गुरुवार, 23 जुलाई 2020

पढ़ाई ऑनलाइन

अब सो जाओ। सुबह बात करते हैं। सुबह होने में अभी कई घंटे बाकी हैं। सारी रात ही तो बाकी है। इस बेचैनी के साथ भला कैसे होगी सुबह? रात को नींद ही कहाँ आएगी! तुम इतनी परेशान मत होओ। सुबह इसका हल निकालेंगे। अभी सो जाओ। प्रयास तो बहुत किया सोने का, परन्तु नींद को तो मानो मुझसे शत्रुता हो गई थी। या कहो उसे मेरी फ़िक्र बहुत थी। आधी रात तो बस करवटें बदलने में भी चली गई और शेष बुरे स्वपनों से चैंकने में। सुबह उठी तो ऐसा लगा ही नही कि रात भर सोई भी थी। सिर और मन दोनों ही बोझिल थे। कुछ सोचा तुमने कि क्या करना है? हम्म्म....... मन है कि पहले तुमसे लड़ लूँ। मुझसे? वो क्यों भला? मैंने क्या किया? तुम ही तो इतने दिनों से हमें नाकारा सिद्ध कर रहे थे। जब तुम ही हमारी समस्या या परेशानी नही समझोगे, तो भला बाहर वालों से क्या आशा रखें? तुम तो सब अपनी आँखों से देखते हो, समझते हो। तब इतने आरोप हम पर......। और जो इस विभाग से परिचित भी नही हैं, वे तो मानो अपराधी साबित करने के अवसर ही तलाशते रहते हैं। मैंने तो तुमसे ऐसा कुछ भी नही कहा, जो तुम इतनी क्रोधित हो रही हो। क्यों भूल गए? तुम ही ने तो कहा था ना कि जब सब स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है, तो तुम्हारे सरकारी स्कूल में भी ऑनलाइन पढ़ाई होनी चाहिए। मैं तुम्हें समझा रही थी कि यह सब यकायक आरंभ नही हो सकता। जिन प्राइवेट स्कूलों में यह सब हो रहा है, वे लोग कहीं न कहीं आॅन लाइन प्रक्रियाओं से पहले से ही जुड़े हुए हैं। और जिन सरकारी स्कूल के बच्चों के साथ आप यह सब आरंभ करने के लिए कह रहे हैं, ये वे बच्चे हैं, जो आर्थिक रूप से अत्यधिक कमजोर हैं। जिनके घर खाना तक खाने के लिए नही होता, इसीलिए स्कूलों में मिड डे मील बनता है। तो भला ये बच्चे व्हाट्स अप या अन्य किसी एप पर आॅन लाइन क्लास कैसे कर सकते हैं? पर आपने मेरी बात न समझकर, यह कहा कि हम सरकारी शिक्षक काम न करने के बहाने तलाशते हैं। कुछ समस्याओं की यर्थाथता को भी समझना चाहिए। अब बताइये..... हो गई न समस्या खड़ी। मेरे कहने का यह अर्थ नही था। मैं तो बस उन बच्चों की भलाई के लिए कह रहा था। मुझे इस प्रकार की समस्या का अनुमान तक न था। आपसे अधिक विभागीय परिस्थितियों को तो हम ही समझ सकते हैं ना? और सौ में से यदि नौ-दस बच्चों के व्हाट्स अप नम्बर मिल भी गए तो बाकी के नब्बे बच्चों को कैसे पढ़ाएंगे? आपके सामने ही उन्हें फ़ोन किया है। वे किस प्रकार भद्दी भाषा का प्रयोग करते हैं। अभिभावक साफ़-साफ़ मना कर रहे हैं कि यह समय गेहूँ की कटाई का है। गेहूँ काटें या बच्चों को पढ़ाई पर बैठाएं? और तो और टीचर का नम्बर क्या मिल गया, दिन-रात कितने फ़ोन करने शुरू कर दिए! न कोई समय देखता है और न कोई मर्यादा है। कोई उल्टी-सीधी बात शुरू कर देता है। कोई सिर्फ़ इसलिए फ़ोन कर रहा कि आपसे बात करने का मन है। क्या हमारी कोई व्यक्तिगत् जिंदगी या परिवार नही है? क्या हमारी सुरक्षा सुनिश्चित नही की जानी चाहिए? क्या अध्यापक होने के नाते हमें शिक्षक-सम्मान का अधिकार नही है? उन दस बच्चों के साथ बनाए व्हाट्स अप ग्रुप में जिस भद्दी गाली से हमें सम्बोधित किया गया है, उसने तो मेरी आत्मा को ही लज्जित कर दिया। उन शब्दों का स्वयं के लिए प्रयोग मेरे आत्मसम्मान के लिए असहनीय है। हो सकता है कि किसी में गाली सहने की शक्ति हो, परन्तु मेरे लिए अत्यधिक कष्टदायी है। मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है, मानो किसी ने मेरा गला दबा रखा हो। मैं ग्रुप में बच्चों को पढ़ा रही थी। मैं क्या पढ़ा रही हूँ एक शिक्षिका होने के नाते मैं अच्छी तरह से जानती हूँ। वे जो पढ़े भी नही और इस प्रकार की अभद्र भाषा का प्रयोग कर रहे हैं, वे मुझे ‘ज्ञान’ बाँट रहे हैं कि मैंने क्या काम दे दिया? अलबत्ता तो वे समझ ही नही पाए कि यह ग्रुप बच्चों की पढ़ाई के लिए बनाया गया है। एक भी दिन उस बच्चे ने मेरे द्वारा दिया गया कोई भी कार्य कर ग्रुप में नही भेजा। पर हाँ, उसके घर में से जिसका वह व्हाट्स अप नम्बर था, उसने इतनी गंदी गाली अवश्य भेजी। क्या अब भी आप हमें नकारा कहेंगे? सिर्फ़ इसलिए कि हम पर ‘सरकारी’ होने का टैग है। ऐसा नही है। तुम ग़लत समझ रही हो। मैं जानता हूँ कि सरकारी संस्थाएँ भले ही बहुत गालियाँ खाती हैं, परन्तु देश की व्यवस्था की रीढ भी ये ही हैं। इन संस्थाओं की जवाबदेही होती है। कोई भी जिम्मेदारी वाला कार्य इन्हीं संस्थाओं को भरोसे के साथ दिया जाता है। ये सरकारी संस्थाएं ही हैं, जो किसी भी कार्य को मना करने के अधिकार से वंचित होती हैं। यदि इन्हें चाँद तोड़ने के लिए कहा जाए, तो भी एक सरकारी कर्मचारी तोड़ने के लिए निकल पड़ता है। क्योंकि न कहने का अधिकार तो उसके पास है ही नही। देश के सभी ‘बड़े’ कार्य चुनाव, जनगणना, बालगणना इत्यादि और गालियाँ खाना सभी तो सरकारी कर्मचारी को ही करने होते हैं। यदि देश में कोई महामारी फैल जाए तो प्राइवेट डाॅक्टर्स दुबक कर बैठ जाते हंै, सभी तो नही परन्तु अधिकतर। लेकिन सरकारी डाॅक्टर फ्रंट पर खड़ा होता है। इसी प्रकार सभी विभागों में यही हाल है। तो तुम भी परेशान मत होओ। तुम सरकारी हो। काम भी करो, और गालियाँ भी खाओ। आदत डाल लो। आप मज़ाक बना रहे हैं मेरा। नही, समझा रहा हूँ तुम्हें। मात्र एक बच्चे के अभिभावक द्वारा किया गया अभद्र व्यवहार तुम्हारा आत्मविश्वास नही तोड़ सकता। इस बच्चे के अभिभावक की विभाग में शिकायत करो। और बाकी बच्चों के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन करो। न घबराओ, न परेशान होओ। बस अपना कर्म करो। थैंक्यू। मैं आपकी बात समझ गई। आप सही कह रहे हैं। मैं ज़रा बच्चों को आज का काम दे दूँ।

