सोमवार, 25 जुलाई 2011

तुम मुझे गाय दो, मैं तुम्हे भारत दूंगा


मित्रों शीर्षक पढ़कर चौंकिए मत| मैं कोई नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसा नारा लगाकर उनके समकक्ष बनने का प्रयास नहीं कर रहा| उनके समकक्ष बनना तो दूर यदि उनके अभियान का योद्धा मात्र भी बन सका तो स्वयं को भाग्यशाली समझूंगा|

अभी जो शीर्षक मैंने दिया, वह एक अटल सत्य है| यदि भारत निर्माण करना है तो गाय को बचाना होगा| एक भारतीय गाय ही काफी है सम्पूर्ण भारत की अर्थव्यवस्था चलाने के लिए| किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी की आवश्यकता ही नहीं है| ये कम्पनियां भारत बनाने नहीं, भारत को लूटने आई हैं|

खैर अब मुद्दे पर आते हैं|मैं कह रहा था कि मुझे भारत निर्माण के लिए केवल भारतीय गाय चाहिए| यदि गायों का कत्लेआम भारत में रोक दिया जाए तो यह देश स्वत: ही उन्नति की ओर अग्रसर होने लगेगा| मैं दावे के साथ कहता हूँ कि केवल दस वर्ष का समय चाहि
ए| दस वर्ष पश्चात भारतीय अर्थव्यवस्था सबसे ऊपर होगी| आज की सभी तथाकथित महाशक्तियां भारत के आगे घुटने टेके खड़ी होंगी|

सबसे पहले तो हम यह जानते ही हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है| कृषि ही भारत की आय का मुख्य स्त्रोत है| ऐसी अवस्था में किसान ही भारत की रीढ़ की हड्डी समझा जाना चाहिए| और गाय किसान की सबसे अच्छी साथी है| गाय के बिना किसान व भारतीय कृषि अधूरी है| किन्तु वर्तमान परिस्थितियों में किसान व गाय दोनों की स्थिति हमारे भारतीय समाज में दयनीय है|

एक समय वह भी था जब भारतीय किसान कृषि के क्षेत्र में पूरे विश्व में सर्वोपरि था| इसका कारण केवल गाय है| भारतीय गाय के गोबर से बनी खाद ही कृषि के लिए सबसे उपयुक्त साधन है| गाय का गोबर किसान के लिए भगवान् द्वारा प्रदत एक वरदान है| खेती के लिए भारतीय गाय का गोबर अमृत है| इसी अमृत के कारण भारत भूमि सहस्त्रों वर्षों से सोना उगलती आ रही है|

किन्तु हरित क्रान्ति के नाम पर सन १९६० से १९८५ तक रासायनिक खेती द्वारा भारतीय कृषि को नष्ट कर दिया गया| हरित क्रान्ति की शुरुआत भारत की खेती को उन्नत व उत्तम बनाने के लिए की गयी थी| किन्तु इसे शुरू करने वाले आज किस निष्कर्ष तक पहुंचे होंगे?

रासायनिक खेती ने धरती की उर्वरता शक्ति को घटा कर इसे बाँझ बना दिया| साथ ही साथ इसके द्वारा प्राप्त फसलों के सेवन से शरीर न केवल कई जटिल बिमारियों की चपेट में आया बल्कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी घटी है|

वहीँ दूसरी ओर गाय के गोबर से बनी खाद से हमारे देश में हज़ारों वर्षों से खेती हो रही थी| इसका परिणाम तो आप भी जानते ही होंगे| किन्तु पिछले कुछ दशकों में ही हमने अपनी भारत माँ को रासायनिक खेती द्वारा बाँझ बना डाला|

