जड़ी बूटियों का वर्णन है।
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Ayurved |
भरतनाट्यम सबसे पुरानी नृत्य कला (the oldest of the classical dance forms of India) है।लगभग 2000 वर्ष पुरानी।
भरतनाट्यम से ही अन्य सभी प्रकार की नृत्य कलाओं का जन्म हुआ।
संगीत,अभिनय,काव्य,प्रतिमा-रूपण,साहित्य के अनुपन संयोजन वाली ये कला हजारों वर्षों से शरीर, मन और आत्मा को अभिव्यक्त करने का मंचन करती रही है।
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Bharatnatyam |
बोद्धिधर्मा, एक भारतीय बौद्ध भिक्षुक ने 5वीं सदी में 'कलारी' को जापान और चीन में प्रचलित किया। उन्होंने अपनी विद्या के मंदिर में सिखाई उस मंदिर को आज Shaolin Temple कहते हैं।
चीन के लोग उन्हें पो-टी-तामा बुलाते थे।उनकी सिखाई विद्या भविष्य में कराटे, जुडो और कुंग फू के नाम से विकसित हुयी।
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Martial Art |
विभिन्न ग्रंथों में जगह जगह पर बहुत सारे अस्त्र-सस्त्र का वर्णन आता है जैसे:
इन्द्र अस्त्र
आग्नेय अस्त्र
वरुण अस्त्र
- नाग अस्त्र
- नाग पाशा
- वायु अस्त्र
- सूर्य अस्त्र
- चतुर्दिश अस्त्र
- वज्र अस्त्र
- मोहिनी अस्त्र
- त्वाश्तर अस्त्र
- सम्मोहन / प्रमोहना अस्त्र
- पर्वता अस्त्र
- ब्रह्मास्त्र
- ब्रह्मसिर्षा अस्त्र
- नारायणा अस्त्र
- वैष्णव अस्त्र
- पाशुपत अस्त्र
ब्रह्मास्त्र ऐसा अस्त्र है जो अचूक होता है।
ब्रह्मास्त्र के सिद्धांत को समझने के लिए हम एक Basic Weapon - चतुर्दिश अस्त्र का अध्ययन करते हैं जिसके आधार पर ही अन्य अस्त्रों का निर्माण किया जाता है।
चतुर्दिश अस्त्र:
संरचना:
१.तीर (बाण)के अग्र सिरे पे ज्वलनशील रसायन लगा होता है, और एक सूत्र के द्वारा इसका सम्बन्ध तीर के पश्च सिरे पे बंधे बारूद से होता है.
२.तीर की नोक से थोडा पीछे चार छोटे तीर लगे होते हैं उनके भी पश्च सिरे पे बारूद लगा होता है.
कार्य-प्रणाली:
१.जैसे ही तीर को धनुष से छोड़ा जाता है, वायु के साथ घर्षण के कारण,तीर के अग्र सिरे पर बंधा ज्वलनशील पदार्थ जलने लगता है.
२.उस से जुड़े सूत्र की सहायता से तीर के पश्च सिरे पे लगा बारूद जलने लगता है और इस से तीर को अत्यधिक तीव्र वेग मिल जाता है.
३.और तीसरे चरण में तीर की नोक पे लगे, 4 छोटे तीरों पे लगा बारूद भी जल उठता है और, ये चारों तीर चार अलग अलग दिशाओं में तीव्र वेग से चल पड़ते हैं.
navigation का अविष्कार 6000 साल पहले सिन्धु नदी के पास हो गया था। अंग्रेजी शब्द navigation, संस्कृत से बना है: navi -नवी(new); gation -गतिओं(motions).
सांप-सीढ़ी का खेल भरत में 'मोक्ष पातं' के नाम से बच्चों को धर्म सिखाने के लिए खेलाया जाता था।
जहां सीढ़ी मोक्ष का रास्ता है और सांप पाप का रास्ता है।
इस खेल की अवधारणा 13वीं सदी में कवि संत 'ज्ञानदेव' ने दी थी।
मौलिक खेल में जिन खानों में सीढ़ी मिलती थी वो थे- 12वां खाना आस्था का था, 51वां खाना विश्वास का, 57वां खाना उदारता का, 76वां ज्ञान का और 78वां खाना वैराग्य का था।
और जीन खानों में सांप मिलते थे वो इस प्रकार थे- 41 वां खाना अवमानना का, 44 वां खाना अहंकार का, 49 वां खाना अश्लीलता का, 52 वां खाना चोरी का, 58 वां खाना झूठ का, 62 वां खाना शराब पीने का, 69 वां खाना उधर लेने का, 73 वां खाना हत्या का , 84 वां खाना क्रोध का, 92 वां खाना लालच का, 95 वां खाना घमंड का ,99 वां खाना वासना का हुआ करता था। 100वें खाने में पहुचने पे मोक्ष मिल जाता था।
1892 में ये खेल अंग्रेज इंग्लैंड ले गए और सांप-सीढ़ी नाम से प्रचलित किया।
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Mokshya-Patam |
काफी पुराने पुरातात्विक प्रमाण मिले हैं जिसमें हड़प्पा की खुदाई में कई स्थानों पर (Kalibangan, Lothal, Ropar, Alamgirpur, Desalpur and surrounding territories) Oblong (लम्बे) पांसे मिले हैं। उनमें से कुछ ईसा से 3 सदी पहले के हैं। पांसों के प्रमाण ऋग्वेद और अथर्ववेद में मिलते हैं।
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A die found in excavations at a Harappan period site.
Note that the six is not opposite the one |
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Krishna and Radha playing chaturanga
on an 8x8 Ashtāpada |
शतरंज के खेल का अविष्कार भारत ने किया था , इसका मौलिक नाम 'अष्ट-पदम्' था।
उसके बाद आज से 1000 साल पहले ये खेल 'चतुरंग' नाम से खेला जाने लगा और फिर 600 AD में Persians के द्वारा इसका नाम शतरंज रखा गया।
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Map showing origin and diffusion of chess from India
to Asia, Africa, and Europe, and the changes
in the native names of the game in corresponding places and time |
ताश के खेल की शुरुआत भारत में हुयी थी उसका मूल नाम 'क्रीडा पत्रं' था।
पत्ते कपड़ों के बने होते थे जिन्हें गंजिफा कहा जाता था। ये एक शाही खेल था, इस मूल खेल में कई परिवर्तन होते गए और आज का 52 पत्तों वाला खेल निष्काषित हुआ।
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Krida-Patram |
इन महान देनों के साथ साथ वेद प्राचीन भारत की सुव्यवस्थित सभ्यता के प्रमाण भी हैं।
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First Air-Craft Designed by Maharshi Bhardwaj |
महर्षि भरद्वाज द्वारा विमानों का अविष्कार,वात्सायन द्वारा कामसूत्र लेखन,कपिल मुनि द्वारा एलियन का वर्णन ऐसी अन्य बहुत सी बातें वेदों में है जिनका जिक्र कभी ख़त्म नहीं हो सकता।