मंगलवार, 7 मार्च 2017

डियर जिं़दगीः डियर बच्चे

रात के एक बजे का सन्नाटा और ‘‘डियर जिं़दगी’’ का अन्तिम दृश्य। एक अनोखी, भिन्न एवं संवेदनशील विषयक फ़िल्म। अत्यन्त खास। ‘खास’ इसलिए कि यह कहीं न कहीं, किसी न किसी प्रकार से हम सबकी ज़िंदगियों एवं जीवन-शैलियों से संबंधित है। कदाचित इसीलिए इसकी कहानी दिल को न केवल छू गई अलबत्ता दिल को ‘लग’ गई। बाध्य कर दिया इस फ़िल्म ने रात के एक बजे लिखने के लिए। अनिंद्रा ने प्रातःकाल की प्रतीक्षा की अनुमति प्रदान नहीं की। भोर का विलम्ब कहीं भावनाएँ की आँधी के वेग को कम न कर दे। एक भी संवेदना अलिखित न रह जाए। इस भगौडे़ वक्त का भी तो भरोसा नहीं। इस विषय पर आरंभ करने से पूर्व फ़िल्म की निदेशिका ‘गौरी शिंदे’ को बहुत-बहुत धन्यवाद एवं शुभकामनाएँ, जिन्होंने इतने संजीदा विषय को इतनी खूबसूरती से प्रस्तुत किया। समस्त अभिनेता एवं अभिनेत्रियों को बधाई। मुख्यतः आलिया भट्ट। आलिया से बेहतर इस भूमिका को कोई और अभिनेत्री निभा ही नही सकती थी। बहरहाल, पुनः फ़िल्म के विषय की ओर ध्यानस्थ होते हुए। ‘‘बच्चे’’, ढाई अक्षर का बेहद वजनी शब्द। एक अकथित जिम्मेदारी। हमारे जीवन की अभिन्न एवं अनमोल धुरी। प्रत्येक परिस्थिति में इनकी ढाल बन हम इन्हें प्रसन्न एवं सम्पन्न देखना चाहते हैं। हमारे दिन-रात मात्र इनके दुःख-सुख की चिंता में व्यतीत होते हैं। उनके भविष्य के लिए विचलित एवं चिंतित, उनके वर्तमान के लिए भयभीत, उनके लिए विभिन्न योजनाएँ बनाते-बनाते हम अपने सुख एवं आनंद से बेपरवाह हो गए हैं। हालांकि उन्हें एक अच्छा एवं समृद्ध जीवन देने की हमारी अति-अभिलाषा ने हमें कहीं यथार्थता से दूर भी किया है परन्तु माता-पिता ऐसे ही होते हैं। अपने अरमानों एवं स्वपनों की आहुति से बच्चों के उज्ज्वल भविष्य को प्रदीप्त करते ‘माता-पिता’। परन्तु यदा-कदा त्यागों की श्रृंखला लम्बी करते-करते हम बच्चों की हमसे वास्तविक अपेक्षाओं की अवहेलना कर जाते हैं। बलिदानों की कृतज्ञता से बच्चों को दबाकर उनके सम्मुख हम अपनी महानता एवं श्रेष्ठता प्रस्तुत करना चाहते हैं। परन्तु क्या वास्तव में हमारे बच्चे हमारी उस महानता के लोभी हैं? या वे हमसे कुछ और ही आस लगाए हैं? इस फ़िल्म की बात करें तो ‘कायरा’ जिसके इर्द-गिर्द यह सारी पटकथा घूम रही है, वह अपने माता-पिता से वास्तव में क्या चाहती है, यह वे समझ ही नहीं सके। उसके माता-पिता उसकी भलाई समझते हुए उसे उसके नाना-नानी के पास छोड़ अपना बिजनेस सेट करने चले जाते हैं। किंतु एक बच्चे के मृदुल मन पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है, इससे वे अनभिज्ञ थे। मुझे अपनी मित्र की एक बात अक्सर याद आती है और अपने बच्चे के प्रति संवेदनशील रहने के लिए कभी उस बात को विस्मृत नहीं किया जा सकता। मैं नहीं चाहती कि कभी अज्ञानतावश भी मैं वह भूल कर जाऊँ, जिसका दुष्प्रभाव उसके मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़े हुए है। मेरी मित्र की मम्मी उसे दो माह की आयु में छोड़कर विदेश घूमने चली गई थी। आज भी वह पैतींस वर्षीय मित्र अपनी माँ से इस बात के लिए रूष्ट है। एक प्रश्न उसे बार-बार कौंधता हैै- ‘‘क्या घूमना मुझसे भी अधिक आवश्यक था माँ?’’ गौरतलब यह भी है कि दो माह की बच्ची के साथ घटित इस घटना को किसने और किस प्रकार उसके सम्मुख प्रस्तुत किया? ऐसा क्या बताया या सिखाया गया कि उसके मासूम मन पर इतनी गहरी चोट लगी। संभवतः उसकी माँ घूमने न जाकर किसी विशेष कार्य के लिए गई हो। कुछ भी हो सकता है परन्तु बाल-मन पर उन बातों का क्या प्रभाव पड़ा, यह विचारणीय है। मेरे संज्ञान में ऐसी कई महिलाएँ हैं जो मुरादाबाद से मेरठ प्रतिदिन यात्रा कर नौकरी कर रही हैं। उनके गन्तव्य तक का आने-जाने का सफ़र लगभग 300 किमी. प्रतिदिन है। प्रातः तीन बजे उठना। कभी ट्रेन तो कभी बस। सुबह-सुबह की परेड। मार्ग में प्रतिदिन एक नया अनुभव। विभिन्न प्रकार के लोग। कई स्वस्थ व्यक्ति के रूप में मनोरोगी। प्रतिदिन जीवन का खतरा। सुबह निकले तो हैं पर रात को घर लौटंेगे या नहीं। कभी रात को सात बजे घर आना, तो कभी नौ बजे। तीन बजे से भागते-भागते रात को बारह बजे तक भागना। उनमें से कई महिलाओं के पति भी किसी अन्य शहर से आते-जाते इसी प्रकार का जीवन व्यतीय कर रहे हैं। दिनभर अपनी-अपनी नौकरी कर ये पंक्षी रात को अपने रैन-बसेरे में वापस लौट आते हैं। वे दोनों मात्र एक प्रश्न के भय से भाग रहे हैं- ‘‘आप दोनों मुझे नाना-नानी के घर छोड़कर पैसा कमाने चले गये थे। आपको आपके करियर से प्यार था, मुझसे नहीं। मुझे आप दोनों चाहिए थे पैसा नहीं।’’ इन वाक्यों के भय ने उन सबकी ज़िंदगी का रूख मोड़ दिया है। बहुत सरल-सा प्रतीत होता है यह ‘अप-डाउन’ शब्द। परन्तु इसके पीछे के कष्ट कई बार असहनीय हो जाते हैं। रात की नींद से रू-ब-रू मात्र छुट्टियों में ही हो पाते हैं। जब सारी दुनिया भयंकर सर्दियों में रात के तीन बजे की गहरी नींद में मूर्छित-सी होती है उस समय इनकी रसोइयों में खाना पक रहा होता है। नींद की तो मानो इनसे शत्रुता गई हो। थकान ने स्थाई तौर पर इनकी देह में प्रवेश कर लिया हो। अब तो अहसास होना भी बंद हो गया है। रात को अपने बच्चे के चंद घंटों के साथ के लोभ में ये प्रतिदिन भागते रहते हैं। अगले दिन की भागदौड़ के लिए जब ये बच्चे को रात को नानी-दादी के घर छोड़कर जाते हैं तो बच्चे के द्वारा प्रतिदिन कहे जाने वाले शब्द ‘मम्मी जाना नहीं’ आज यह फ़िल्म देखकर डरा रहे हैं। कहीं कल हमारे बच्चे हमसे यह शिकायत तो नहीं करेगें कि आप तो मुझे छोड़कर चले जाते थे! शायद इसीलिए रात के एक बजे विचारों की भँवर में डूबे नींद का दामन छोड़ कलम को उँगलियों में सुशोभित कर दिया है। क्या समझा पाएँगे ये माता-पिता अपने बच्चों को अपनी मजबूरी, अपनी जटिलताएँ। क्या समझ पाएगा वह कभी कि क्यों उसके माता-पिता उसे छोड़कर जाने के लिए बाध्य हैं? न जाने कितने माता-पिता अपने बच्चों व परिवार के लिए प्रतिदिन के खतरों व कष्टों को झेलते हुए नौकरी कर रहे हैं। कितनी ही माएँ अपने दूधमुहे बच्चे के साथ सामान के बोझ से लदी अकेली ही ट्रेनों व बसों का सफ़र करती हैं। अपने परिवारों से हजारों किमी दूर, अनजानी जगह-अनजाने शहर में परेशान-बेबस। केवल माँ ही नहीं वरन् लाखों पिता भी अपने बच्चों से दूर उनके सुखी भविष्य के लिए नौकरी की मजबूरी में अलग-अलग शहरों से सफ़र करते हैं। एक समाचार-पत्र के अनुसार लगभग डेढ लाख लोग मेरठ से दिल्ली प्रतिदिन सफ़र करते हैं। यह आँकड़ा मात्र मेरठ से दिल्ली के बीच के मुसाफ़िरों का है। और भी न जाने कितने शहरों एवं गाँवों की इसी प्रकार की स्थिति है। यह सही है कि सबको मनपसंद स्थान पर काम मिलना या सरकार की तरफ से दिया जाना सरल नहीं। परंतु जहाँ सरल किए जाने की संभावना एवं साधन हैं, वहाँ तो प्रयास किए जाने चाहिए। यात्रा के सुगम एवं सुरक्षित परिवहन साधनों की व्यवस्था, महिलाओं के लिए ट्रांसफर के सरल नियम, नौकरी के स्थान की परिसीमा में रहने की बाध्यता समाप्त करना इत्यादि। सामाजिक प्रतिष्ठा से लेकर पारिवारिक दायित्वों के निर्वहन तक ‘नौकरी’ शब्द अपनी अहम भूमिका निभाता है। यह मजबूरी भी है और आवश्यकता भी। परन्तु इन सबके साथ-साथ एक अन्य शब्द की भी अवहेलना नहीं की जा सकती। वह है परिवार। मुख्यतः बच्चे। देश, परिवारों से बनता है और यदि परिवार ही बिखर जाएंगे तो देश के अस्तित्व की कल्पना ही बेमानी है। यदि प्रत्येक व्यक्ति अपने देश को एक शिक्षित एवं संस्कारी परिवार दे दे तो देश से भ्रष्टाचार, बेइमानी, अपराध जैसे व्याधियाँ स्वतः कम हो जाएंगी। ‘‘कोई व्यक्ति देश के लिए कितने घंटे कार्य करता है, से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है वह देश के लिए किस प्रकार के कार्य करता है’’। यदि व्यक्ति अपने कार्यस्थल पर संतुष्ट नहीं है और अपने परिवार तक वह कुंठा लेकर जाता है तो निश्चित रूप से उसके परिवार में संतोष-सुख जैसे शब्दों को स्थान नहीं मिल सकेगा। और यहीं से परिवार की खूबसूरत तस्वीर बदरंग होनी शुरू हो जाएगी। परिणामस्वरूप जाने-अनजाने व मजबूरी में ऐसे परिवारों में अपराधिक प्रवृत्तियों का जन्म होना प्रारंभ हो जाता है। हम भारत में अमेरिका की कल्पना करते हैं। ब्रेन-डेªन की आलोचना करते हैं। परन्तु इसके पीछे के वास्तविक कारणांे का सामना नहीं करना चाहते। कितनी ही बार यह विषय चर्चा में रहता है कि भारत का टेलंेट बाहर विदेशों में क्यांे जाता है? कारण स्पष्ट है, जिसे हम ‘जॉब सेटिस्फैक्श’ के नाम से भी जानते हैं। बहरहाल बात शुरू की थी ‘डियर ज़िंदगी’ से। निश्चित रूप से बच्चे मासूम होते हैं। वे प्यार के साथ-साथ आपका स्नेही स्पर्श भी चाहते हैं। आपकी व्यस्तताओं को समझने की समझ उनमें नहीं होती। बहुत सरल एवं ज़िंदगी की कटुता से अनभिज्ञ ये मासूम न जाने किस बात पर आपसे नाराज हो जाएं, आप समझ भी न सकेंगे और ये कह भी न सकेंगे। ‘काम-काम-काम’ ये भाषणों तक रहने दे लेकिन वास्तविक जीवन में परिवार को समय दें। विशेष रूप से बच्चों को। उनका बचपन फिर कभी नहीं लौटेगे। उनकी नन्हीं शरारतें जो आज आपको परेशान भी कर जाती है अगर खामोश हुई तो तड़प उठंेगे आप। ख्याल रखिए उनका।