इसी प्रकार खेतों में कीटनाशक के रूप में भी गोबर व गौ मूत्र के उपयोग से उत्तम परिणाम वर्षों से प्राप्त किये जाते रहे| गाय के गोबर में गौ मूत्र, नीम, धतुरा, आक आदि के पत्तों को मिलाकर बनाए गए कीटनाशक द्वारा खेतों को किसी भी प्रकार के कीड़ों से बचाया जा सकता है| वर्षों से हमारे भारतीय किसान यही करते आए हैं| किन्तु आज का किसान तो बेचारा रासायनिक कीटनाशक का छिडकाव करते हुए स्वयं ही अपने प्राण गँवा देता है| कई बार किसान कीटनाशकों की चपेट में आकर मर जाते हैं| ज़रा सोचिये कि जब ये कीटनाशक इतने खतरनाक हैं तो पिछले कई दशकों से हमारी धरती इन्हें कैसे झेल रही होगी? और इन कीटनाशकों से पैदा हुई फसलें जब भोजन के रूप में हमारी थाली में आती हैं तो क्या हाल करती होंगी हमारा?

केवल चालीस करोड़ गौवंश के गोबर व मूत्र से भारत में चौरासी लाख एकड़ भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है| किन्तु रासायनिक खेती के कारण आज भारत में १९० लाख किलो गोबर के लाभ से हम भारतवासी वंचित हो रहे हैं|

किसी भी खेत की जुताई करते समय चार से पांच इंच की जुताई के लिए बैलों द्वारा अधिकतम पांच होर्स पावर शक्ति की आवश्यकता होती है| किन्तु वहीँ ट्रैक्टर द्वारा इसी जुताई में ४० से ५० होर्स पावर के ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है| अब ट्रैक्टर व बैल की कीमत के अंतर को बहुत सरलता से समझा जा सकता है| वहीँ ट्रैक्टर में काम आने वाले डीज़ल आदि का खर्चा अलग है| इसके अतिरिक्त भूमि के पोषक जीवाणू ट्रैक्टर की गर्मी से व उसके नीचे दबकर ही मर जाते हैं|

इसके अलावा खेतों की सींचाई के लिए बैलों के द्वारा चालित पम्पिंग सेट और जनरेटर से ऊर्जा की आपूर्ति भी सफलता पूर्वक हो रही है| इससे अतिरिक्त बाह्य ऊर्जा में होने वाला व्यय भी बच गया|यदि भारतीय कृषि में गौवंश का योगदान मिले तो आज भी भारत भूमि सोना उगल सकती है| सदियों तक भारत को सोने की चिड़िया बनाने में गाय का ही योगदान रहा है|

ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में भी पशुधन का उपयोग लिया जा सकता है| आज भारत में विधुत ऊर्जा उत्पादन का करीब ६७ प्रतिशत थर्मल पावर से, २७ प्रतिशत जलविधुत से, ४ प्रतिशत परमाणु ऊर्जा से व २ प्रतिशत पवन ऊर्जा के द्वारा हो रहा है|

थर्मल पावर प्लांट में विधुत उत्पादन के लिए कोयला, पैट्रोल, डीज़ल व प्राकृतिक गैस का उपयोग किया जाता है| इसके उपयोग से कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन वातावरण में हो रहा है| जिससे वातावरण के दूषित होने से भिन्न भिन्न प्रकार के रोगों का जन्म अलग से हो रहा है|

जलविधुत परियोजनाएं अधिकतर भूकंपीय क्षेत्रों में होने के कारण यहाँ भी खतरे की घंटी है| ऐसे में किसी भी बाँध का टूट जाना करोड़ों लोगों को प्रभावित कर सकता है| टिहरी बाँध के टूटने से चालीस करोड़ लोग प्रभावित होंगे|

परमाणु ऊर्जा के उपयोग का एक भयंकर परिणाम तो हम अभी कुछ समय पहले जापान में देख ही चुके हैं| परमाणु विकिरणों के दुष्प्रभाव को कई दशकों बाद भी देखा जाता है|

