रविवार, 29 नवंबर 2015

कश्मीरी हिन्दू जनसंहार एवं विस्थापन-आधुनिक इस्लामिक असहिष्णुता का अमिट हस्ताक्षर

ये पोस्ट सहिष्णुता और भाईचारे का हल्ला मचाने वालो सभी बुद्धिजीवियों को समर्पित है..आप में से ज्यादातर कश्मीर में मुस्लिम आतंकवादियों द्वारा किये जनसंहार से अवगत होंगे फिर भी सहिष्णुता का तकाजा है की कुछ प्रकाश डाला जाये...

कश्मीर पहले एक हिन्दू बहुल राज्य हुआ करता था कालान्तर में यहाँ इस्लाम के अनुयायियों ने अपनी जनसँख्या बढ़ानी शुरू की और हिन्दू सर्व धर्म समभाव वाली सहिष्णुता का ढोल नगाड़े पिटता रहा..आजादी के पहले से ही इस्लामिक बर्बरता का शिकार यहाँ के हिन्दू रहे थे..इस पर विस्तृत लेख मैंने अपने ब्लॉग (आशुतोष की कलम से) पर डाला था जिसे रिपोर्ट के कारण हटा दिया गया..
आजादी के समय जो बलात्कार और हत्याए हिंदुओं की की गयी उसे लिखूं तो देश में असहिष्णुता की सुनामी आ जायेगी अतः सीधे मुद्दे पर आता हूँ।आजादी के बाद से ही इस्लामिक जेहादियों द्वारा सन्1981 तक कश्मीरी हिंदुओं पर अत्यचार किया जाता रहा और धीरे धीरे वहां 5% हिन्दू बच गए..
अब जेहादियों ने सन 1989 में ये फरमान जारी कर दिया की जो भी मुसलमान नहीं है वो "काफ़िर" है..या तो मुसलमान बनो या कश्मीर छोड़ दो..अपनी वर्षो की कमाई से बनाये मकान और पुरखो का धर्म और जमीन कौन छोड़ता है..वहां बचे हिंदुओं ने सन 1989 में मुसलमान बनने और कश्मीर छोड़ने दोनों से इनकार कर दिया..परिणामस्वरूप जेहादियों ने चुन चुन कर कश्मीरी हिंदुओं को मारना शुरू किया जिसकी कुछ झलकियों से रूह काँप उठेगी..जम्मू में बसे कुछ परिवारों से मैंने बात की जिसकी भयावहता की कहानी सुनकर आप की आत्मा काँप जायेगी और शायद आप सहिष्णुता छोड़कर हथियार उठा कर जेहादियों के सफाये में लग जाये..
इस्लामिक जेहादियों ने लोगो को घर से निकाल कर चौराहे पर गोली मार दी..(1989)
जिन हिंदुओं ने कश्मीर नहीं छोड़ा उनके स्कूल जा रहे बच्चों को कई हिस्सों में काट कर उनके टुकड़े कश्मीर घाँटी के चौराहे पर लटका दिए गए।।(1989)
दो तीन साल की हिन्दू बच्चियों का सामूहिक बलात्कार किया गया और उनकी लाश बंदूक के नोक पर पूरे इलाके में इस्लामिक जेहादियों ने लहराया..(1989-90)
एक घटना के बारे में कश्मीरी पंडित और अभिनेता अनुपम खेर कहते हैं की उनकी मामी के घर मुस्लिम  जेहादियों का नोटिस आया की मुसलमान तो तुम लोग बने नहीं अब या तो कश्मीर छोड़ दो या मरने को तैयार रहो..उन लोगो ने धमकियों पर ध्यान नहीं दिया और धमकी के तीसरे या चौथे दिन उनक एक हिन्दू पडोसी का कटा हुआ सर उनके आँगन में आ के गिरा..इस दृश्य से,उनके पूरे परिवार ने जो सामान उनकी फिएट कार में आ सका,भर के कश्मीर छोड़ दिया।इस घटना के सदमे से अनुपम खेर की मामी आज भी मानसिक रूप से थोड़ी विक्षिप्त हैं..