रविवार, 29 जनवरी 2017

पूर्वांचल ब्लागर्स मंच के संयोजक आशुतोष नाथ तिवारी को मिला उत्कृष्ट शिक्षक का सम्मान

पूर्वांचल ब्लागर्स मंच के संयोजक आशुतोष नाथ तिवारी को मिला उत्कृष्ट शिक्षक का सम्मानI
देवरिया  गणतंत्र दिवस के अवसर पर 26 जनवरी 2017 को पूर्वांचल ब्लागर्स असोसिएशन के संयोजक एवं वर्तमान में उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में रुद्रपुर विकासखंड में प्राथमिक विद्यालय सोनबह में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत,पूर्वांचल ब्लागर्स मंच के पूर्व अध्यक्ष आशुतोष नाथ तिवारी  को जिलाधिकारी अनिता श्रीवास्तव एवं पुलिस अधीक्षक मोहम्मद इमरान ने सम्मानित किया
श्री तिवारी को यह  सम्मान  शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार एवं अपनी उत्कृष्ट सेवाएँ देने के लिए मिला श्री तिवारी ने विगत कुछ माह से अपनी सेवाएँ बेसिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश को देना प्रारम्भ किया  है I शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार के लिए कार्यरत श्री तिवारी सामजिक कार्यों एवं राष्ट्रवादी लेखन से जुड़े रहें हैं I श्री तिवारी ने इस सम्मान के लिए समस्त ब्लाक रिसोर्स  सेंटर  के समस्त प्रभारियों एवं  अधिकारीगणों का  आभार व्यक्त  करते हुए कहा  कि “ शिक्षा का अंतिम साध्य बच्चों का सर्वांगीण विकास है और  वर्तमान शिक्षा में नैतिकता  और चारित्रिक मूल्यों  का एक नया आयाम जोड़ना छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए अति आवश्यक है I गणतंत्र दिवस समारोह में देवरिया जिले के विभिन्न स्कूलों से आये बच्चों ने रंगारंग कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया जिसमें उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले विद्यालयों को जिलाधिकारी अनीता श्रीवास्तव  ने सम्मानित किया I
(खबर साभार : गीत)

रविवार, 27 नवंबर 2016

नहीं रहे क्यूबा की क्रांति के जनक और वामपंथ के स्तम्भ फिडेल कास्त्रो



फिडेल कास्त्रो एक घोर अमरीका विरोधी वामपंथी थे। क्यूबा की क्रांति के इस जनक को 1952 में 18 साल की जेल हुई मगर 1955 में माफ़ी दे दी गयी और ये मैक्सिको चले गए वहां इनकी मुलाकात चे घिवेरा से हुई ..वहां से सन 1956 में वामपंथी आतंकी चे घिवेरा के साथ 81 लोग वापस क्यूबा आये और क्यूबा में घुसते ही इनसे क्यूबा की पुलिस से मुठभेड़ हुई और 18 जिन्दा बचे जिसमे फिडेल और घिवेरा भी शामिल थे..2 राइफल और 18 लोगो के साथ शुरू हुआ सत्ता से संघर्ष ,1959 में क्यूबन तानाशाह फुलखेंशियो बतिस्ता को गद्दी से हटाकर फिडेल के सत्ता प्राप्त करने पर खत्म हुआ..कास्त्रो 47 साल तक क्यूबा के प्रधानमंत्री रहे..सिगार तथा बेसबॉल के शौक़ीन और यूएन में सबसे लंबा भाषण (लगभग साढ़े चार घंटे लगातार) देने वाले फिडेल कास्त्रो को सेक्स के लिए दिन में 2 से 3 अलग अलग लड़किया अपने बिस्तर पर चाहिए थी। क्यूबा के इस वामपंथी तानाशाह नेता के नाम कई जनसंहार और बिस्थापन दर्ज है मगर फिडेल के खाते में एक ऐसे क्रन्तिकारी तानाशाह(एकदलीय प्रणाली की छाया में बैठा हुआ तानाशाह) की छवि भी है जो अमरीका को आजीवन नाको चने चबवाता रहा.मगर इसी कारण क्यूबा पूरे विश्व से अलग थलग हो गया और वहां की अर्थव्यस्था तबाह हो गयी..फिडेल कास्त्रो एक ऐसा कम्युनिष्ट तानाशाह जिसके विरोधियों के पास दो ही रास्ते होते थे या तो वो मारे जायेंगे या क्यूबा छोड़ देंगे...फिडेल कास्त्रो एक ऐसा कम्युनिष्ट तानाशाह जिसे अमरीका समेत कई ख़ुफ़िया एजेंसिया मिल कर भी नहीं मार पाई..CIA ने फिडेल कास्त्रो को मारने के लिए 650 से ज्यादा बार प्रयास किये मगर अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी हर बार विफल रही..
एक बार नास्तिक वामपंथी फिडेल कास्त्रो ने कहा था की मैं भगवान को नहीं मानता था मगर CIA और अमरीका द्वारा कई दशको तक मुझे मारने के सैकड़ो प्रयास के बाद भी मैं जीवित बचा हूँ,इससे मुझे लगने लगा है की भगवान होता है...
खैर आज फिडेल कास्त्रो इस दुनिया में नहीं है और शोक के साथ साथ एक बड़ा हिस्सा हवाना में जश्न भी मना रहा है..आने वाला समय और क्यूबा की अगली पीढी इस वामपंथी कम्युनिष्ट तानाशाह का क्यूबा के निर्माण (या विध्वंस)में योगदान को तय करेगी..
आशुतोष की कलम से

