शनिवार, 30 जुलाई 2011

ज्ञान का मुक्त प्रवाह या धन नियंत्रित ज्ञान

ज्ञान के लिए धन की आवश्यकता के दुष्प्रभाव

अगर कोई मुझसे पूछेगा की COPYRIGHT की हिंदी क्या होती है तो मेरा सीधा उत्तर होगा की COPYRIGHT की कोई हिन्दी नहीं होती है क्यूँकी हमारी संस्कृति में copyright नहीं होता है हमारी संस्कृति में ज्ञान का प्रवाह मुक्त होता है और यह केवल एक ही क्षेत्र नहीं है जहाँ पर ज्ञान का मुक्त प्रवाह होता है | हमारे मनीषियों ने ज्ञान के महत्त्व को भी समझा था और उसकी शक्ती को भी और इसलिए उनको पता था की ज्ञान पर धन का नियंत्रण नहीं होना चाहिए अपितु नैतिकता का और प्राणीमात्र के कल्याण की भावना का नियंत्रण होना चाहिए |

परन्तु आज की स्थिति यह है की शिक्षा की प्राप्ति के लिए पहली आवश्यकता धन हो गयी है धन के बिना शिक्षा प्राप्त करना संभव ही नहीं रह गया है और इसके परिणाम भी भयंकर हुए हैं | जब शिक्षा धन की सहायता से ही मिलाती है (और एक सीमा तक केवल धन की सहायता से) तो शिक्षा का उद्देश्य भी धनोपार्जन ही रह जाता है | हमने अपने विद्यालयों में वाक्य लिखे देखे थे "शिक्षार्थ आइये सेवार्थ जाइए " परन्तु आज की वास्तविकता है की "धन की सहायता से आइये और धनोपार्जन के लिए जाइए " और

सोमवार, 25 जुलाई 2011

तुम मुझे गाय दो, मैं तुम्हे भारत दूंगा


मित्रों शीर्षक पढ़कर चौंकिए मत| मैं कोई नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसा नारा लगाकर उनके समकक्ष बनने का प्रयास नहीं कर रहा| उनके समकक्ष बनना तो दूर यदि उनके अभियान का योद्धा मात्र भी बन सका तो स्वयं को भाग्यशाली समझूंगा|

अभी जो शीर्षक मैंने दिया, वह एक अटल सत्य है| यदि भारत निर्माण करना है तो गाय को बचाना होगा| एक भारतीय गाय ही काफी है सम्पूर्ण भारत की अर्थव्यवस्था चलाने के लिए| किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी की आवश्यकता ही नहीं है| ये कम्पनियां भारत बनाने नहीं, भारत को लूटने आई हैं|

खैर अब मुद्दे पर आते हैं|मैं कह रहा था कि मुझे भारत निर्माण के लिए केवल भारतीय गाय चाहिए| यदि गायों का कत्लेआम भारत में रोक दिया जाए तो यह देश स्वत: ही उन्नति की ओर अग्रसर होने लगेगा| मैं दावे के साथ कहता हूँ कि केवल दस वर्ष का समय चाहि

शनिवार, 23 जुलाई 2011

बुराई से मुक्ति का उपाय कैसे हो ?

पशु-पक्षियों की तरह खाने-पीने और प्रजनन की क्रियाएं मनुष्य भी करता है। उनकी तरह मनुष्य भी अपनी, अपने परिवार की और अपने समूह की देखभाल करता है। इन बातों में समानता के बावजूद पशु-पक्षियों से जो चीज़ उसे अलग करती है, वह है उसकी नैतिक चेतना। पशु-पक्षियों में भी भले-बुरे की तमीज़ पाई जाती है लेकिन एक तो वह मनुष्य के मुक़ाबले बहुत कम है और दूसरे वह उनके अंदर स्वभावगत है यानि कि अगर वे चाहें तो भी अपने स्वभाव के विपरीत नहीं कर सकते जबकि मनुष्य में भले-बुरे की तमीज़ भी बहुत बढ़ी हुई होती है और उसे यह ताक़त भी हासिल है कि वह अपने स्वभाव के विरूद्ध जाकर बुरा काम भी कर सकता है।