जबकि यहाँ भी गौवंश का योगदान लिया जा सकता है| स्व. श्री राजीब भाई दीक्षित अपने पूरे जीवन भर इस अनुसन्धान में लगे रहे व सफल भी हुए| उनके द्वारा बनाए गए गोबर गैस संयत्र से गोबर गैस को सिलेंडरों में भरकर उसे ईंधन के रूप में उपयोग लिया जा सकता है| आज एक साधारण कार को पैट्रोल से चलाने में करीब चार रुपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से खर्च होता है| जिस प्रकार से पैट्रोल, डीज़ल के दाम बढ़ रहे हैं, यह खर्च आगे और भी बढेगा| वहीँ दूसरी और गोबर गैस के उपयोग से उसी कार को ३५ से ४० पैसे प्रति किलोमीटर के हिसाब से चलाया जा सकता है|


आईआईटी दिल्ली ने कानपुर गोशाला और जयपुर गोशाला अनुसंधान केन्द्रों के द्वारा एक किलो सी .एन.जी. से २५ से ४० किलोमीटर एवरेज दे रही तीन गाड़ियां चलाई जा रही है|रसोई गैस सिलेंडरों पर भी यह बायोगैस बहुत कारगर सिद्ध हुई है| सरकार की भ्रष्ट नीतियों के चलते आज रसोई गैस के दाम भी आसमान तक पहुँच गए हैं, जबकि गोबर गैस से एक सिलेंडर का खर्च केवल ५० से ७० रुपये तक आँका गया है|

इसी बायोगैस से अब हैलीकॉप्टर भी जल्द ही चलाया जा सकेगा| हम इस अनुसन्धान में अब सफलता के बहुत करीब हैं|गोबर गैस प्लांट से करीब सात करोड़ टन लकड़ी बचाई जा सकती है, जिससे करीब साढ़े तीन करोड़ पेड़ों को जीवन दान दिया जा सकता है| साथ ही करीब तीन करोड़ टन उत्सर्जित कार्बन डाई आक्साइड को भी रोका जा सकता है|

पैट्रोल, डीज़ल, कोयला व गैस तो सब प्राकृतिक स्त्रोत हैं, किन्तु यह बायोगैस तो कभी न समाप्त होने वाला स्त्रोत है| जब तक गौवंश है, तब तक हमें यह ऊर्जा मिलती रहेगी|हाल ही में कानपुर की एक गौशाला ने एक ऐसा सीऍफ़एल बल्ब बनाया है जो बैटरी से चलता है| इस बैटरी को चार्ज करने के लिए गौमूत्र की आवश्यकता पड़ती है| आधा लीटर गौमूत्र से २८ घंटे तक सीऍफ़एल जलता रहेगा|यदि सरकार चाहे तो इस क्षेत्र में सकारात्मक कदम उठाकर इससे भारी मुनाफा कमाया जा सकता है|

इसके अतिरिक्त चिकित्सा के क्षेत्र में तो भारतीय गाय के योगदान को कोई झुठला ही नहीं सकता| हम भारतीय गाय को ऐसे ही माता नहीं कहते| इस पशु में वह ममता है जो हमारी माँ में है|भारतीय गाय की रीढ़ की हड्डी में सूर्यकेतु नाड़ी होती है| सूर्य के संपर्क में आने पर यह स्वर्ण का उत्पादन करती है| गाय के शरीर से उत्पन्न यह सोना गाय के दूध, मूत्र व गोबर में भी होता है|

अक्सर ह्रदय रोगियों को घी न खाने की सलाह डॉक्टर देते रहते हैं| साथ ही एलोपैथी में ह्रदय रोगियों को दवाई में सोना ही कैप्सूल के रूप में दिया जाता है| यह चिकित्सा अत्यंत महँगी साबित होती है|जबकि आयुर्वेद में ह्रदय रोगियों को भारतीय गाय के दूध से बना शुद्ध घी खाने की सलाह दी जाती है| इस घी में विद्यमान स्वर्ण के कारण ही गाय का दूध व घी अमृत के समान हैं|गाय के दूध का प्रतिदिन सेवन अनेकों बीमारियों से दूर रखता है|