रविवार, 9 अक्तूबर 2016

औचित्यहीन तीन तलाक प्रथा

मुस्लिम महिलाओं के संगठन ने तीन बार तलाक की प्रथा के खिलाफ अर्जी दी है और सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से उनकी राय जाननी चाही..केंद्र सरकार स्पष्ट रूप से उन महिलाओं के साथ खड़ी है और तीन तलाक प्रथा को औचित्यहीन बताया है..भारत तथाकथित और क़ानूनी रूप से एक सेकुलर देश है तो कानून सबके एक जैसे हो इससे भी इतर कई मुश्लिम देश तीन तलाक प्रथा के खिलाफ है तो भारत क्यों नहीं?? मानवाधिकार की दृष्टि से देखे दरअसल तीन तलाक प्रथा नारी शोषण के लिए उपयोग की जा रही है..
अगर कोई मुस्लिम युवक अपनी पत्नी को तीन बार तलाक तलाक तलाक बोल दे तो हो गया तलाक..कभी कभी दारु के नशे में बोल दे तलाक तलाक तलाक तो हो गया तलाक..कभी लड़ाई हुई और जोश में बोल दिया तलाक तलाक तलाक तो हो गया तलाक....अब रही बात जीवन यापन कैसे करेगी तो कांग्रेस के राजीव गांधी ने शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट के मुह पर थप्पड़ मारते हुए मुसलमान समुदाय के लिए कानून बना के ये निश्चित कर दिया की शौहर फूटी कौड़ी नहीं देगा तलाक के बाद... और तो और शौहर को अगर गलती का पछतावा हुआ तो इससे बड़ी पीड़ा उसकी पत्नी झेलेगी.मुस्लिम विवाह नियमो के अनुसार पहले वो किसी और शक्श से शादी करेगी उसके साथ सोयेगी फिर वो व्यक्ति उसको तलाक तलाक तलाक करके तलाक दे देगा उसके बाद वो पुनः अपने पुराने शौहर के पास चली जायेगी...
ये कैसा अत्याचार???गलती दारू के नशे में शौहर करे और भुगतान उसकी बेगम दूसरे के बिस्तर पर करे..क्षमा कीजिये ये भारत है इराक सीरिया लीबिया या सूडान नहीं..
सभी मुस्लिम संगठनो को आगे आके एक सुर में इस अत्याचारी प्रथा का विरोध कर मुस्लिम महिलाओं को सशक्त बनाने में सहयोग करना चाहिए..विश्वास रखिये कठमुल्ले इसका विरोध करेंगे,फतवे देंगे मगर एक बार मुस्लिम बहनो ने ये बाधा पार कर ली तो विकास की अनंत संभावनाएं सामने हैं...
सबका साथ सबका विकास
जय हिन्द
आशुतोष की कलम से

बुधवार, 20 जुलाई 2016

सिकंदर(Alexander‬ ‪)- विश्वविजेता या एक पराजित लुटेरा शासक ? Part-2

सिकंदर के भारत में विजय और पोरस को पराजित करने की जो झूठ गाथा कांग्रेस पोषित कम्युनिष्ट इतिहासकारों ने लिखी थी उसको सिकंदर के समसामयिक ग्रीक और रोमन इतिहासकारों ने ही झुठला दिया..इसी सन्दर्भ में सिकंदर की पराजय पोस्ट की पहली कड़ी ,मैंने कुछ दिन पहले पोस्ट की थी उसे आप इस लिंक पर http://goo.gl/UO8hkG पढ़ सकते हैं..अब आगे बढ़ते हैं,
तक्षशिला नरेश आम्भी से सिकन्दर की पुरानी मित्रता और पोरस से शत्रुता का झूठ : तक्षशिला नरेश आम्भी का चित्रण वामपंथी कम्युनिष्ट इतिहासकारों ने इस प्रकार किया है की उसका पोरस से बैर था और इसी कारण सिकंदर के साथ वह जा मिला. और सिन्धु नदी आसानी से पार कर गया, अब यूनानी लेखक कर्टियस(curtius Quintus) के अनुसार तक्षशिला नरेश आम्भी और सिकंदर की पहली वार्ता इस प्रकार थी
●●“what occasion is there for wars between you and me ,if you are not come to take from us our
water and other necessaries of life; the only thing reasonable men will take up arms for? As to gold and silver and other possessions, if I am richer than you, I am willing to oblige you with part; If I am poor, I had no objection to sharing in your booty.’’ (Plutarch, Page no 20)●●

मतलब आम्भी ने कहा की यदि तुम हमारा अन्न जल छिनने के लिए नहीं आये हो,जिसके लिए युद्ध हुआ करते हैं तो हम क्यू लड़ें??और यदि तुम्हे सोना,चांदी या धन की इच्छा से आये हो और मानते हो की मैं तुमसे ज्यादा धनी हूँ तो मैं इसका एक हिस्सा देकर तुम पर एहसान करना चाहूँगा और यदि तुम्हे ऐसा लगता है की तुम धनी हो तो, तो तुम्हारे लूटे हुए धन में से लेने में मुझे संकोच नहीं है.

इतना सुनने के बाद कोई नहीं कह सकता की इनमे मित्रता रही होगी और कोई स्वाभिमानी विजेता रहता तो तक्षशिला नरेश आम्भी का सर काट देता या स्वयं डूब मरता मगर ऐसा नहीं हुआ और किसी स्वार्थवश इन दोनों को मित्रता यहाँ हो गयी. मित्रता क्यू हुई इसका अनुमान ही लगाया जा सकता है न तो रोमन न ही यूनानी न ही भारतीय इतिहास में इसका विवरण उपलब्ध है. परन्तु यहाँ उस एक झूठ से पर्दा अवश्य उठ जाता है जो कांग्रेस पोषित कम्युनिष्ट इतिहासकारों ने फैलाया है की तक्षशिला नरेश आम्भी से सिकन्दर की पुरानी मित्रता और पोरस से शत्रुता थी..
सिकंदर ने विभिन्न राजाओं के पास अपनी अधीनता स्वीकार करने हेतु दूत भेजे..पोरस ने सिकंदर के दूत से कहवा भेजा कि, सिकंदर से अब मुलाकात युद्ध के मैदान में ही होगी.और उसने झेलम किनारे अपनी सेना को तैयार रहने को कहा ..पोरस का पडोसी अभिसार नरेश था जिससे पोरस की मित्रता थी और इन दोनों ने साथ मिलकर कई राज्यों को जीता था. अभिसार नरेश की रिश्तेदारी उन अश्वको से भी थी जिन्होंने सर्वप्रथम सिकंदर की सेना को 9 माह रोके रक्खा था .उन्होंने “ओनस(Aornus)” दुर्ग पर सिकंदर के अधिकार के बाद कई अश्वाकों को अपने राज्य में शरण भी दी थी. अतः अभिसार नरेश अनिर्णय में थे की सिकंदर का साथ दें या पुराने मित्र पोरस का...अतः उन्होंने सिकंदर के भेजे गए दूत को बंदी बना लिया जिससे की सिकंदर को सही स्थिति पता न चले और वो स्वयं पोरस से मिलने की तैयारी में लग गए . सिकंदर को अभिसार नरेश की इस चाल का आभास हो गया और वो अपने नए नए बने मित्र तक्षशिला नरेश आम्भी के साथ दोनों सेनाओ को लेकर झेलम किनारे पोरस से युद्ध करने चले आये और इस युद्ध में पोरस अकेला रह गया था .पोरस की सेना झेलम किनारे कडीग्राम के पास थी और वहां शत्रु की हलचल देख रही थी.झेलम में बाढ़ थी नदी की विकराल बाढ़ को देखकर नदी पार करना असंभव था .
इस पस्थिति में सिकन्दर की मनोदशा का वर्णन निम्न दो वक्तव्यों से हो जाता है.