भले-बुरे का ज्ञान और उनमें चुनाव का अधिकार ही मनुष्य की वह विशेषता है जो कि उसे पशु-पक्षियों से अलग और ऊंची हैसियत देती है।मनुष्य सदा से ही समूह में रहता है और समूह सदैव किसी न किसी व्यवस्था के अधीन हुआ करता है। हज़ारों साल पर फैले हुए मानव के विशाल इतिहास को सामने रखकर देखा जाए और जिन जिन व्यवस्थाओं के अधीन वह आज तक रहा है, उन सबका अध्ययन किया जाए

गुरुवार, 21 जुलाई 2011

मैकाले की प्रासंगिकता

भारत की वर्तमान शिक्षा एवं समाज व्यवस्था में मैकाले प्रभाव


मैकाले नाम हम अक्सर सुनते है मगर ये कौन था? इसके उद्देश्य और विचार क्या थे कुछ बिन्दुओं की विवेचना का प्रयास हैं करते.
मैकाले: मैकाले का पूरा नाम था थोमस बैबिंगटन मैकाले|अगर ब्रिटेन के नजरियें से देखें तो अंग्रेजों का ये एक अमूल्य रत्न था .. एक उम्दा इतिहासकार, लेखक प्रबंधक, विचारक और देशभक्त ..इसलिए इसे लार्ड की उपाधि मिली थी और इसे लार्ड मैकाले कहा जाने लगा..अब इसके महिमामंडन को छोड़ मैं इसके एक ब्रिटिश संसद को दिए गए प्रारूप का वर्णन करना उचित समझूंगा जो इसने भारत पर कब्ज़ा बनाये रखने के लिए दिया था...

२ फ़रवरी १८३५ को ब्रिटेन की संसद में मैकाले की भारत के प्रति विचार और योजना मैकाले के शब्दों में-

" मैं भारत के कोने कोने में घुमा हूँ..मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई दिया, जो भिखारी हो ,जो चोर हो, इस देश में मैंने इतनी धन दौलत देखी है,इतने ऊँचे चारित्रिक आदर्श और इतने गुणवान मनुष्य देखे हैं,की मैं नहीं समझता की हम कभी भी इस देश को जीत पाएँगे,जब तक इसकी रीढ़ की हड्डी को नहीं तोड़ देते जो

सोमवार, 18 जुलाई 2011

अपना उद्धार स्वयं करें

अपने उद्धार और पतन में मनुष्य स्वयं कारण है , दूसरा कोई नहीं । परमात्मा ने मनुष्य शरीर दिया है तो अपना उद्धार करने के साधन भी पूरे दिये है । इसलिए अपने उद्धार के लिए दूसरे पर आश्रित होने की आवश्यकता नहीं है । भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्पष्ट कहा है कि - अपने द्वारा अपना उद्धार करें , अपना पतन न करें । क्योंकि आप ही अपने मित्र है और आप ही अपने शत्रु है ।
इस बात में कोई संदेह नहीं कि दिव्यभूमि भारतवर्ष में ऐसे असाधारण गुरू आज भी मौजूद है जो लोगों की बेचैनी , व्याकुलता और कुंठा का समाधान साधारण तरीके से करने की क्षमता रखते है । साथ ही ये आध्यात्मिक गुरू लोगों के जीवन को कठिन बनाने वाली चुनौतियों का समाधान भी कर रहे है ।

शनिवार, 16 जुलाई 2011

व्यवस्था परिवर्तन संभव है परन्तु


व्यवस्था परिवर्तन संभव है परन्तु इससे पहले एक नजर, कि कितना भटक गए हैं हम अपने संबिधान के लक्ष्यों से?भारतीय नेताओं ने एकसाथ बैठ कर बड़े विचारविमर्श के बाद देश के लिए एक संविधान तैयार किया था, जो कुछ थोड़े संशोधनों के साथ आज भी लागू है !