गौ मूत्र से बनी औषधियों से कैंसर, ब्लडप्रेशर, अर्थराइटिस, सवाईकल हड्डी सम्बंधित रोगों का उपचार भी संभव है| ऐसा कोई रोग नहीं है, जिसका इलाज पंचगव्य से न किया जा सके|यहाँ तक कि हवन में प्रयुक्त होने वाले गाय के घी व गोबर से निकलने वाले धुंए से प्रदुषण जनित रोगों से बचा जा सकता है| हवन से निकलने वाली गैसों में इथीलीन आक्साइड, प्रोपीलीन आक्साइड व फॉर्मएल्डीहाइड गैसे प्रमुख हैं|

इथीलीन आक्साईड गैस जीवाणु रोधक होने पर आजकल आपरेशन थियेटर से लेकर जीवन रक्षक औषधियों के निर्माण में प्रयोग मे लायी जा रही है। वही प्रोपीलीन आक्साइड गैस का प्रयोग कृत्रिम वर्षा कराने के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है|साथ ही गाय के दूध से रेडियो एक्टिव विकिरणों से होने वाले रोगों से भी बचा जा सकता है|यदि सरकार वैदिक शिक्षा पर कुछ शोध करे तो दवाइयों पर होने वाले करीब दो लाख पचास हज़ार करोड़ के खर्चे से छुटकारा पाया जा सकता है|

अब आप ही बताइये कहने को तो गाय केवल एक जानवर है, किन्तु इतने कमाल का एक जानवर क्या हमें ऐसे ही बूचडखानों में तड़पती मौत मरने के लिए छोड़ देना चाहिए?कुछ तो कारण है जो हज़ारों वर्षों से हम भारतीय गाय को अपनी माँ कहते आए हैं|भारत निर्माण में गाय के अतुलनीय योगदान को देखते हुए शीर्षक की सार्थकता में मुझे यही शीर्षक उचित लगा|

16 टिप्‍पणियां:

  1. गोवंश सदैव से भारतीय धर्म कर्म एंव संस्कृति का मूलाधार रहा है। कृषि प्रधान देश होने से भारतीय अर्थव्यवस्था का स्त्रोत रहा है। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अमर सैनानियो-लोकमान्य तिलक महामना मालवीय गोखले आदि ने यह घोषणा की थी स्वराज्य मिलते ही गोवध तुरना बंन्द कराया जायगा। उपयुर्क्त नेताओं की घोषणाओ को ध्यान में रखते हुए भारतीय जनता को आशा थी कि अंग्रजी शासन चले जाने के साथ ही साथ गोहत्या का कलंक भी इस देश से मिट जायगा। किन्तु वह आशा फलीभूत नहीं हुई। इसे देश का दुभार्ग्य ही कहा जायगा, की इस गौ माता के इतने सारे फायदे होते हुए भी हम मूक बने बैठे हैं और गाय पालने की बजाये कुत्ते पाले बैठे हैं !
    टिप्पणी लम्बी हो जाएगी वर्ना लिखने को तो बहुत कुछ है पर खैर एक सार्थक और ज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए आभार प्रभु आपको इतना ज्ञान बक्शे कि आप पूरे ब्लॉग जगत को अपने ज्ञान से सोचने पर मजबूर कर दें !

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  2. आदरणीय दिवस दिनेश गौड जी नमस्कार
    गाय माता के संरक्षण द्वारा भारत का समृद्ध व सुव्यवस्थित पुनर्निर्माण करने का मार्गदर्शन कराती महत्वपूर्ण पोस्ट ...... आभार ।
    वन्दे गौ मातरम्

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  3. सुन्दर , सत्य व समीचीन आलेख .....