●विसेंट स्मिथ के शब्दों में “ सिकंदर भारतीय सेना का संगठन देखकर वहीं ढीला पड गया.”
●सिकन्दर पर लिखने वाले यूनानी इतिहासकार एरियन के शब्दों में “सिकंदर ने वहां से चोरी छिपे हटने का निर्णय किया"

●●It was clear to Alexander that he could not effect the crossing at the point where Porus held the opposite bank, for his troops would be attacked as they tried to gain the shore, by a powerful and efficient army, well equipped and supported by a large number of elephants, moreover, he thought it likely that his horse, in face of an immediate attack by elephants, would be too much scared by the appearance of these beasts and their unfamiliar trumpetings to be induced to land-indeed, they would probably refuse to stay on the floats, and at the mere sight of the elephant in the distance would go mad with terror and plunge into the water long before they reached the further side.

अब यूनानी इतिहासकार एरियन को पढ़कर स्पष्ट है की सिकंदर पोरस की सेना और हाथियों को देखकर भयभीत हो गया था और उसे डर था की ये हाथी उसके घोड़ो और पैदल सैनिको को नदी में ही डूबा डूबा कर मार डालेंगे.ये देखकर सिकंदर ने ये प्रचार करवा दिया की वो कम से कम 6 माह तक झेलम किनारे रुकेगा और इस बात को सत्य सिद्ध करने के लिए कई सैनिको को घोड़ो का चारा लाने को भेज दिया. इस बीच उसने नदी का कई जगहों से मुआयना करने के बाद लगभग 6-7 सप्ताह में नदी पार करने लायक एक किनारा खोज निकाला जो की 16 मील उत्तर की ओर नदी के जंगलो से घिरे एक टापू के समीप था . अब उसने क्रेटस नाम के अधिकारी को तक्षशिला की 5000 सेना देकर वर्तमान कैम्प की निगरानी करने को कहा और छिपकर नदी पार करने वाली जगह पर सैनिको को तैनात करके स्वयं नदी पार करने को निकला सेना को आदेश था की जैसे ही सिकंदर नदी पार कर जाये नदी पार करने वाली जगह के सैनिक पीछे से पोरस के सैनिको पर हमला करे और पहले कैम्प की सेना मुख्य आक्रमण के समय उसका साथ दे. उस रात भीषण वर्षा और तूफ़ान के कारण सिकंदर के नदी पार करने की गतिविधि का ज्ञान पोरस की सेना को नहीं हो पाया और सिकंदर नदी पार कर गया.. सिकंदर का दुर्भाग्य ये था की नदी पार करके वो सही जगह न पहुच कर एक टापू पर पहुच गया और सवेरा होते ही पोरस के सैनिको को उसकी चाल का पता लगा गया और जब सिकंदर कड़ी के मैदान में पंहुचा तो सामने पोरस के सैनिको से सामना हुआ .

अगले भाग में महाराजा पोरस के पुत्र के साथ हुआ कडी के मैदान का युद्ध जिसमें सिकंदर की सेना की पोरस के सेना के हाथियों ने धज्जियाँ उड़ा दी और सिकंदर का घोडा मार गया और सिकन्दर बुरी तरह घायल हो गया..

आशुतोष की कलम से

गुरुवार, 7 जुलाई 2016

आतंक का मजहब (Religion_of_Terror‬)

आशा है की इस पोस्ट से तर्क और सत्य स्वीकारने वाले राष्ट्रवादी मुस्लिम बंधुओं की भावना आहत नहीं होगी..मैं बहुत स्पष्टता से कहना चाहता हूँ की आतंक का स्थापित मजहब इस्लाम है और पूरा विश्व इसे सदियों से देख रहा है। जो मुसलमान भाई आतंकवादी गतिविधियों से दूर है उन्हें इस सच से कष्ट नहीं होना चाहिए।

पड़ोस के बांग्लादेश में आतंकवादियों ने हमला किया और कुछ लोगों को बंधक बना लिया। यहाँ तक इसे मैं धर्म से दूर रख सकता था मगर बंधकों की हत्या का क्राइटिरिया क्या बनाया इन्होंने??
"हाथ में अरबी में लिखी कुरान दे दी और जिसने कुरान की आयते पढ़ लीं उन्हें जाने दिया जो कुरान की आयते नहीं पढ़ पाये उन्हें रमजान के पाक माह में,अल्ला हो अकबर के नारे के साथ उनके गले को चाक़ू से रेतकर मार डाला गया ....."
कुरान न पढ़ पाने वालों की हत्या करते ही आतंक का मजहब स्थापित हो गया..न तो कुरान न पढ़ पाने वालों की हत्या करने का ये पहला मामला है,न ही ये आखिरी होगा..पुरे विश्व में ये हो रहा है और पूरा विश्व आँखों पर सेकुलर चश्मा लगाये हुए बैठा है..
क्या आप को याद आ रहा है की पूरे विश्व में कितनी घटनाएं हुई हैं जब "वेद" "गीता" "रामचरितमानस","ओल्ड या न्यू टेस्टामेंट","गुरु ग्रन्थ साहिब","जींद अवेस्ता" न पढ़ पाने वाले की आतंकवादियों ने हत्या की हो..शायद नहीं या कोई खोद कर ले आये तो 50-100 सालों में एक बार.मगर कुरान के नाम पर रोज हत्या,अल्लाह के नाम पर रोज बम विस्फोट...ये कौन सा मजहब है ये कौन सा धर्म है???
भारत में स्थिति में सबसे दुखद वर्तमान मुसलमान बिरादरी का भ्रम है की वो औरंगजेब और बाबर की औलाद हैं। 99% मुसलमान ये सत्यता जानते हैं और मन ही मन मानते भी हैं की उनके पुरखे हिन्दू थे और इसी प्रकार गला रेतकर,बलात्कार,जजिया के दम पर कलमा पढ़वाया गया उनसे..मगर आज हो क्या रहा है ISIS के 5 संदिग्ध आतंकवादी पकडे जाते हैं तो ओवैसी उनके लिए करोडो के वकील ले कर खड़े हैं।अब्दुल कलाम के जनाजे में भले ही मुट्ठी भर लोग रहे मगर "आतंकवादी याकूब मेमन" का जनाजा धूमधाम से निकलेगा..लादेन के लिए जयपुर के मस्जिद में नमाज होगी और कश्मीर में भारत मुर्दाबाद होगा..
बात सिर्फ हिन्दू मुसलमान की नहीं है बात है दुनिया के दो धड़ों की , नमाजी और काफ़िर..अभी बांग्लादेश में या भारत में नमाजी काफ़िर को मार रहा है "काफ़िर" वही जो कुरान नहीं पढ़ पाये..इससे भी आगे बढे तो असली कहानी है खूनखराबे के मूल से उदभव की..
पाकिस्तान,अफगानिस्तान,सीरिया,कुवैत,लेबनान लीबिया,सूडान...... यहाँ जितने गैरमुस्लिम काफ़िर थे उन्हें या तो मार डाला गया या वो भारत के वर्तमान मुसलमानो की तरह नमाजी बन गए..मगर फिर भी रोज वहां हत्याएं हो रही है.वहां नमाजी में भी 3 टाइम वाला या 5 टाइम वाला देखकर गला रेता जा रहा है.मतलब खूनखराबे का कोई न कोई रास्ता निकाल लिया जायेगा. जैसे केजरीवाल हर बात पर मोदी की माला जपता है इस्लामिक बुद्धिजीवी हर बात में अमरीका के हाथ की माला जपते हैं जबकि लादेन,अल जवाहिरी,आईएसआईएस, जैसे आतंकवाद के स्थापित और अमिट हस्ताक्षर मस्जिदों में तकरीर करके ही आगे बढे हैं..
सभी मुस्लिम भाइयों से अनुरोध है की सत्य स्वीकारिये और इनका प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन बंद करें क्योंकि जब कोई "काफिर" नहीं रहेगा तो ये आग आप के घर में भी लगेगी. आज वही देश ज्यादा सुरक्षित हैं जहाँ काफिरों की संख्या ज्यादा है.. भारत के सभी काफिरों(गैरमुश्लिम) और सूवरों(छद्मसेकुलर) को सन्देश ये है की इस भुलावे में न रहे की आप बचे हैं अलकायदा का भारतीय चीफ संभल उत्तर प्रदेश का है और ISIS के समर्थन में मुकदमा लड़ने वाले ओवैसी बंधू भारत के ही हैं. अरीब मजीद ISIS का लड़का महाराष्ट्र का है तो यूपी वाले सीरिया में शहादत दे आये हैं.. तो आप या तो प्रतिउत्तर के लिए तैयार रहें या मरने के लिए....
एक रास्ता और भी है "कुरान की कुछ आयते याद कर लें,शायद अगली बार आपका गला कटने से बच जाये"...

