रविवार, 20 जनवरी 2013

मै हिंदुस्थान का हिन्दू हूँ मै आतंकी हूँ

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युवराज राहुल गांधी(रौल विंची) की ताजपोशी होते ही कांग्रेस ने हिंदुओं के खिलाफ जहर उगलना शुरू कर दिया इसी कड़ी मे माननीय गृहमंत्री ने पाकिस्तान का आतंकवाद भूल कर हिंदुओं को आतंकवादी साबित करने का एक अभियान शुरू कर दिया है॥ स्पष्ट है चुनाव का बिगुल बज चुका है और कांग्रेस ने हिंदुओं को आतंकवादी बता कर अपना मुसलमान वोट बैंक सुदृढ़ करने की शुरुवात कर दी है ॥ कांग्रेस की परिभाषा से मैन एक  घोषित एक हिन्दू आतंकवादी हूँ और ये है मेरी आतंक की इबारत और आवाज..."जय श्री राम"



मैं हिन्दुस्थान का हिन्दू हूँ,मैं आतंकी हूँ,
मैं हिन्दुस्थान का हिन्दू हूँ,मैं आतंकी हूँ ,मैं सर्व धर्म समभाव सिखाता ,
मानवता की बात बताता,हर धर्मस्थल पर शीश नवाता,आतंकी हूँ। 
मैं हिन्दुस्थान का हिन्दू हूँमैं आतंकी हूँ॥ 

वो धरा गोधरा की हो या,वो जनमभूमि हो राम की,
हो मथुरा काशी की धरती,या सोमनाथ के धाम की॥ 
हर बार में अपनी बलि चढ़ाता आतंकी हूँ,
मैं हिन्दुस्थान का हिन्दू हूँ,मैं आतंकी हूँ।।

मैं सत्य अहिंसा के दर्शन को ,जीने का आधार बनाता,
बाबर अब्दाली के वंशज को भी,मैं अपने गले लगाता।
नित नए नए अत्याचारों पर,धैर्य दिखता,सहता जाता आतंकी हूँ॥
मैं हिन्दुस्थान का हिन्दू हूँ,मैं आतंकी हूँ ।

पर बहुत हो चुकी धैर्य परीक्षाअब चन्दन अनल दिखायेगा,
भाई भाई के नारे को,अब फिर से परखा जायेगा.,
गर भाई हो कौरव जैसा,तो अर्जुन शस्त्र उठाएगा।
गाँधी का ये गाँधी दर्शन,अब चक्र सुदर्शन लाये,
डंडे वाला बूढ़ा गाँधी ,अब सावरकर बन जायेगा।
शत वर्षों से सहते आये,अब और नहीं सहा जायेगा.
अब हिन्दुस्थान का हर हिन्दू,राणा प्रताप बन जायेगा।
तब बाबर की जेहादी सेना मेंउथल पुथल हो जाएगी,
गुजरात की कुछ बीती यादेंफिर से दोहराई जाएँगी।
जौहर की बाते बीत गयी,अब चंडी शस्त्र उठाएगी,
गर हुआ जरुरी तो बहने,प्रज्ञा ठाकुर बन जाएँगी॥
पर पांडव ने भी कौरव को,अंतिम सन्देश सुनाया था,
खुद योगेश्वर ने जाकर भी,दुर्योधन को समझाया था।
तुम हिंसक आतातायी हो,तुम कौरव हो पर भाई हो,
यदि जीना है तो जीने दो,या मरने को तैयार रहो,
ये बात सभी को समझाता मैं आतंकी हूँ॥
मैं हिन्दुस्थान का हिन्दू हूँ,मैं आतंकी हूँ॥





लेखक "
आशुतोष नाथ तिवारी"

