बुधवार, 30 नवंबर 2011

तेरा वैभव अमर रहे माँ हम दिन चार रहें न रहें.... राजीव भाई को श्रधांजलि



                                                                                          
                                                                                       
भाई राजीव दीक्षित जी के नाम स्वदेशी और आजादी बचाओ आन्दोलन  से हम सभी परिचित  हैं.. एक
अमर हुतात्मा, जिसने अपना पूरा जीवन मातृभाषा मातृभूमि को समर्पित कर दिया..आज उनका जन्मदिवस और पहली पुण्यतिथि भी है..आज ही के दिन ये अमर देशभक्त हमारे बिच आया था और पिछले साल हमारे बिच से आज ही के दिन राजीव भाई चले गए..अगर राजीव भाई के प्रारम्भिक जीवन में झांके तो जैसा की हम सब जानते हैं ,राजीव भाई एक मेधावी छात्र एवं  वैज्ञानिक भी थे..आज के इस भौतिकतावादी दौर में जब इस देश के युवा तात्क्षणिक हितों एवं भौतिकवादी साधनों के पीछे भाग रहा है, राजीव भाई ने राष्ट्र स्वाभिमान एवं स्वदेशी की परिकल्पना की नीव रखने के लिए अपने सम्पूर्ण जीवन को राष्ट्र के लिए समर्पित कर त्याग एवं राष्ट्रप्रेम का एक अनुकरणीय उदहारण प्रस्तुत किया..सार्वजनिक जीवन में आजादी  बचाओ आन्दोलन से सक्रीय हुए राजीव भाई ने स्वदेशी की अवधारणा एवं इसकी वैज्ञानिक  प्रमाणिकता को को आन्दोलन का आधार बनाया.. 
स्वदेशी शब्द हिंदी के " स्व" और "देशी" से मिलकर बना  है."स्व" का अर्थ है अपना और "देशी" का अर्थ है जो देश का हो.. मतलब स्वदेशी वो है "जो अपने देश का हो अपने देश के लिए हो" इसी मूलमंत्र को आगे बढ़ाते हुए राजीव भाई ने लगभग २० वर्षों तक अपने विचारो,प्रयोगों एवं व्याख्यानों से एक बौद्धिक जनजागरण एवं जनमत बनाने का सफल प्रयास किया, जिसके फलस्वरूप हिन्दुस्थान एवं यहाँ के लोगो ने अपने खुद की संस्कृति की उत्कृष्ठता एवं वैज्ञानिक प्रमाणिकता को समझा और वर्षों से चली आ रही संकुचित गुलाम मानसिकता को छोड़ अपने विचारों एवं स्वदेशी पर आधारित तार्किक एवं वैज्ञानिक व्यवस्था को अपनाने का प्रयास किया..
वैश्वीकरण एवं उदारीकरण के प्रबल विरोधी राजीव भाई ने अंग्रेजो के ज़माने से चली आ रही क्रूर कानून व्यवस्था से लेकर टैक्स पद्धति में बदलाव के लिए गंभीर प्रयास किये..अगर एक ऐसा क्षेत्र  लें जो लाल बहादुर शास्त्री जी के के बाद सर्वदा हिन्दुस्थान में उपेक्षित रहा तो वो है "गाय,गांव और कृषि " इस विषय पर राजीव भाई के ढेरो शोध और प्रायोगिक अनुसन्धान सर्वदा प्रासंगिक रहे हैं..वैश्वीकरण एवं उदारीकरण की आड़ में पेप्सी कोला जैसी हजारों बहुराष्ट्रीय कंपनियों को, खुली लूट की छूट देने वाले लाल किले दलालों के खिलाफ राजीव भाई की निर्भीक,ओजस्वी वाणी इस औद्योगिक सामाजिक मानसिक एवं आर्थिक रूप से गुलाम भारत को इन बेड़ियों से बाहर निकलने का मार्ग प्रशस्त करती थी..मगर सत्ता और व्यवस्था परिवर्तन की राह और अंतिम अभीष्ट  सर्वदा विरोधों और दमन  के झंझावातों से हो कर ही मिलता है..व्यवस्था परिवर्तन की क्रांति को आगे बढ़ाने में राजीव भाई को सत्ता पक्ष से लेकर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का कई बार टकराव झेलना पड़ना और इसी क्रम में यूरोप और पश्चिम पोषित कई राजनीतिक दल और कंपनिया उनकी कट्टर विरोधी हो गयी..
