tag:blogger.com,1999:blog-1135015360748959650.post2608523582973882040..comments2023-05-26T16:44:56.926+05:30Comments on सुव्यवस्था सूत्रधार मंच: ज्ञान का मुक्त प्रवाह या धन नियंत्रित ज्ञानUnknownnoreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-1135015360748959650.post-52219805390399324372011-08-03T09:54:08.155+05:302011-08-03T09:54:08.155+05:30behad sarthak lekhbehad sarthak lekhABHISHEK MISHRAhttps://www.blogger.com/profile/08988588441157737049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1135015360748959650.post-1643315655650159142011-08-01T14:30:33.060+05:302011-08-01T14:30:33.060+05:30आपने बहुत ही ज्यादा अच्छा लेख लिखा है । धन बीच में...आपने बहुत ही ज्यादा अच्छा लेख लिखा है । धन बीच में आ जाने से सचमुच बहुत सी ख़राबियाँ पैदा हो गई हैं ।<br />बधाई और शुभकामनाएँ !vidhyahttps://www.blogger.com/profile/04419215415611575274noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1135015360748959650.post-51091635520452041722011-08-01T10:41:33.215+05:302011-08-01T10:41:33.215+05:30थोडा ब्यस्तता थी इस लिए मंच से दूर था कुछ दिन..
मे...थोडा ब्यस्तता थी इस लिए मंच से दूर था कुछ दिन..<br />मेरे समझ से अर्थ के लिए अर्थ से शिक्षा लेने की बात नहीं होनी चाहिए..अंकित भाई सहमत हूँ आप से आज कल के संस्थानों का खाका भी तो बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ तैयार करती है जिससे विद्यालय ज्ञान बटने का साधन न होकर बिजनेस सेंटर हो गए हैं जिनकी बाकायदा विपणन प्रबंधन की टीम भी है..जब को १० लाख दे कर पढाई करेगा तो स्वाभाविक है की उसे वापस भी लेगा और शिक्षा का उद्देश्य पैसे कमाने तक सिमित हो जायेगे...<br />मेरी समझ से मैकाले की शिक्षा व्यवस्था को बदलने और पुरातन शिक्षा व्यवस्था को आधार बनाकर आज के युग के अनुसार शिक्षा का नविन खाका बुनना पड़ेगा..<br />अन्यथा १००० इलेक्ट्रानिक्स अभियंता में बमुश्किल १० लोग रेडियो खोल भी पायें ये है हमरी शिक्षा व्यस्था..जबकि जापान में ८ वीं पास भी मरमत कर ले इन उपकरणों का...<br />जो कुछ १-२% छात्र इस लायक भी होते हैं उन्हें अर्थ के मोह में डाल कर दलाली करा ली जाती है वर्तमान पद्धति की..<br />एक सुन्दर प्रस्तुति के लिए आपका आभारआशुतोष की कलमhttps://www.blogger.com/profile/05182428076588668769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1135015360748959650.post-70909100435030247472011-08-01T00:19:01.864+05:302011-08-01T00:19:01.864+05:30bahut-bahut-bahut dhanyavaad bhayisaahab is adbhut...bahut-bahut-bahut dhanyavaad bhayisaahab is adbhut aalekh ke liye.....राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ )https://www.blogger.com/profile/07142399482899589367noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1135015360748959650.post-89823315825903098722011-07-31T21:24:10.265+05:302011-07-31T21:24:10.265+05:30@योगेन्द्र पाल जी , शायद आप ने पूरा लेख पढ़ा नहीं ह...