शुक्रवार, 11 मार्च 2016

JNU छाप बुद्धिजीवी वर्ग में पाँव पसारती #Congiunism की विचारधारा


भारत में एक नयी विचारधारा का जन्म हो रहा है..कांग्रेस और कम्युनिज्म के देशद्रोही गठबंधन की जिसमें इस्लामिक जेहाद और हिन्दू विरोध का स्वाभाविक सा तड़का लगा हुआ है..इसे मैंने #Congiunism का नाम दिया है..
जानिये इस #Congiunism के मूल तत्व क्या हैं..
ये कांग्रेस और कम्युनिष्ट की सम्मिलित विचारधारा है..
 ये भारत को जोड़ने में नहीं बल्कि तोड़ने में विश्वास रखती है 
ये कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानते.
ये लोग दुर्गा माता को वेश्या कहते हैं..
ये लोग भारतीय सेना के जवानो की मौत का जश्न मनाते हैं.
 ये भारतीय सेना के लीगों को बलात्कारी कहते हैं.
 इनके आदर्श अफजलगुरू हैं.
 ये जेएनयू दिल्ली में ज्यादा मिलते हैं।
 इनके प्रमुख सहयोगी राहुल गांधी,अरविन्द केजरीवाल,ABP News,NDTV और आज तक हैं..
आशुतोष की कलम से 

ट्विट@ashu2aug
कृपया इस विचारधारा के महान विचार सबसे शेयर करें...

भारतीय सेना बलात्कारी है: कांग्रेसी सपोला कामरेड कन्हैया

कांग्रेस,कम्युनिष्ट और केजरीवाल का पाला हुआ एक सपोला अपनी जेएनयू की बिल से बोल रहा है की भारतीय सेना बलात्कारी है..
मेरा प्रश्न उस सपोले से नहीं उसे दूध पिलाने वाले कांग्रेसी,वामपंथी और केजरीवाल की टोपी गैंग से है।
बाढ़ से लेकर पुल बनाने तक सेना चाहिए। जब आतंकवादियों से तुम्हारी पैंट गीली पीली हो तो भी सेना चाहिए जब भूकंप में तुम्हारा घर तबाह हो तो सेना चाहिए और जब सीमा पर गोली चले तब तो सेना चाहिए ही..कई कांग्रेस,वामपंथी,केजरीवाल जैसे नेताओं ने अपने घरों की महिलाओं की सुरक्षा में सेना को तैनात कर रखा है तो अगर सेना बलात्कारी है तो तुम सबकी बहनो,बेटियों और पत्नियों का बलात्कार हुआ होगा जिन्होंने सैनिको की सुरक्षा या सेवा ली है..
सबसे पहल प्रश्न तो जेएनयू के गद्दारों के साथ खड़े राहुल गांधी के वंशावली पर हो जायेगा क्योंकि उनके नाना,दादी,दीदीमम्मी सबने भारतीय सेना की सेवाएं ली हैं और ले रही हैं.केजरीवाल जी आप की बिटिया और पत्नी भी यदा कदा सुरक्षा लेती हैं..वामपंथियों का क्या कहना सेना के जवान के मरने का जश्न भी मनाते हैं और सुरक्षा में सेना का जवान भी चाहिए..
यदि सेना बलात्कारी है तो 24 घंटे सेना के भरोसे साँस लेने वालों तुम सब अपने पिता की संतति कैसे हो गए??तुम सबकी बाप हुई #भारतीय_सेना..
कांग्रेसियों,कम्युनिष्ट और केजरीवाल के गुंडों Narendra Modi को गाली देना स्वीकार है मगर देश को या भारतीय सेना को गाली देकर तुम ये साबित कर दे रहे हो की तुम्हारे जन्म से माह पहले तुम्हारी अम्मीजान जरूर लाहौर के "हीरामंडी" का पर्यटन करके आई होंगी...

 आशुतोष की कलम से
टवीट:  @ashu2aug


मंगलवार, 12 जनवरी 2016

आर्यभट्ट एवं शून्य के आविष्कार से सम्बंधित भ्रान्ति (Zero in india)

