शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

व्यवस्था परिवर्तन कि आवश्यकता



पन्द्रह अगस्त 1947 को भारत को अंग्रेजो के शासन से मुक्ति से तो मिल गई लेकिन क्या सही मायने में हमारी व्यवस्था बदली ?क्या देश का आम नागरिक गुलामी कि बेड़ियों से निकल पाया ? अगर नहीं तो आज फिर व्यवस्था परिवर्तन कि आवश्यकता क्यों महसूस हुई ?इसी पर बात करता हूँ | कि आजादी के इन 64 वर्षों के बाद भी देश में जो समस्याएं , चुनोतियाँ व् भयावह दर्दनाक परिस्थियां राष्ट्र में पैदा हुई हैं , वे इस बात का प्रमाण हैं कि हमारी नीतियां व् व्यवस्थाएं देश वासियों को न्याय नहीं दें पा रही हैं | अत: हमारे देश कि नीतियों व् पूरी व्यवस्था कि नए सिरे से पुन: संरचना कि नितांत आवश्यकता है |

1. आजादी के 64 वर्ष बाद भी यदि भारत के 50% से ज्यादा लोग अनपढ़ हैं, हमें अपने देश कि भाषाओँ में उच्च तकनिकी कि शिक्षा पाने का अधिकार नहीं है , गरीब व अमीर के लिय एक जैसी शिक्षा व्यवस्था नहीं है ,हमारे पूर्वजो के ज्ञान ,जीवन व चरित्र के बारे में अपमान जनक बातें बताई जाती हैं - तो क्या ये हमारी शिक्षा व्यवस्था कि असफलता नहीं है ?


2. 64% देश के लोग बीमार होने के बाद उपचार नहीं करा सकते |उन बीमारों को हम तड़पते मरने के लिय छोड़ देते हैं और जो 35% लोग जो इलाज करवा पाते हैं उसमे सात लाख करोड रूपये से ज्यादा देश के लोगो के धन का दोहन मात्र रोगों को नियंत्रित करने में होता है, क्योंकि उनको पूर्ण आरोग्य नहीं मिल पाता है, और इनमे से भी पचास प्रतिशत लोग अपने घर व् जमीन बेचने पर मजबूर हो जाते हैं,क्योंकि इलाज कि खातिर चिकत्सा व्यवस्था मंहगी है | यह हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था कि नाकामी नहीं है तो क्या है ?

3. गुलामी के समय अंग्रेजो ने जो 34735 कानून हमें लूटने , शोषण करने व् सदियों तक हमको गुलाम बनाने के लिय बनाये थे , उन कानूनों को हमने आजाद भारत में क्यों कर रखा है ? जिसका परिणाम यह है कि १०० अपराधियों में से मात्र पांच अपराधियों को हमारी न्याय व्यवस्था दण्ड डे पाती है | 100 में से ३० बहन बेटियों कि इज्जत को जिंदगी में कभी न कभी तार तार करने कि कोशिश कि जाती हैं | देश में कभी भी आंतकवादी घटना हो सकती है देश पूरी तरह सुरक्षित नहीं है |

अगर हमारी देश कि न्यायपालिका देश वासियों को न्याय नहीं दे पा रही है तो इसका साफ व् सीधा सा अर्थ है कि इसको बदलने कि आवश्यकता है |

4. एक तरफ देश का सकल घरेलू उत्पाद G.D.P. लगभग पचास लाख करोड रूपए इतनी अकूत धन दौलत होने के बावजूद क्यों हमारे देश के लगभग 84 करोड लोग मात्र 20 -21 रूपए प्रतिदिन में बेबसी ,गरीबी ,लाचारी ,भूख व् आभाव कि जिंदगी जिनी पड़ती है |यह हमारे देश कि गलत आर्थिक निति नहीं है तो और क्या है ?


और भी बहुत विस्तार से जान जाए तो बहुत सारी भ्रष्ट व् गलत वाही नीतियां आज हमारे देश कि शासन प्रणाली में हैं जिनसे आज आम आदमी तंग है |और इसका एक ही समाधान है व्यवस्था परिवर्तन |और इसकी शुरुआत के लिय कोई भी व्यक्ति अगर आवाज उठता है और काम शुरू करता है तो क्या हमें उसका साथ नहीं देना चाहिय ?

3 टिप्‍पणियां:

  1. सारी की सारी बातें एक दम सत्य है .. साथ तो हमें जितना हो सके देना ही होगा. इस समय सभी को अन्ना बनना ही होगा.

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  2. तरुण भाई आपने जो भी तथ्य सामने रखे हैं वास्तव में बहुत ही गंभीर हैं ये मुददे और इन मुददों पर ये सरकारें कोई कुछ नहीं करने वाली हैं हमेशा की तरह हमारे राजनेता प्रधानमंत्री 15 अगस्त को 1 अप्रेल समझ कर लोगों को जोक सुना सुना कर हमें लूटते रहेंगे, इन सबको दरुस्त करने के लिए हमें व्यवस्था परविर्तन की बेहद आवश्यकता है, जिसके लिए हमें सभी को एक जुट होकर राष्ट्रहित हेतु कार्य करने होंगे, फिलहाल एक सार्थक व् ज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए शुभ आभार!

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  3. एक सार्थक व् ज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए शुभ आभार!

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