भारतीय संबिधान की प्रस्तावना में कहा गया है
हम भारत के लोग, भारत को संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न सामाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को समाजिक, आर्थिक, और राजनैतिक न्याय, विचार अभिव्यक्ति, विश्वाश, धर्म और उपासना की स्वंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा सभी के लिए व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढाने के लिए, द्रढ संकल्प हो कर, एतद द्वारा इस संबिधान को अंगीकृत और आत्मार्पित करते हैं!"

उपरोक्त लक्ष्यों को और भी सपष्ट करते हुए, संविधान के निर्देशक सिद्धांतों में भी कहा गया है:

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

शिक्षा क्षेत्र में प्रस्तावित नयी कानूनी रचनाये ...

सुव्यवस्था सूत्रधार मंच व्यवस्थाओं के सम्बन्ध में चर्चा करने का मंच है और अच्छी चर्चाओं और गंभीर विमर्शों के लिए इस मंच पर कुछ संग्रहनीय लेख भी लगाये जायेंगे उन व्यक्तियों के द्वारा लिखे हुए जो की ब्लॉग जगत पर नहीं हिं परन्तु इस विषय पर उन्होंने कुछ अच्छे लेख लिखे हैं | इसी श्रंखला में देवेन्द्र शर्मा जी का शिक्षा व्यवस्था लिखा हुआ लेख हम इस मंच पर प्रस्तुत कर रहे हैं |

gurukul
शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति की आन्तरिक शक्तियों के सर्वांगीण,उत्कॄष्ट विकास का माध्यम है।व्यक्तिगत ही नही वरन समाजिक एवं राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने का एकमात्र उपक्रम है। शिक्षा के इसी मह्त्व के ध्यान मे रखते हुये संसार के प्रत्येक राष्ट्र के मनीषियों, चिन्तकों ने शिक्षा की उपयोगिता को स्वीकार करते हुये इसे राष्ट्र की सभ्यता एवं संस्कॄति का अभिन्न अंग माना है। शिक्षा उस राष्ट्र-समाज के जीवन मुल्यों को संरक्षित एवं संवर्धित करती है। अतःशिक्षा का जितना संबंध शिक्षार्थी उससे अधिक समाज से है, नये विद्यार्थी, नयी पीढी जीवन-मुल्यों एवं संस्कॄति के प्रति निष्ठा शिक्षा के माध्यम से ही प्राप्त करती है। यह माध्यम ही एक विद्यार्थी का शारीरिक, मानसिक, नैतिक विकास कर उसका समाजीकरण करता है।

हमारे भारत मे आदिकाल से ही ग्यान की साधना अनवरत चलती रही है।"नास्ति विद्यासमं चक्षुः" अर्थात् विद्या के समान् कोई दूसरे नेत्र् नही होते है। ऐसे उच्च् आदर्शों एवं अपनी विशिष्ट शिक्षा पद्धति के कारण ही हमारे देश भारत ने सह्स्त्रॊं वर्षों तक संपूर्ण विश्व का सांस्कॄतिक नेतॄत्व करते हुये विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त की। हमारी शिक्षा परंपरा मे ऐसा माना गया है "न हि ग्यानेन् सदॄशम् पवित्रमिह् विद्यते"

मंगलवार, 12 जुलाई 2011

आखिर कब तक चलेगा यह सब???


मित्रों वर्षों से हम भारतवासी इसी हीन भावना में जी रहे हैं कि क्या हम सदियों से भूखे, नंगे व पिछड़े हुए थे? यदि ऐसा था तो हमे विश्वगुरुसोने की चिड़िया जैसी उपाधियाँ कैसे मिल गयीं?
यहाँ तो एक प्रकार का कन्फ्यूज़न हो गया| क्या यह सच है कि हम सच में विश्वगुरु थे? क्या यह सच है कि हम सच में सोने की चिड़िया थे?