 अगर हम भारत के स्वर्णिम इतिहास के महापुरुषों की और नजर डाले तो राजीव भाई और विवेकानंद को काफी पास पाएंगे..जिस प्रकार विवेकनन्द जी ने गुलाम भारत में रहते हुए यहाँ की संस्कृति धर्म और परम्पराओं का लोहा पुरे विश्व के सामने उस समय मनवाया जब भारत के इतिहास या उससे सम्बंधित किसी भी परम्परा को गौण करके देखा जाता था, उसी प्रकार राजीव भाई ने अपने तर्कों एवं व्याख्यानों से भारतीय एवं स्वदेशी संस्कृति ,धर्म , कृषि या शिक्षा पद्धति  हर क्षेत्र में स्वदेशी और भारतीयता की महत्ता और प्रभुत्व  को पुनर्स्थापित करने का कार्य उस समय करने का संकल्प लिया जब भारत में भारतीयता के विचार को ख़तम करने का बिदेशी षड्यंत्र अपने चरम पर चल रहा था..काल चक्र अनवरत चलने के साथ साथ कभी कभी धैर्य परीक्षा की पराकाष्ठा करते हुए हमारे प्रति क्रूर हो जाता है..कुछ ऐसा ही हुआ और इसे देशद्रोही विरोधियों का षड्यंत्र कहें या नियति का विधान राजीव भाई हमारे बिच से चले गए..मगर स्वामी विवेकानंद जी की तरह अल्पायु होने के बाद भी राजीव भाई ने व्यक्तिगत एवं  सामाजिक जीवन के उन उच्च आदर्शों को स्थापित किया जिनपर चलकर मानवता धर्म देशभक्ति एवं समाज के पुनर्निर्माण की नीव रक्खी जानी है..
अब यक्ष प्रश्न यही है की राजीव भाई के बाद हम सब कैसे आन्दोलन को आगे ले जा सकते हैं. जैसा की राजीव भाई की परिकल्पना थी की एक संवृद्ध  भारत के लिए यहाँ के गांवों का संवृद्ध होना आवश्यक है..जब तक वो व्यक्ति जो १३० करोण के हिन्दुस्थान के आधारभूत आवश्यकता भोजन का प्रबंध करता वो खुद २ समय के भोजन से वंचित है,तब तक हिन्दुस्थान का विकास नहीं हो सकता..हम चाहें जितने भी आंकड़ों की बाजीगरी कर के विकास दर का दिवास्वप्न देख ले मगर यथार्थ के धरातल पर गरीब और गरीब होता जा रहा है और अमीर और अमीर..इसी व्यवस्था के खिलाफ शंखनाद के लिए मूल में ग्रामोत्थान  के तहत कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना होगा ,कृषि के क्षेत्र में पारम्परिक कृषि को प्रोत्साहन देकर स्वरोजगार और आत्मनिर्भरता के अवसर बढ़ाने होंगे..शायद इस क्षेत्र में हजारों के तादात में स्वयंसेवक संगठन  और बहुद्देशीय योजनायें चलायी जा रही हैं,मगर अपेक्षित परिणाम न देने का कारण शायद सामान्य जनमानस में इस विचारधारा के प्रति उदासीनता और बहुरष्ट्रीय कंपिनयों के मकडजाल में उलझ कर रह जाना..