ऐसे कितनी घटनाएं हुई जिनके बारे में पढ़कर आप की रूह कॉपी जाती है तो सोचिये उस पिता का दर्द जिसके सामने उसकी साल  की बच्ची का इस्लामिक जेहादियों ने बलात्कार किया होगा और पूरे परिवार को मार डाला होगा..
सरकारी आंकड़ो के अनुसार 1990 में लगभग लाख कश्मीरी हिंदुओं ने कश्मीर छोड़ दिया और उनके मकानों पर वहां के स्थानीय मुसलमान जेहादियों ने कब्ज़ा जमा लिया जो आज तक है.. आज वो सभी परिवार जिनका कभी अपना घर था व्यवसाय था आज दिल्ली और जम्मू में बने शरणार्थी कैंपो में 25 सालो से रह रहे हैं..और उनके घरो में मुसलमान जेहादी काबिज हैं... 
अब मेरा प्रश्न उन सभी लोगो से हैं जो पुरस्कार लौटना,असहिष्णुता का नाटक कर रहे हैं??क्या इस जनसंहार से  बड़ी असहिष्णुता इस देश में हुई होगी आज तक??और तो और कुछ हरामी ऐसे भी थे जो इस नरसंहार के समय ही पुरस्कार ले रहे थे तब इन्हें ये देश असहिष्णु नही लगा और आज ये देश को रहने लायक नहीं पा रहे..
दरअसल ये नरेंद्र मोदी और हिंदुओं का विरोध है,क्योंकि अभी मोदी सरकार ने इन लोगो को कश्मीर में अलग टाउनशिप बनाने की बात की तो ये कांग्रेसीआतंकवादियों के सुर में सुर मिलाते पाये गएकी अलग से मकान नहीं दिया जायेगा रहना हो तो उन्ही राक्षस मुस्लिम जेहादियों के साथ रहे जिन्होंने इनकी बेटियों का बलात्कार एवं बच्चों को काट के चैराहे पर लटकाया था..
बस ये समझ लीजिये जिस देश में 80% हिन्दू हैं और इस्लामिक जेहादियों के इतने घृणित अत्याचारो के बाद भी मुसलमान सुरक्षित हैं और वो अपनी जनसँख्या बढ़ा पा रहे हैं तो समझना होगा की "हिन्दुस्थान" से बड़ा सहिष्णु देश विश्व में कोई नहीं है वरना अमेरिका जैसे देश में 9/11 के बाद टोपी और दाढ़ी देखकर स्थानीय जनता ने कार्यवाही की थी और आज तक कर रही है....
नोट: लेख में लिखी सारी बातें सत्य हैं यदि संशय हो तो गूगल पर चेक करें या किसी भुक्तभोगी हिन्दू से मिलें..पोस्ट का उद्देश्य किसी धर्म की बुराई नहीं मगर सत्यता को सामने लाना है जिसे शायद आज की युवा पीढ़ी अब तक जानती नहीं है या मानती नहीं है..
एक आखिरी प्रश्न उनसे जो "आतंकवाद का मजहब" नहीं होता का ज्ञान झाड़ते हैं..क्या ये संभव है क्षेत्र से लाख से ज्यादा लोगो को बेघर मुट्ठी भर "भटके हुए नौजवान" कर पाये जब तक इस सामूहिक नरसंहार और विस्थापन में एक पूरी कौम न लगी हो????
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 आशुतोष की कलम से 

बुधवार, 25 नवंबर 2015

बौधिक जेहाद के नये पैगम्बर आमिरखान का चरित्र बताती उसकी अवैध संतान "जान"