इस प्रकार कि उधेड़बुन में हमे जीना पड़ रहा है| इस विषय पर राष्ट्रवादी विचारधारा के धनि महान वैज्ञानिक स्व. श्री राजीव दीक्षित का एक व्याख्यान सुना था| यह लेख उसी व्याख्यान से प्रेरित है| अत: आप भी राजिव भाई के इस ज्ञान का लाभ उठाइये|

शीर्षक आपको बाद में समझाऊंगा किन्तु लेख से पहले आपको एक सच्ची कहानी सुनाना चाहता हूँ|
हमारे देश में एक महान वैज्ञानिक हुए हैं प्रो. श्री जगदीश चन्द्र बोस भारत को और हम भारत वासियों को उन पर बहुत गर्व है| इन्होने सबसे पहले अपने शोध से यह निष्कर्ष निकाला कि मानव की तरह पेड़ पौधों में भी भावनाएं होती हैं| वे भी हमारी तरह हँसते खिलखिलाते और रोते हैं| उन्हें भी सुख दुःख का अनुभव होता है| और श्री बोस के इस अनुसंधान की तरह इसकी कहानी भी बड़ी दिलचस्प है|

श्री बोस ने शोध के लिये कुछ गमले खरीदे और उनमे कुछ पौधे लगाए| अब इन्होने गमलों को दो भागों में बांटकर आधे घर के एक कोने में तथा शेष को किसी अन्य कोने में रख दिया| दोनों को नियमित रूप से पानी दिया, खाद डाली| किन्तु एक भाग को श्री बोस रोज़ गालियाँ देते कि तुम बेकार हो, निकम्मे हो, बदसूरत हो, किसी काम के नहीं हो, तुम धरती पर बोझ हो, तुम्हे तो मर जाना चाहिए

सोमवार, 11 जुलाई 2011

अन्‍ना और बाबा.... बोलने से पहले सोचो तो.....

शोहरत इंसान को किस कदर बडबोला बना देती है, इसका उदाहरण हैं अभी हाल ही में मीडिया के माध्‍यम से हीरो बना दिए गए दो सज्‍जन। एक हैं गरीब अन्‍ना हजारे तो दूसरे हैं अमीर बाबा रामदेव। साधनहीन अन्‍ना हजारे के भ्रष्‍टाचार के मुददे पर किए आंदोलन ने देश को रातों रात एक ‘मसीहा’ दे दिया। मीडिया ने बरसों से खामोशी से इसी मुददे को लेकर काम कर रहे समाजसेवी अन्‍ना हजारे को अचानक बुलंदियों पर पहुंचा दिया। दूसरी ओर काले धन के मुददे को लेकर आंदोलन करने और फिर आंदोलन स्‍थल से महिला भेष में भागने की कोशिश करते धरे जाने वाले बाबा रामदेव।

माफ कीजिए, मैं अन्‍ना हजारे और बाबा रामदेव का समर्थक नहीं हूं। मैं इन दोनों का विरोधी भी नहीं हूं। इन दोनों ने देश के ज्‍वलंत मुददों पर बात की है और अन्‍ना हजारे के आंदोलन ने तो एक बार फिर से सरकार को सोचने पर मजबूर कर दिया है। लोकपाल बिल अन्‍ना हजारे के दबाव के कारण शायद जल्‍द ही पेश भी हो जाए।

रविवार, 10 जुलाई 2011

मुसलमानों का रवैया पुलिस के साथकैसा होना चाहिए ?