इस व्यवस्था के परिवर्तन के लिए हमे खुद के व्यक्तित्व में स्वदेशी के "स्व" की भावना का मनन करना होगा उसकी महत्ता को समझना होगा.."स्व" जो मेरा है और स्वदेशी "जो मेरे देश का है,मेरे देश के लिए है"..हमें अपने अन्दर की हीन भावना और उस गुलाम मानसिकता को ख़तम करना होगा, जो ये कहता है की अमेरिका यूरोप और पाश्चात्य देशों की हर चीज आधुनिक और वैज्ञानिक है और वहां की हर विधा हमारे समाज में प्रासंगिक है, चाहे वो नारी को एक ऐसे देश में ,नग्न भोग विलासिता के एक उत्पाद के रूप में अवस्थित करना हो ,जिस देश में नारी पूज्य,शील और शक्ति का समानार्थी मानी जाती रही है..हिन्दुस्थान शायद विश्व का एकमात्र देश होगा जहाँ आज तक गुलामी की भाषा अंग्रेजी बोलना, तार्किक और आधुनिक माना जाता है और मातृभाषा हिंदी,जिसका एक एक शब्द वैज्ञानिक दृष्टि से अविष्कृत है ,बोलना पिछड़ेपन की निशानी माना जाता है..ऐसी  गुलाम मानसिकता विश्व के शायद ही किसी देश में देखने को मिले..इसी गुलाम मानसिकता को तोड़ने का प्रयास राजीव भाई के आन्दोलन का मूल है...यदि देश,व्यवस्था या व्यक्ति की विचारधारा को पंगु होने से बचाना है तो हमे सम्पूर्ण स्वदेशी के विचारों पर चल कर ही सफलता मिल सकती है.. विश्व का  इतिहास गवाह है की किसी भी देश का उत्थान उसकी परम्परा और संस्कृति से इतर जा कर नहीं हुआ है..
व्यवस्था परिवर्तन की राह हमेशा कठिन होती है और बार बार धैर्य परीक्षा लेती है ..सफ़र शायद बहुत लम्बा हो सकता है कठिन हो सकता है मगर अंतत लक्ष्य  प्राप्ति की ख़ुशी,उल्लास और संतुष्टि उससे भी मनोरम और आत्म सम्मान से परिपूर्ण ..राजीव भाई ने एक राह हम सभी को दिखाई और उस पवित्र कार्य  लिए अपना जीवन तक होम कर दिया..आज उनके जन्मदिवस  और पुण्य तिथि के अवसर पर आइये हम सभी आन्दोलन में अपना योगदान निर्धारित करे और एक स्वावलंबी एवं स्वदेशी भारत की नीव रखके उसे विश्वगुरु के पड़ पर प्रतिस्थापित करने में अपना योगदान दे .....शायद हम सभी की तरफ से ये एक सच्ची श्रधांजली होगी राजीव भाई और उनकी अनवरत जीवनपर्यंत साधना को...

आशुतोष नाथ तिवारी 

मंगलवार, 22 नवंबर 2011

एयरलाइंस क्षेत्र में सरकारी साजिश ,किंगफिशर बेल आउट के दौर में दम तोड़ता किसान ..



पिछले दिनों किंगफिशर एयरलाइंस को तेल कंपनियों ने बकाया राशी के भुगतान न करने के कारण, तेल देना बंद कर दिया और कंपनी को कई उड़ाने रद्द करनी पड़ी..हालत यह है की आज कंपनी पर लगभग ७००० करोड़ रूपये का कर्ज है या दूसरे शब्दों में कहे तो किंगफिशर एयरलाइंस  दिवालिया होने के कगार पर पहुच गयी है..लगभग ७० उड़ाने रोज रद्द हो रही है और कई कम आवाजाही के मार्गों पर कम्पनी ने अपना सञ्चालन स्थगित कर दिया है..अब प्रश्न ये है की, क्या कंपनी रातो रात दिवालिया होने के कगार पर पहुच गयी या प्रबंध तंत्र को पहले से इसकी जानकारी थी और जानबूझ कर कंपनी ने आने वाली परिस्थितियों के लिए जरुरी कदम नहीं उठाये..आखिर घाटे में एयरलाइंस को चलाकर दीवालिया बनाने की करार तक आने देने के पीछे क्या कारण रहे?
क्यूकी व्यापार की दुनिया के बादशाहों में एक विजय माल्या बिना किसी फायदे के ये एयरलाइंस के घाटे का सौदा मोल लेंगे आसानी से गले नहीं उतरता..
अब हम इस दीवालिया कंपनी के मालिक विजय माल्या के बारे में देखें तो अपनी रंगीन मिजाजी और आलिशान पार्टियों पर पानी की तरह पैसा बहाने वाला ये उद्योगपति हर साल खुबसूरत माडलों  के नंगे कैलेंडर बनवाने में करोडो रूपये उडाता है..इसके अलावा व्यापार जगत की ये हस्ती यूनाइटेड ब्रिवरीज नामक कंपनी का मालिक है और भारत में बिकने वाली हर दूसरी बियर इनकी फैक्ट्री से निकलती है..