बुधवार, 9 जनवरी 2013

स्वच्छ समाज का बाजारीकरण


बाजारीकरण के आधुनिक दौर में कोई भी क्षेत्र उसकी पहुँच से अछूता नहीं है ..हमारे बेड रूम से लेकर ड्राइंग रूम ,किचन या घर का कोई भी हिस्सा ,ऐसी न जाने कितनी वस्तुएं हमें मिल जाएँगी ,जिसकी आवश्यकता शायद हमें नहीं है ,लेकिन उन वस्तुओं को हमारी आवश्यकता थी और आखिरकार हमें उसने अपने अनुसार तैयार कर लिया !आज से दो -तीन दशक पहले शायद बाजार का प्रभाव इतना ज्यादा न था हम पर ,क्योंकि पहले वस्तुएं हमारी आवश्कता के अनुसार तैयार की जाती थी जबकि आज इसके उलट !
आज यहाँ सबकुछ बिकता है ,हर चीज़ की कीमत है ,चाहे हमारी संकृति हो ,हमारी सभ्यता ,हमारी विरासत और चाहे एक एक औरत की इज्ज़त ,जिसकी कीमत बखूबी लगाई जा रही है आज !एक औरत न जाने कितनो की कमाई का साधन है ..क्रीम ,पावडर ,साबुन ,तेल ,बॉडी स्प्रे ,मोटर ,बाइक और न जाने क्या -क्या ,सबकी कमाई का जरिया है एक औरत !उसके चीख- आबरू -जिस्म हर चीज़ की कीमत है ..!
हर रास्ते -चौराहे ,गली -कूंचों हर जगह खड़े नज़र आएंगे उसकी सौदेबाजी करते हुए लोग !
आजकल तो इसकी सबसे ज्यादा मांग हमारे साहित्य कॉर्पोरेट सेक्टर और सिनेमा के गलियारों में हैं ..जहाँ औरत को एक प्रदर्शनी ,मनोरंजनकारी साधन के रूप में प्रस्तुत किया जाता है ..उसे भोग -विलास की वस्तु से ज्यादा कुछ नहीं माना जाता ..उसके लिए भी use and throw का रूल apply किया जाता है !आजकल तो इसकी सबसे ज्यादा मांग हमारे साहित्य कॉर्पोरेट सेक्टर और सिनेमा के गलियारों में हैं ..जहाँ औरत को एक प्रदर्शनी ,मनोरंजनकारी साधन के रूप में प्रस्तुत किया जाता है ..उसे भोग -विलास की वस्तु से ज्यादा कुछ नहीं माना जाता ..उसके लिए भी use and throw का रूल apply किया जाता है ! भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मूल अधिकार माना गया है ,इस अधिकार के तहत देश के प्रत्येक नागरिक को ये हक है की वो बिना किसी भय के अपने विचारों को प्रस्तुत कर सकता है ,अपने कला का जौहर दिखा सकता है ,अपना विकास कर सकता है ,जिससे हमारे देश का विकास हो हमारी संस्कृति का विकास हो !लेकिन आज जिस कला का प्रदर्शन हमारे साहित्य ,सिनेमा में हो रहा है .वो न केवल हमारी संस्कृति और सभ्यता का ह्रास कर रहे हैं बल्कि खुलेआम अश्लीलता को बढ़ावा भी दे रहे हैं ,जिस तरह साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है उसी तरह सिनेमा भी हमारे देश में हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है तो उसका प्रभाव भी हमारे जीवन पे पड़ता है जिस संविधान के मूल अधिकार की चर्चा हम बड़े जोर -शोर से करते हैं उसी संविधान में मूल कर्तव्यों का भी उल्लेख किया गया है ...क्या इनका ये कर्तव्य नहीं की ये अपनी रचनाओं ,गीत -संगीत के द्वारा समाज में गंदगी न फैलाये !प्रसिद्द फिल्म निर्देशक महेश भट्ट का कहना है की कला को हम सीमा में नहीं बांध सकते तो क्या हम उन्हें "आजा चीर दूँ में तेरी पटियाला सलवार "जैसे lyrics लिखने की इज़ाज़त दे सकते हैं !
क्या उनका ये कर्त्तव्य नहीं की वो हमारे देश को हमारे समाज स्वच्छ बनाने में अपनी भूमिका निभाएं !
एक विज्ञापन मैंने देखा ..जिसमें लड़की कहती है की "मेरे इनको बीवी पसंद है खाते -पीते घर की और हॉट भी ",और विज्ञापनों का स्तर तो और गिरा है लड़की लड़के के गुणों को देख के नहीं बल्कि उसके बाइक और बॉडी स्प्रे को देखके आकर्षित होती है !क्या ये सब एक लड़की की सूझबूझ - समझ को नहीं नकारता ,उसे केवल एक वस्तु बना के नहीं पेश करता ??इनलोगों का कहना है की हम प्रयोग करते हैं अपनी कला में जो लोगों को पसंद आ रहा है ,तो क्या ये प्रयोग यूँ ही चलता रहेगा ....
हमारी संस्कृति तो ऐसी न थी ..मनुस्मृति में स्त्री और पुरुष को सामान दर्ज दिया गया है ,ब्रह्म को स्त्री और पुरुष के रूप में बांटा गया है !प्रसिद्द विद्वान् वराहमिहिर ने कहा है-"सती स्त्री सहस्त्रों पुरुषों का उद्धार कर सकती है !पतिव्रता का पति समस्त पापों से मुक्त हो जाता है !सतियों के व्रत के प्रभावसे उनके पति को कर्मभोग नहीं भोगना पड़ता !"
किसी भी देश की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व स्त्रियाँ करती हैं !इसलिए सामाजिक ,आर्थिक ,राजनितिक और सांस्कृतिक तौर पे उनकी उपेक्षा करना समाज को आधी ताकत से वंचित करना है उनका विकास अतिआवश्यक है ..लेकिन विकास का रूप इतना घिनौना नहीं होना चाहिए जिसे सुनके हमारे कान फट जाएं ,हमारी रूह कांप जाएं हमारी नज़रें शर्म से झुक जाएं !मैं एक लड़की हूँ मुझे नहीं पसंद है कोई वस्तु बनना ,देवी बनना ,मूर्ति बनना ..मैं इन्सान हूँ,मैं मानव हूँ ..हम चाहते हैं समान विकास ,हम चाहते हैं समान अवसर !

लेखिका: वंदना सिंह