@योगेन्द्र पाल जी , शायद आप ने पूरा लेख पढ़ा नहीं है , मैंने लिखा है की ज्ञान आधारित सेवाएं देने वाले ब्राहमण होते हैं उसमे केवल अध्यापक ही नहीं चिकित्सक डाक्टर और इंजीनियर नयाप्रनाली से जुड़े हुए तथा इस तरह के सबी लोग हैं और इनको अपनी सेवाओं का मूल्य लेने का अधिकार नहीं है | हाँ श्रमिक ले सकता है क्यूँकी वो ज्ञान आधारित सेवा नहीं है |मैंने इस लेख में भी यही कहा है की यदी कोई भारी मात्र में धन देकर ज्ञान प्राप्त करता है तो वो निह्शुक सेवाएं नहीं दे सकत है इस लिए ज्ञान प्राप्त करने के लिए धन की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए |<br /><br />अब जहाँ तक निःशुल्क सेवा देने वालों के जीवन यापन का प्रश्न है तो इसी के लिए दान की व्यवस्था की गयी थी और यह दान सम्मान के साथ दिया जाता इसमें दान देने वाला कृतज्ञता प्रदर्शित करता था की दान ले लिया गया | तो जीवन यापन भी सम्मान के साथ हो जाता और ज्ञान आधारित सेवाओं के लिए किसी को धन की आवश्यकता भी नहीं होती |अंकित कुमार पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/02401207097587117827noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1135015360748959650.post-16838331624357921692011-07-31T21:12:04.674+05:302011-07-31T21:12:04.674+05:30@ drshyam जी ,हमें इस चक्र को तोड़ना है और अगर हम ...@ drshyam जी ,हमें इस चक्र को तोड़ना है और अगर हम इस चक्र को तोड़ देंगे तो शिक्षा में धन की आवश्यकता बहुत कम हो जाएगी और उस धन की व्यवस्था समाज कर देगा और ऐसा होता रहा है हमारे यहाँ अंग्रेजों के आने से ठीक पहले तक भीअंकित कुमार पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/02401207097587117827noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1135015360748959650.post-8845551063157876752011-07-31T21:10:02.200+05:302011-07-31T21:10:02.200+05:30मैं उत्तर देने में विलम्ब के लिए क्षमा प्रार्थी हू...मैं उत्तर देने में विलम्ब के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ कुछ तकनीकी समस्याएं थीं <br /><br />@ drshyam जी , मैं यह कहा है की शिक्षा प्राप्त करने के लिए धन की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए और शिक्षा का लक्ष्य धनोपार्जन नहीं होना चाहिए | जहाँ तक इस बात का प्रश्न है की क्या धन के बिना शिक्षा चल सकती है ? तो इसका उत्तर है नहीं , धन के बिना शिक्षा तो क्या कुछ भी नहीं चल सकता है परतु शिक्षण संस्थान धन का कितना अपव्यय करते हैं यह किसी से छिपा नहीं है | पुनः बताना चाहूँगा की भारतीय प्रद्योगिकी संस्थानों के छात्रावास किसी महंगे होटल जैसे लगते हैं और उनमे एक दिन में जितने पानी का अपव्यय होता है उससे तो एक छोटे गाँव का एक महीने का खर्चा चल सकता है | परन्तु यह रोका नहीं जा सकता है क्यूँ की ये "बड़े संस्थान" अपनी आर्थिक शक्ति के मद में रहते हैं और यह आर्थक शक्ति इनको इस लिए मिलती है क्यूँ ये संस्थान अपने ज्ञान का उपयोग केवल अर्थोपार्जन में करते हैं |अंकित कुमार पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/02401207097587117827noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1135015360748959650.post-3055156879787512992011-07-31T08:51:58.630+05:302011-07-31T08:51:58.630+05:30आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 01-08-...आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 01-08-2011 को चर्चामंच http://charchamanch.blogspot.com/ पर सोमवासरीय चर्चा में भी होगी। सूचनार्थचन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’https://www.blogger.com/profile/01920903528978970291noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1135015360748959650.post-72274023101460483392011-07-31T02:49:52.729+05:302011-07-31T02:49:52.729+05:30बंधुवर एक बहुत ही सुन्दर लेख के लिए बहुत बहुत धन्य...बंधुवर एक बहुत ही सुन्दर लेख के लिए बहुत बहुत धन्यवाद...<br />ज्ञान कोई खरीदने की वस्तु नहीं है, इस बात को समझना बहुत आवश्यक है| यह सोचना भी बहुत आवश्यक है की प्राचीन भारत में गुरुकुल एवं आचार्य परंपरा होने का क्या कारण था? क्यों इस परंपरा में ब्राह्मण वर्ग ने भिक्षा के अन्न व दान के वस्त्र पर जीवन यापन करने की प्रवृति अपना कर कठोर जीवन जिया? एक शिक्षक व एक छात्र के लिए सर्वप्रथम अहंकार मुक्त होना परम आवश्यक है| इसके बिना किसी के लिए भी ज्ञान अर्जित करना संभव नहीं है| जो भिक्षा के अन्न पर पलने वाला हो, वह भला क्या अहंकार रखेगा?<br />अंकित भाई आपके द्वारा दिए गए भारतीय प्रद्योगिकी संसथान सबंधी उदाहरण ने मन की पीड़ा को खोल कर रख दिया| मुझे आज तक समझ नहीं आ रहा कि मेरी इंजीनियरिंग मेरे देश के लिए क्या काम आ रही है? आज भी मैं एक ऐसे तंत्र पर काम कर रहा हूँ, जो किसी विदेशी कंपनी ने बनाया है और मैं तो केवल उसके उपयोग मात्र के लिए रखा गया हूँ| मुझे तो एक ऑपरेटर बना कर छोड़ दिया गया है| कुछ नया करने का मौका मुझे मेरी नौकरी में तो नहीं मिलेगा, यह मैं जनता हूँ| अध्ययन काल में जब अपने द्वारा किये गए कारनामों से शिक्षकों की प्रशंसा पाता था तो लगता था जैसे मेरा तकनीकी ज्ञान बहुत काम आने वाला है| किन्तु आज सब ख़त्म होता लग रहा है| इस विषय में आपको कुछ बातें व्यक्तिगत मेल अथवा फोन पर बताऊंगा|<br /><br />आदरणीय योगेन्द्र पाल जी, ज्ञान कोई वस्तु नहीं जिसे मुफ्त में बांटा जाए| इसके लिए भी श्रम करना पड़ता है| जहाँ तक सवाल है, अंकित जी द्वारा ज्ञान देने का, तो अभी इस मंच के द्वारा वे और क्या कर रहे हैं? इस प्रकार के महत्वपूर्ण विषय पर उनके विचार व चर्चा क्या किसी ज्ञान से कम है?<br /><br />अंकित भाई, साधुवाद...दिवसhttps://www.blogger.com/profile/07981168953019617780noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1135015360748959650.post-19599350309161225422011-07-30T18:00:49.388+05:302011-07-30T18:00:49.388+05:30प्राचीन काल में इसी 'भारत' की भूमि में, गं...प्राचीन काल में इसी 'भारत' की भूमि में, गंगा-यमुना घाटी में योगी, ऋषि, मुनि, सिद्ध, '"ब्राह्मण" आदि प्रकृति का एक अंश बनना सीख गए और जैसे संकेत मिलते हैं उन्होंने हिमालय के जंगलों में रह भूख पर नियंत्रण, पानी के सतह पर चलना, एक स्थान से अदृश्य हो दूसरे स्थान पर पलक झपकते ही पहुंचना,,, आदि आदि, प्रकृति से सीख लिया, यानी गुरु ब्रह्मा आदि से सीधे!<br /> <br />किन्तु यह विद्या सभी के लिए पाना संभव बहीं है क्यूंकि व्यक्ति विशेष की क्षमता के अतिरिक्त यह युग पर भी निर्भर करता है... और वर्तमान, दुर्भाग्यवश कहलो, अथवा काल-चक्र के उलटे चलने के कारण, कलियुग ही नहीं घोर कलियुग है...<br />अब प्रश्न यह है कि 'सतयुग' फिर से पलट के आएगा और एक नया काल-चक्र चल पड़ेगा, अथवा ब्रह्मा की रात आरंभ हो जाएगी किसी भी क्षण? ...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1135015360748959650.post-16649602821817393472011-07-30T17:56:39.171+05:302011-07-30T17:56:39.171+05:30अध्यापक ke jivan vyapan ki vyavstha bhi ki ja sakt...