कई स्टड फार्मो के मालिक विजय माल्या, आई.पी.एल में टीम का मालिकाना हक़ भी रखते हैं और भारत  और विश्व के सर्वाधिक धनी व्यक्तियों में एक गिने जाते हैं..
अभी हाल फ़िलहाल में इनका नया नवअन्वेषण था भारत में फार्मूला वन रेस .इस रेस टीम में इनका मालिकाना हक़ है.. प्रश्न भी यही से उठता है की एयरलाइंस के डूबने का सिलसिला पिछले साल से ही शुरू हो गया था मगर उड़ाने रद्द होने का सिलसिला,तेल कंपनियों का सप्लाई रोकने का फैसला फार्मूला १ के बाद ही क्यों आया..कहीं ऐसा तो नहीं की फार्मूला वन के आयोजन पर माल्या की एयरलाइंस के डूबने से संकट आ सकता था..शायद तकनीकी रूप से रेस हो भी जाती तो माल्या के ऊपर नैतिक दबाव होता..
अब माल्या की कंपनी को कर्जे से उबारने के लिए बेल आउट पैकेज की बात मीडिया और सत्ता के गलियारों में बहुत जोर शोर से उठाई जा रही है..मंत्रियों और बैंको की बैठको का दौर शुरू हो गया, की कैसे अरबो खरबों के मालिक माल्या की आर्थिक सहायता की जाये..थोड़े ही समय में इसके परिणाम भी आने शुरू हो गए, कंपनियों ने बिना बकाया वसूले तेल की सप्लाई शुरू कर दी..किंगफिशर के शेयरों में तेजी आनी शुरू हो गयी और परदे के पीछे मनमोहन जी के सिपहसालारों ने माल्या को मालामाल करने की तरकीबे भिड़ानी शुरू कर दी..शायद माल्या को प्रत्यक्ष रूप से १०-१५ हजार करोड़ की आर्थिक सहायता दे दी जाती मगर आने वाले चुनावों को देखते हुए, शायद कांग्रेस सरकार ने इस फैसले को टाल दिया है क्यूकी अब जनता के हिसाब मांगने की बारी है की सैकड़ो कंपनियों के खरबपति मालिक पर ये मेहरबानी क्यों????
अगर हम इस समस्या के  मूल में जा के देखें तो काफी हद तक ये बातें पूर्वनिर्धारित लग रही है..एक किंगफिशर एयरलाइंस के बंद हो जाने से विजय माल्या की आर्थिक सेहत पर ज्यादा से ज्यादा  उतना ही प्रभाव पड़ेगा जितना साल के अंत में एक बार आय कर कटने से एक मध्यमवर्गीय व्यक्ति पर पड़ता  है..अगर इन परिस्थितियों को व्यापक स्तर पर देखें तो आज इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया विलय होने के बाद भी  दिवालिया होने के कगार पर है बाकी एयरलाइंस में भी इक्का दुक्का छोड़ दे तो सबकी हालत खस्ता है..एयरलाइंस के किरायों पर कोई विनियमन नहीं है..और सभी जानते हैं की ये सारी परिस्थितियां सरकार द्वारा प्रायोजित गलत नीतियों के कारण उत्पन्न हुई है..यहाँ ध्यान देने योग्य बात ये है  एयरलाइंस  सेक्टर में विदेशी कंपनियों की पैठ अभी तक नहीं बनी है..
ये वही मनमोहन सिंह जी है जिनकी १९९१ में शुरू की गयी नीतियों के कारण आज हमारे घर के तेल,साबुन,टीवी से लेकर कार,पंखा या दैनिक प्रयोग की हर बस्तु बिदेशी हो गयी यहाँ तक की अब सब्जियों को भी बिदेशी हाथो में दिया जा रहा है बेचारा किसान सल्फास खा कर मर रहा रहा है..खैर हिन्दुस्थान में मरता किसान ही है, कोई इटली का  युवराज नहीं इसलिए ये बड़ी बात नहीं हमारे प्रधानमन्त्री  जी के लिए..