जून 1998 में आमिर खान की एक फ़िल्म आई थी "गुलाम". फ़िल्म के सेट पर आमिर खान की मुलाक़ात "जेसिका हाइंस्" नाम की लेखिका से हुई.इसी महिला ने अमिताभ की बायोग्राफी भी लिखी थी। धीरे धीरे आमिर ने इस बिदेशी महिला को फ़िल्मी दुनिया का चकाचौध दिखाकर अपने ऐय्याशी के लिए प्रयोग करना शुरू कर दिया। उसके बाद आमिर ने जेसिका को प्यार के झांसे में फसा कर "लिव इन" व्यवस्था के अंतर्गत अपने वासना पूर्ति का स्थायी साधन बना लिया..समय बीतता गया और एक दिन जेसिका ने आमिर को बताया की वो गर्भवती है अर्थात आमिर खान के बच्चे की माँ बनने वाली है और आमिर से विवाह का प्रस्ताव रक्खा तो आमिर ने सबसे पहले उस महिला पर "एबॉर्शन" यानि गर्भपात कराने का दबाव बनाया मगर जब उस महिला ने बच्चे की "भ्रूणहत्या" करने से मना कर दिया तो आमिर को गर्भवती महिला के साथ रहने और उसे स्वीकारने में अपनी अय्याशी में खलल पड़ता दिखा तो उसने महिला को पहले किसी बहाने लन्दन भेजा फिर इण्डिया से खबर भिजवा दी की या तो बच्चे की "भ्रूणहत्या" करो या सारे सम्बन्ध भूल जाओ. उस महिला ने उस बच्चे को जन्म देने का निर्णय लिया और आमिर और जेसिका हाइंस के अवैध सम्बन्ध का परिणाम के रूप में एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम "जान" है..
सन 2005 में जेसिका ने बच्चे को उसका हक़ दिलाने का प्रयास किया मामला टीवी मिडिया में छाया रहा मगर आमिर खान ने ऊपर तक पहुँच और पैसे के बल पर मामला दब गया और सलटा लिया गया..आज आमिर का वो लड़का लगभग 12 साल का है और मॉडलिंग करता है..
मैंने जेहादी आमिर का "सत्यमेव जयते" आज तक नहीं देखा मगर इसने भ्रूणहत्या पर जरूर कार्यक्रम किया होगा ऐसी आशा है..आखिर ऐसी दोगलपंथी की अपने बच्चे तक को न स्वीकारो??? आज आमिर को भारत में ‪#‎असहिष्णुता‬ दिख रही है क्या अपने बच्चे को माँ के पेट में ही मारने का कुत्सित प्रयास सहिष्णुता माना जाये..ये तो एक केस है ऐसे पता नहीं कितने "जान" आमिर की ऐय्याशी के कारण विश्व के किसी कोने में किराए के बाप की तलाश में होंगे। इसी आमिर खान ने अपने बड़े मानसिक रूप से अस्वस्थ भाई और अभिनेता "फैजल खान" को आमिर ने अपने घर में जबरिया बंधक बना के रक्खा था और आमिर के पिता के कोर्ट जाने के बाद कोर्ट के आदेश पर आमिर के पिता को फैजल खान की कस्टडी मिली..
खैर ये तो है इस जेहादी अभिनेता का चरित्र जिसे हम और आप "मिस्टर परफेक्ट" और फलाना ढिमका कहते हैं। सरकारो की मजबूरी होती है इस प्रकार के प्रसिद्ध लोगो को ढोना सर पर बैठाना क्योंकि करोडो युवा ऐसे नचनियों को आदर्श बना बैठे हैं...मगर इसके पीछे हम और आप है जो इनकी फिल्मो को हिट कराते हैं ये अरबो कमा कर भी ‪#‎भारत_माता‬ का खुलेआम ‪#‎अपमान‬ करके पुरे देश को विश्व में बदनाम करते हैं.
आइये आमिर और शाहरुख़ से ही शुरुवात करें की इन नचनियों की फ़िल्म नहीं देखेंगे। अगर इन के नाच गाने पर फिर भी किसी का दिल आ गया है तो जल्द से जल्द इसकी हर रिलीज होने वाली फ़िल्म की CD को इंटरनेट मार्केट में डाल दें जिससे इन जेहादियों को मिलने वाली रेवेन्यू पर रोक लगे...
आशुतोष की कलम से
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मंगलवार, 24 नवंबर 2015