अध्यापक ke jivan vyapan ki vyavstha bhi ki ja sakti hai or in sabka upay dharm sastro mein hai bas use khangalne ki jarurat hai. guru dakshina iska sabse achchha udaharan hai .blogtaknikhttps://www.blogger.com/profile/18260247229709594364noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1135015360748959650.post-58899909057915221582011-07-30T16:56:24.091+05:302011-07-30T16:56:24.091+05:30इस लेख को मैं कुछ ऐसे समझा हूँ, अध्यापक को अपनी से...इस लेख को मैं कुछ ऐसे समझा हूँ, अध्यापक को अपनी सेवाओं के बदले कुछ नहीं लेना चाहिए क्यूंकि यह कुत्ते की वृत्ति है, इंजीनियर, डॉक्टर, वकील, मजदूर, इत्यादि को अपनी सेवाओं के बदले काफी मूल्य लेना चाहिए क्यूंकि वह पेशे धन कमाने के लिए ही बनाए गए हैं<br /><br />क्या अध्यापक की सेवाओं के बदले ये सभी व्यक्ति उसके रहने और खाने का इंतजाम 'इज्जत के साथ' कर देंगे?<br /><br />हो सकता है की मैंने आपके लेख को आज के समय के हिसाब से समझा, पर क्या आप मुफ्त शिक्षा देने के लिए तैयार हैं? यदि हाँ तो अब तक कितने लोगों को दी या देने वाले हैं और यदि नहीं तो क्यूँ नहीं? आप भी तो एक पढ़े लिखे व्यक्ति हैं और आप ज्ञान को मुफ्त में फैला सकते हैं, इस काम में कोई भी आपके आड़े नहीं आएगाDr. Yogendra Palhttps://www.blogger.com/profile/15028175080069734310noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1135015360748959650.post-14920139300655901062011-07-30T16:37:24.413+05:302011-07-30T16:37:24.413+05:30निश्चय ही धन की उपस्थिति शिक्षा को प्रदूषित कर रही...निश्चय ही धन की उपस्थिति शिक्षा को प्रदूषित कर रही है.....परन्तु क्या धन के बिना शिक्षा चल सकती है ? हाँ, ... शिक्षाके लिये व सम्बंधित धन का विद्यार्थियों व शिक्षकों से कोई अभिप्राय नहीं होना चाहिए, अपितु राज्य द्वारा व्यवस्था होनी चाहिए....drshyamhttps://www.blogger.com/profile/16585514321163587918noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1135015360748959650.post-71374814145866346412011-07-30T15:54:28.052+05:302011-07-30T15:54:28.052+05:30आपने बहुत ही ज्यादा अच्छा लेख लिखा है । धन बीच में...आपने बहुत ही ज्यादा अच्छा लेख लिखा है । धन बीच में आ जाने से सचमुच बहुत सी ख़राबियाँ पैदा हो गई हैं ।<br />बधाई और शुभकामनाएँ !DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1135015360748959650.post-66894376674243531172011-07-30T12:32:33.875+05:302011-07-30T12:32:33.875+05:30नैतिकता का और प्राणीमात्र के कल्याण की भावना के उद...नैतिकता का और प्राणीमात्र के कल्याण की भावना के उद्देश्य का ज्ञान तो आज भी धनव्यय मुक्त है। यह सर्वोत्तम ज्ञान है। पर मोह-माया और भोगवाद की अधिकता के इस युग में उस ज्ञान के प्रति रुचि ही कहां है?<br /><br />आज की शिक्षा जो निश्चित ही वह ज्ञान नहीं है। इस शिक्षा का उद्देश्य ही धनोपार्जन है। धनोपार्जन के लक्ष्य से ली जाने वाली शिक्षा भी प्रलोभनवश धन के बदले ही प्रदान की जाएगी। और जहां धन है वहाँ अर्थशास्त्र के नियम ही काम करेंगे- मेरे शिक्षादान योगदान से तुझे धनलाभ होता है तो उस लाभ का हिस्सा मुझे भी दो। एड्वांस!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.com