पुलिस का काम शांति व्यवस्था बनाए रखना है और इसके लिए उसे क़ानून तोड़ने वालों को पकड़ना भी पड़ता है और उन्हें पकड़ने के लिए बल प्रयोग भी करना पड़ता है । कई बार हालात पुलिस के ख़िलाफ़ हो जाते हैं । ऐसा तब होता है जबकि कम अनुभवी या जल्दबाज़ लोग ऐसी मुहिम में शामिल हों । कुछ जोशीले युवक कुछ कर दिखाने के चक्कर में ऐसा कुछ कर जाते हैं जिसके अंजाम का ख़ुद उन्हें भी कोई अंदाज़ा नहीं होता । भारतीय पुलिस सभी धर्म स्थलों का आदर करती है और उनकी सुरक्षा भी करती है । जब कभी इनमें विशेष आयोजन के चलते ज़्यादा भीड़ भाड़ होती है तो पुलिस ही वहाँ शाँति व्यवस्था बनाती है । रमज़ान , ईद , बक़रीद , मुहर्रम और बारावफ़ात से लेकर मज़ारों पर आए दिन लगने वाले मेलों में पुलिस के जवान अपना आराम सुकून खोकर अपनी ड्यूटी अंजाम देते हैं । ये बात भी ज़माना जानता है । इसके बावजूद भी आए दिन पुलिस पब्लिक संघर्ष की ख़बरें आती रहती हैं ।

शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

ट्रैफिक सिग्नल पर भीख मांगते २१वी सदी के भारत के कर्णधार

शिक्षा लेने की उम्र में भीख मांगने की मजबूरी




रोज घर से कार्यालय जाते समय दिल्ली के नारायण फ्लाईओवर के पास ५-७ मिनट का ट्रैफिक जाम सामान्य सी बात है..मगर एक और घटना रोज घटती है जिसे हमने रोज लगते ट्रैफिक जाम की तरह स्वीकार कर लिया है..वो है,इन्ही सिगनलों पर भीख मांगते कुछ अवयस्क बच्चे..मेरी भी दिनचर्या में कुछ ऐसा ही था,एक आँखों ही आँखों में अनकहा सा रिश्ता बन गया था इन बच्चो से,रोज मेरी कार वहां रूकती, कुछ जाने पहचाने चेहरों में से एक चेहरा मेरी ओर आता और मैं वहां के कई लोगो की तरह पहले से ही निकाल के रक्खे गए कुछ सिक्कों में से १ या २ उन्हें देकर दानवीर बनने की छद्म आत्मसंतुष्टि लिए आगे बढ़ जाता..

व्यस्तता के कारण कई दिन बाद कार्यालय जाना हुआ ..मगर आज एक नए चेहरे ने उसी जगह आ के हाथ फैला दिया रोज की तरह मैंने गाड़ी शीशे निचे करते हुए १ रूपये का एक सिक्का उसकी और बढ़ा दिया मगर नए चेहरे को देखकर अनायास ही निकाल पड़ा "नया आया है क्या?"बच्चा मेरी और देखता हुआ बिना कोई जबाब दिए सिक्का लेकर आगे बढ़ गया...

सोमवार, 4 जुलाई 2011

सुव्यवस्था सूत्रधार मंच नियमावली

मित्रों आप सभी की सहायता से हमने सुव्यवस्था सूत्रधार के माध्यम सेएक छोटा सा प्रयास किया है समाज में गौण होते मुद्दों और विभिन्न मुद्दों पर हमारे समाज में फैली हुए भ्रांतियों को दूर करने का..

ये किसी ब्यक्ति विशेष का मंच नहीं है ..हर कोई जो भी समाज के किसी भी मुद्दे 
पर एक तार्किक दृष्टी  रखता है उसकी रचनाओं विचारो का स्वागत है...

