रविवार, 5 फ़रवरी 2012

मँहगाई डायन बच्चे खात है.........


‘‘सखी सैंया तो खूब कमात हैं, मँहगाई डायन खाए जात है’’। पीपली लाइव फिल्म का यह गीत वर्तमान निर्मम मँहगाई व सरकारी नीतियों पर तीखा व्यंग्य है। इन पंक्तियों को माध्यम बना बहुत से लेखकों ने विभिन्न समस्याओं की आलोचना की एवं जनजागरूकता का प्रयास किया। मँहगाई की काली छाया के प्रकोप से भयभीत एक नवीन विचारधारा हमारे समाज में विसरित हो रही है। ‘हम दो हमारा एक’ की नई सोच। नई पौध एक बच्चे की समर्थक है। उनके अनुसार भावी जीवन अत्यन्त जटिल है और उन परिस्थितियों की कल्पना ही उन्हें भयभीत कर देती है। वर्तमान परिस्थितियों में ही दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना अत्यन्त कठिन हो गया है। ऐसे में दो बच्चों का खर्चा वहन करना सरल नहीं है। इसका एक कारण यह भी है कि वे एक बच्चे की परवरिश में सम्पूर्ण ध्यान केन्द्रित करना चाहते हैं। चौबीस घण्टे वे बच्चे के रहन-सहन एवं रख-रखाव पर अपनी नज़र रख सकते हैं। निःसन्देह इस निर्णय में नई पीढ़ी की सोच सकारात्मक एवं समाज हितवादी है। ‘एक बच्चा नीति’ का अनुसरण कर चीनी का बढ़ती जनसंख्या पर नियन्त्रण करने का प्रयास अभी तक जारी है। भारत की बढ़ती जनसंख्या भी चिंता का विषय है। ऐेसे में नई पीढ़ी यह निर्णय समझारी का प्रतीक है, सरहानीय है। बहरहाल देखना यह है नई पीढ़ी एवं उनके पूर्वजों के मध्य इस विषय पर चलने वाले वैचारिक संघर्ष में कौन विजयी होता है? परन्तु सार तो यही है कि ‘मँहगाई डायन’ ने अब बच्चों को भी खाना शुरू कर दिया है।



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