हिंदी मासिक पत्रिका "ह्यूमन टुडे" के लिए रचनाये आमंत्रित

सभी ब्लॉगर मित्रों को नमस्कार
बहुत दिन बाद आप मित्रों के सम्मुख आने का मौका मिला , मित्रों नव प्रकाशित हिंदी मासिक पत्रिका "ह्यूमन टुडे " को सम्पादन करने की जिम्मेदारी मिली है. ऐसे में आपलोगों की याद आनी स्वाभाविक है. भले ही इतने दिनों तक गायब रहा लेकिन आपसे दूर नहीं , मैं चाहता हूँ की जो ब्लॉगर मित्र अपनी रचनाओ के माध्यम से मुझसे जुड़ना चाहते है , मै  उनका सहर्ष स्वागत करता हूँ।  सामाजिक सरोकारों से जुडी इस पत्रिका में आपकी रचनाओ का स्वागत है , जो मित्र मुझसे जुड़ना चाहते हैं वे अपनी रचनाएँ मुझे मेल करें। ।
humantodaypatrika@gmail.com
रचनाएँ राजनितिक , सामाजिक व् ज्ञानवर्धक हो। कविता , कहानी व विभिन्न विषयो पर लेख आमंत्रित।
harish singh ---- editor- Humantoday