हमें लगता है की ब्लॉग जगत अब इतना परिपक्व हो चुका है, की हमें अपने सामाजिक उत्तरदायित्वों को समझते हुए विषय आधारित चर्चा करनी चाहिए और समस्याओं के समाधान की दिशा में चर्चा करते हुए समस्याओं के किसी समाधान तक पहुचना चाहिए... उस समाधान की सहायता से समस्या को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए |इस मंच से हमने एक प्रयास किया है इतिहास के गर्त में जा चुके पहलूओं से ले कर समसामयिक तार्किक मुद्दों पर विचार करने एवं तटस्थ एवं सत्य विचारधाराओं का अन्वेषण करने में..

हम सभी की सुविधा के लिए मंच के कुछ नियम निर्धारित किये जा रहें है जिनमे यदि आवश्यक हुआ तो आप के सुझवों एवं समयानुसार परिवर्तन किया जा सकता है..
इस मंच पर १दिन (२४ घंटे) में १ ही लेख प्रकशित होगा जिससे की लेख एवं उसके विचार ज्यादा से ज्यादा पाठकों तक पहुँच सके.
इस मंच पर केवल इस मंच के विषय पर आधारित लेख ही डालें |
 लेखकों से अनुरोध है की धार्मिक मुद्दों पर लेख लिखते समय तथ्यात्मक रहें और अनुचित उन्मादी प्रत्यारोपो से यथासंभव बचें..
 किसी भी लेखक को ७ दिन में सिर्फ १ लेख प्रकाशित करने की अनुमति होगी.
 लेख को पोस्ट करते समय कृपया वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियाँ जाँच ले..
 कोई भी पोस्ट लिखते समय उसमें सम्बंधित लेबल जरुर लिखें ..इससे विषय चयन में आसानी होती है..
व्यक्तिगत हो कर आरोप न लगायें तथा अमर्यादित भाषा के उपयोग से बचें..मंच पर अपनी व्यक्तिगत विचारधारा न थोप कर तर्कों एवं तथ्यों के माध्यम से अभिव्यक्ति करें..

 आप अपनी पोस्ट ड्राफ्ट में सहेज दें ..संपादक उसे जरुरी संपादन के बाद,बिना विषय वस्तु से छेड़छाड किये बिना  पोस्ट कर देंगे..कृपया ध्यान दे संपादक का निर्णय अंतिम होगा..(दिनांक १०-७-११ को जोड़ा गया)
 कृपया अनावश्यक लिंक न दे..आप अपने इस मंच पर अपने विचार साझा करने के लिए हैं न की लिंक.(दिनांक १०-७-११ को जोड़ा गया).

इश्वर से कामना है की इस मंच को तार्किक वास्तविक सामाजिक सरोकारों के मंच के रूप में स्थापित कर सकेंगे ...आप सभी को संचालक मडल एवं तकनिकी प्रबंधको का चयन नाम एवं प्रक्रिया अगले कुछ दिनों में मंच पर सार्वजनिक कर दी जाएगी..यदि आप कोई योगदान देना चाहते हो तो कृपयाहमें;suvyawastha@gmail.com पते पर ईमेल करें ..

किसीभी व्यवस्था में रूढ़ता आने से उस व्यवस्था में बुराइयाँ आनी प्रारंभ हो जाती हैं , जिस प्रकार रुके हुए पानी में सडन पैदा हो जाती है परन्तु प्रवाहित जल में सडन नहीं पैदा होती है उसी तरह व्यवस्थाएं भी प्रवाहमान सतत परिवर्तनशील होनी चाहिए इसी लिए हमने इस मंच की व्यवस्थाओं को प्रवाहमान,सतत परिवर्तनीय और शुभ परिवर्तनों के लिए सदैव तैयार रखा है,;
सतत परिवर्तनीयऔर शुभ परिवर्तनों के लिए सदैव तैयार रखा है, हमारे ये नियम "इति" नहीं हैं हम भी महान परम्पराओं की तहां इस नियमों के अंत में कहना चाहेंगे "नेति नेति....

"मंचकी तरफ से
 

सहयोगाकांक्षी


सुव्यवस्था सूत्रधार