जो बात बड़ी है वो ये की तेल से लेकर कार  बेचने वाली बिदेशी कम्पनियाँ अब तक एयरलाइंस  सेक्टर में कब्ज़ा क्यों नहीं कर पाई??यही माननीय मनमोहन जी और सोनिया जी की चिंता का विषय है..विशेषकर यूरोप की कम्पनियाँ हिन्दुस्थान के इस सेक्टर पर नजर गडाए बैठी है.. अब मनमोहन मंडली से अच्छा राजनैतिक सहयोग कही मिलेगा नहीं तो सारी एयरलाइंस को घाटे में दिखा कर बिदेशी एयरलाइंस  को भारत में आने का मौका दिया जाये और इस बाजार पर भी बिदेशी कब्ज़ा..बेशक इन सब के लिए कुछ मेहनताना हर बार की तरह कांग्रेस नेताओं के स्विस अकाउंट में भेज दिया जायेगा..इस संशय को इंडियन एयरलाइंस  के लगातार घाटे और मनमोहन के मंत्रियों की तिहाड़ यात्रा से और भी बल मिलता है..
इन सब के बिच एक सामान्य मध्यमवर्गीय आदमी मनमोहन और सोनिया जी की सरकार के लिए एक स्वयं ही एक उत्पाद बन कर रह गया है जिसका इस्तेमाल फायदे और मूल्य संवर्धन के लिए आवश्यकता अनुसार कर लिया जाता है...नोयडा में किसानो से जमीन ली जाती है औद्योगीकरण और रोजगार के नाम पर पर  वहां विजय माल्या की कारे दौडाई जाती है और राबर्ट वढेरा जैसे खरबपति उस पर दांव लगाते हैं..सिर्फ कुछ गिने चुने खरबपतियों की ऐयाशी  के लिए किसानो से जमीन ले कर रेसिंग ट्रैक बनाया जाता है और किसान भूख के मारे आत्महत्या करता है...अगर अपना हक मांगने लायक जान बची रहती है तो विश्व बैंक और यूरोप की पालतू सरकार गोलियां चलवाकर उनका मुंह बंद कर देती है...हिन्दुस्थान में अगर गरीब किसान या एक मध्यमवर्गीय व्यक्ति  दिवालिया होता है तो उसके सामने आत्महत्या का ही रास्ता होता है मगर विजय माल्या जैसा खरबपति दिवालिया हुआ तो अरबो खरबों ले कर हमारे प्रधनमंत्री जी उसके चौखट पर पहुच जाते हैं.अगर ये बेल आउट हमारे प्रधानमंत्री जी आत्महत्या करते किसानो पर खर्च करते तो मैं यकीन से कह सकता हूँ की हिन्दुस्थान में कोई भी किसान आत्महत्या नहीं करता..शायद ये बेल आउट उस मध्यमवर्गीय रोजगार करने वाले व्यक्ति का भी कुछ भला कर सकता है जिसे रोज महंगाई और पेट्रोल की बढ़ी  कीमतों से जूझना पड़ता है...मगर सामान्य जनता पर महंगाई के  बढे बोझ को सही ठहराने  के लिए मंत्रियों की फ़ौज खड़ी हो जाती है और वही फ़ौज माल्या जैसे उद्योगपतियों के लिए हमारे टैक्स का पैसा पानी की तरह बहाने में एक बार भी विचार नहीं करती..इससे इस आशंका को समर्थन मिलता है वर्तमान सरकार निजी हितों के कुछ गिने चुने भ्रष्ट उद्योगपतियों के साथ गठबंधन कर के खुली लूट कर रही है...

एयरलाइंस  सेक्टर की ये उठापठक भी इसी लूट का हिस्सा है..कोई आश्चर्य नहीं की जैसे इटली के कई बैंको को हिन्दुस्थान में अकस्मात प्रवेश दे दिया गया आने वाले दिनों में सरकारी एयरलाइंस बेच दी जाये , इटली और यूरोप की विमानन कंपनिया भारतीय आकाश पर कब्ज़ा किये बैठी हों और हमारे प्रधनमंत्री जी उदारीकरण से होने वाले फायदे का दिवास्वप्न दिखा रहे हों....