गुरुवार, 19 नवंबर 2015

दशरथ माँझी

प्रेम, सच्चा प्रेम, अथाह प्रेम, ‘दशरथ माँझी का प्रेम’। अगर कोई आम व्यक्ति उथले तौर पर देखे तो दशरथ माँझी को सनकी-ठरकी जैसे शब्दों से संबोधित करेगा। परन्तु यदि कोई वास्तव में प्रेम की गहराई को समझे तो वह प्रेम की एक ऐसी मिसाल हैं जो वर्तमान पीढ़ी को एक सुंदर एवं हृदयस्पर्शी संदेश देते हैं। उन्हें दिए गए ‘सनकी’ संबोधन को यदि सही शब्दावली दी जाए तो वे ‘जुनूनी’ थे। हवा के रूख के विपरीत स्वतंत्र आकाश में विचरण करने वाले ‘विजेता’। लगनशील, धैर्यशील एवं कभी हार न मानने वाले। समस्त विपरीत परिस्थितियों में, नकारात्मक संवादों के मध्य स्वयं को मात्र अपने प्रेम को समर्पित करने वाले ‘दशरथ माँझी’। वर्तमान युवा पीढ़ी के लिए प्रेम की जो परिभाषा है वह अत्यधिक संदिग्ध है। वास्तव में वे प्रेम, आकर्षण एवं हवस के मध्य भेद स्पष्ट करने में समर्थ नहीं हैं। उनके लिए प्रेम के मायने मात्र मौज-मस्ती एवं साथ जीवन बिताना है। और भी अनेक भद्दे क्रियाकलाप उनकी दिनचर्या के अंग हैं जिन्हें वे प्रेम का नाम देकर या तो अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं या वे वास्तव में अनभिज्ञ हैं। उन सभी को दशरथ माँझी के जीवन पर बनी यह फिल्म अवश्य देखनी चाहिए और समझना चाहिए कि सच्चा प्रेम किसी को उठा ले जाना, किसी की हत्या करना, किसी पर एसिड फेंकना या किसी के साथ दुराचार करना नहीं वरन् किसी के लिए समर्पित होना है। उसके दुःख-सुख को अपनाना है। उसकी भावनाओं को समझना है। उसकी आँखांे मंे आँसू अवश्य हो मगर खुशी के। परन्तु अत्यन्त खेद के साथ कहना पड़ता है कि वर्तमान पीढ़ी ने प्रेम की अत्यधिक शर्मनाक परिभाषा गढ़ी है। ‘तू नहीं तो कोई और सही, कोई और नहीं तो कोई और सही’ या ‘तू मेरी नहीं तो किसी की भी नहीं’। दोनों ही स्थितियों मेें प्रेम का एक घृणित रूप प्रकट होता है। ‘लिव-इन’ जैसे संबंधों ने तो रिश्तों को ओच्छा रूप दे दिया। रिश्तों में बंधना एवं एक-दूसरे के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करना हमारी युवा पीढ़ी को बंधंन प्रतीत होता है। स्वतंत्रता से स्वच्छंदता के सफ़र में वे आत्मीयता को खो चुके हैं। ‘लव-इश्क-मोहब्बत’ का राग अलापने वाले या तो पारिवारिक जिम्मेदारियों में बंधना नहीं चाहते और यदि बंध गए तो उनका गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार पल-पल प्रेम व रिश्तों को अपमानित करता है। दुःखद यह है कि आगामी समय में इसका और विभत्स रूप ही देखने की उम्मीद है। व्यक्तिगत् स्तर पर मैं यह महसूस करती हूँ कि ताजमहल की भाँति दशरथ माँझी द्वारा बनाए गए उस मार्ग को ‘राष्ट्रीय संपदा’ घोषित किया जाना चाहिए। हमारी लगभग समस्त ‘राट्रीय संपदाएँ’ भले ही हमारे सम्मानीय पूर्वजों प्रदत्त अनमोल उपहार हों परन्तु दशरथ माँझी की स्वनिर्मित यह रचना एवं कठोर तपस्या उनके सम्मुख अतुलनीय है। ताजमहल ‘प्रेम की निशानी’ अवश्य है परन्तु दशरथ माँझी के मार्ग एवं ताजमहल के मध्य तुलना की जाए तो ताजमहल ‘दीवानेपन’ का परिणाम है और ‘दशरथ माँझी मार्ग’ समर्पण का प्रमाण है। निश्चित रूप से अकेले विकट परिस्थितियों में पहाड़ तोड़ना, अपने दीवानेपन को अपने दासों की सुंदर कल्पना के माध्यम से प्रकट करने से कहीं ज़्यादा जटिल एवं महान है। दशरथ माँझी के उस प्रेम के तुल्य अभी तक कोई मिसाल मेरी जानकारी में नहीं है। वास्तव में इसकी तुलना करके इस पवित्र प्रेम को अपमानित भी नहीं किया जाना चाहिए। जहाँ एक ओर ‘दशरथ माँझी मार्ग’ अपार प्रेम को दर्शाता है वहीं दूसरी ओर यह दशरथ माँझी की जनहित भावनाओं को भी प्रदर्शित करता है। वे इस मार्ग का निर्माण इसलिए भी करना चाहते थे जिससे जो दुःखद घटना उनके जीवन का अंग बनी, उसकी पुनरावृत्ति किसी और जीवन में न हो। वे उस अपार कष्ट से इतने व्यत्थित थे इसकी कल्पना तक भी वे किसी अन्य के प्रति न कर सके। परहित के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। दूसरों के कष्टों को अपने जीवन का अंग बनाने वाले- ऐसे थे दशरथ माँझी। केतन मेहता द्वारा निर्देशित यह फिल्म न केवल निर्देशन की दृष्टि से वरन् पात्रों के अभिनय की दृष्टि से भी अत्यधिक भावुक एवं बेहतरीन फिल्म है। निर्देशक ने छोटे-छोटे दृश्यों के माध्यम से पिता का बच्चों के प्रति प्रेम, सरकारी तंत्रों की निकृष्टता, गरीबी, राजनेताओं का भद्दा प्रदर्शन, तानाशाही, जमींदारों की क्रूरता को अत्यंत संवेदनशील ढंग से प्रदर्शित किया है। हम आभारी हैं केतन मेहता के जिन्होंने दशरथ माँझी जैसे महान व्यक्तित्व एवं उनके कठोर जीवन से हमारा परिचय कराया।