आज कल हिन्दू संस्कृति विरोधीयों ने एक जोक फैलाया है की जब आर्यभट्ट ने शून्य की खोज 500 ईसवीं के लगभग की तो 100 कौरवों और रावण के 10 सर की गिनती किसने की???
◆◆आर्यभट्ट ने शून्य की खोज अपने द्वारा अविष्कृत अक्षरांक पद्धति में किया है न की सभी पद्धतियों में।ठीक उसी प्रकार जैसे किताब को अंग्रेज बुक लिखते हैं इसलिए बुक की खोज करने वाले अंग्रेज हुए मगर उसी को किताब के रूप में किसी और ने खोजा ...
◆◆आविष्कार और शोध में अंतर है । शोध निरंतर चलने वाली एक प्रक्रिया है जबकि आविष्कार नितांत नवीन और अभूतपूर्व होता है । यूँ मेटाफ़िज़िक्स की दृष्टि से देखें तो अभूतपूर्व भी कुछ नहीं होता । सब कुछ रिपीट होता है, बस केवल हमारे सामने जो पहली बार प्रकट होता है हम उसे आविष्कार मान लेते हैं । अग्नि बाण पहले भी थे ... आज भी हैं । बीच के काल में नहीं थे । सभ्यताओं के उदय और अस्त के साथ इन सब चीजों का भी उदय-अस्त होता रहता है । उदय-अस्त का अर्थ केवल एपियरेंस एण्ड डिसएपियरेंस भर है । सूर्य अस्त होने के बाद भी समाप्त नहीं हो जाता । शून्य के अस्तित्व के बिना स्थापत्य कला, विज्ञान, दर्शन आदि के विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती । यह सबसे बड़ा प्रमाण है कि शून्य का अस्तित्व वैदिक काल से भी पूर्व का है ।
◆◆आर्यभट्ट (जन्म 476 ई.) को शून्य का आविष्कारक नहीं माना जा सकता। आर्यभट्ट ने एक नई अक्षरांक पद्धति को जन्म दिया था। उन्होंने अपने ग्रंथ आर्यभटीय में भी उसी पद्धति में कार्य किया है। आर्यभट्ट को लोग शून्य का जनक इसलिए मानते हैं, क्योंकि उन्होंने अपने ग्रंथ आर्यभटीय (498 ई.) केगणितपाद 2 में एक से अरब तक की संख्याएं बताकर लिखाहै 'स्थानात् स्थानं दशगुणं स्यात' मतलब प्रत्येक अगली संख्या पिछली संख्या से दस गुना है। उनके ऐसे कहने से यह सिद्ध होता है कि निश्चित रूप से शून्य का आविष्कार आर्यभट्ट के काल से प्राचीन है।
◆◆पिंगलाचार्य भारत में लगभग 200 से 500ईसा पूर्व के बीच छंद शास्त्र के प्रणेता पिंगलाचार्य हुए हैं (चाणक्य के बाद) जिन्हें द्विअंकीय गणित का भी प्रणेता माना जाता है। इसी काल में पाणिनी हुए हैं जिनको संस्कृत का व्याकरण लिखने का श्रेय जाता है। अधिकतर विद्वान पिंगलाचार्य कोशून्यका आविष्कारकमानते हैं।पिंगलाचार्य के छंदों के नियमों को यदि गणितीय दृष्टि से देखें तो एक तरह से वे द्विअंकीय (बाइनरी) गणित का कार्य करते हैं और दूसरी दृष्टि से उनमें दो अंकों के घन समीकरण तथा चतुर्घाती समीकरण के हल दिखते हैं। गणित की इतनी ऊंची समझ के पहले अवश्य ही किसी ने उसकी प्राथमिक अवधारणा को भीसमझा होगा। अत: भारत में शून्य की खोज ईसा से 200 वर्ष से भी पुरानी हो सकती है।
◆◆ बख्शाली पाण्डुलिपि :गणित के एक बहुमूल्य ग्रंथ बख्शाली पाण्डुलिपि के कुछ (70) पन्ने सन् 1881 में खैबर क्षेत्र में बख्शाली गांव के निकट बहुत हीजीर्ण अवस्था में मिले थे। ये भोजपत्र पर लिखे गए हैं। इनकी भाषा के आधार पर अधिकांश विद्वान इन्हें 200 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी का मानते हैं। यह ग्रंथ इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यह शुल्व सूत्री (वैदिक) गणित के ईसा पूर्व 800 से लेकर ईसा पूर्व 500 के काल के बाद के गणितीय रूप को दर्शाता है। इस पाण्डुलिपि में शून्य का जिक्र है।भारत में उपलब्ध गणितीय ग्रंथों में 300 ईस्वी पूर्व का भगवती सूत्र है जिसमें संयोजन पर कार्य हैतथा 200 ईस्वी पूर्व का स्थनंग सूत्र है जिसमें अंक सिद्धांत, रेखागणित, भिन्न, सरल समीकरण, घन समीकरण, चतुर्घाती समीकरण तथा मचय (पर्मुटेशंस) आदिपर कार्य हैं। सन् 200 ईस्वी तक समुच्चय सिद्धांत के उपयोग का उल्लेख मिलता है और अनंत संख्या पर भी बहुत कार्य मिलता है।
◆◆ ईशावास्योपनिषद् के शांति मंत्र में कहा गया है-ॐपूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात्‌ पूर्णमुदच्यते।पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।यह मंत्र मात्र आध्यात्मिक वर्णन नहीं है, अपितु इसमें अत्यंत महत्वपूर्ण गणितीय संकेत छिपा है, जो समग्र गणित शास्त्र का आधार बना। मंत्र कहता है, यह भीपूर्ण है, वह भी पूर्ण है, पूर्ण से पूर्ण की उत्पत्ति होती है, तो भी वह पूर्ण है और अंत में पूर्ण में लीन होने पर भी अवशिष्ट पूर्ण ही रहता है। जो वैशिष्ट्य पूर्ण के वर्णन में है वही वैशिष्ट्य शून्य व अनंत में है। शून्य में शून्य जोड़ने या घटाने पर शून्य ही रहता है। यही बात अनन्त की भी है।हमारे यहां जगत के संदर्भ में विचार करते समय दो प्रकार के चिंतक हुए। एक इति और दूसरा नेति। इति यानी पूर्णता के बारे में कहने वाले। नेति यानी शून्यता केबारे में कहने वाले। यह शून्य का आविष्कार गणना की दृष्टि से, गणित के विकास की दृष्टि से अप्रतिम रहा है।भारत गणित शास्त्र का जन्मदाता रहा है, यह दुनिया भी मानने लगी है।
◆◆यूरोप की सबसे पुरानी गणित की पुस्तक"कोडेक्स विजिलेन्स" है। यह पुस्तक स्पेन की राजधानी मेड्रिड के संग्राहलय में रखी है। इसमें लिखा है-"गणना के चिन्हों से (अंकों से) हमें यह अनुभव होता है कि प्राचीन हिन्दुआें की बुद्धि बड़ी पैनी थी तथा अन्यदेश गणना व ज्यामिति तथा अन्य विज्ञानों में उनसे बहुत पीछे थे। यह उनके नौ अंकों से प्रमाणित हो जाता है, जिनकी सहायता से कोई भी संख्या लिखी जा सकती है।"नौ अंक और शून्य के संयोग से अनंत गणनाएं करने की सामर्थ्य और उसकी दुनिया के वैज्ञानिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका की वर्तमान युग के विज्ञानी लाप्लास तथा अल्बर्ट आईंस्टीन ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की है।
.....................
स्रोत: गूगल ब्लॉग,कौशलेन्द्रम मिश्र अतिदलित जी,आशुतोष की कलम से....
www.facebook.com/ashutoshkikalam