ज्ञान के लिए धन की आवश्यकता के दुष्प्रभाव
अगर कोई मुझसे पूछेगा की COPYRIGHT की हिंदी क्या होती है तो मेरा सीधा उत्तर होगा की COPYRIGHT की कोई हिन्दी नहीं होती है क्यूँकी हमारी संस्कृति में copyright नहीं होता है हमारी संस्कृति में ज्ञान का प्रवाह मुक्त होता है और यह केवल एक ही क्षेत्र नहीं है जहाँ पर ज्ञान का मुक्त प्रवाह होता है | हमारे मनीषियों ने ज्ञान के महत्त्व को भी समझा था और उसकी शक्ती को भी और इसलिए उनको पता था की ज्ञान पर धन का नियंत्रण नहीं होना चाहिए अपितु नैतिकता का और प्राणीमात्र के कल्याण की भावना का नियंत्रण होना चाहिए |
परन्तु आज की स्थिति यह है की शिक्षा की प्राप्ति के लिए पहली आवश्यकता धन हो गयी है धन के बिना शिक्षा प्राप्त करना संभव ही नहीं रह गया है और इसके परिणाम भी भयंकर हुए हैं | जब शिक्षा धन की सहायता से ही मिलाती है (और एक सीमा तक केवल धन की सहायता से) तो शिक्षा का उद्देश्य भी धनोपार्जन ही रह जाता है | हमने अपने विद्यालयों में वाक्य लिखे देखे थे "शिक्षार्थ आइये सेवार्थ जाइए " परन्तु आज की वास्तविकता है की "धन की सहायता से आइये और धनोपार्जन के लिए जाइए " और
परन्तु आज की स्थिति यह है की शिक्षा की प्राप्ति के लिए पहली आवश्यकता धन हो गयी है धन के बिना शिक्षा प्राप्त करना संभव ही नहीं रह गया है और इसके परिणाम भी भयंकर हुए हैं | जब शिक्षा धन की सहायता से ही मिलाती है (और एक सीमा तक केवल धन की सहायता से) तो शिक्षा का उद्देश्य भी धनोपार्जन ही रह जाता है | हमने अपने विद्यालयों में वाक्य लिखे देखे थे "शिक्षार्थ आइये सेवार्थ जाइए " परन्तु आज की वास्तविकता है की "धन की सहायता से आइये और धनोपार्जन के लिए जाइए " और