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  4. इतनी उपयोगी और ज्ञानवर्धक जानकारी विस्तारपूर्वक देने के लिए आप बधाई के पात्र हैं ........पढ़ने का मौका देने के लिए आभार

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  5. आपने सही कहा है कि लोग कुत्ते पाले बैठे हैं फैशन में । देशी गाय की उन्नत नस्ल को पालना चाहिए और जिन लोगों के पास गाय पालने जितनी जगह न हो तो उन्हें भी कुत्ता पालने के बजाय राजस्थानी बकरी पालनी चाहिए । इससे चाहे लाभ भले ही कुछ कम हों लेकिन बहरहाल कुत्ता पालने से तो बेहतर ही है ।

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  6. दिवस जी इस सुन्दर आलेख को लिखने के लिए कोटिशः अभिनन्दन , आप ने गाय और गोवंश के आर्थिक और सामाजिक महत्त्व को बहुत ही सुन्दर और तार्किक तरीके से दिखाया है इस लेख में ,हमें अपने पूर्वजों द्वारा समझे गए इस ज्ञान को पुनः आत्मसात करने की आवश्यकता है |

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  7. संजय भाई, विश्वजीत सिंह जी, डॉ. श्याम गुप्ता जी, बहन रेखा जी, अनवर भाई, अंकित भाई आप सभी का आभारी हूँ| बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने मेरे प्रयासों को सराहा| संजय भाई आपने सही कहा है की आज़ादी के बाद गौ हत्या बंद होनी चाहिए थी, किन्तु सरकार ने हमारे साथ धोखा किया|
    टिपण्णी लम्बी होने दीजिये, यहाँ लम्बी टिप्पणियाँ वर्जित नहीं हैं| आपके ज्ञान से हमे लाभान्वित होने का अवसर दें|
    अनवर भाई कुत्ता पालना कोई बुरी बात नहीं है| कुत्ता भी बेचारा एक जीव है| प्रकृति पर उसका भी अधिकार है| गाय पालना अच्छी बात है किन्तु कुत्ता पालना कोई बुरी बात नहीं है| मैं भी कुत्ता पालता हूँ|

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  8. आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है ..एक अकेली गाय माता ही है जो भारत को सामजिक आर्थिक .व् आध्यात्मिक रूप से समृद्ध कर सकती ...आप सभी से अनुरोध है कि इन सरकारों से उमीद टूट चुकी है ..हम सब को ही मिलकर काम करना होगा सब संकल्प लें कि गोऊ आधारित उत्पादों को अपनाएं ...शुरुआत खुद से करें

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  9. गौ वंश के बारे में बहुत ही सुन्दर तार्किक जानकारी आप ने दी..
    धर्म से इतर भी देखें तो गौवंश कृषि से लेकर दूध खाद इत्यादि में योगदान करता है..दुःख यह है की आजदी से लेकर अब तक प्रति व्यक्ति गौवंश की संख्या लगभग आधी से कम हो गयी है..
    गौरक्षक दल इस दिशा में सही कार्य कर रहा है हमें उनका सहयोग करके गौवंश में वृद्धि करनी होगी तभी भारतवर्ष का वास्तविक उत्त्थान संभव है...

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  10. @ आदरणीय दिवस जी ! बुरा तो सुअर भी नहीं होता। हरेक जानवर का इस प्रकृति में कुछ न कुछ काम ज़रूर है। उनके कामों को जानकर उनसे काम लेने की सलाहियत केवल मानव में है। जहंा जिस जानवर की ज़रूरत हो, वहां उससे काम लेने में कोई हरज नहीं है। मैंने कहा है कि ‘फ़ैशन में कुत्ता पालना ठीक नहीं है‘
    इससे भी कम व्यय में एक राजस्थानी बकरी पाली जा सकती है जिससे देश का सकल दुग्ध उत्पादन बढ़ेगा। एक बार जनाब सुनील दत्त साहब का जापान में जाना हुआ तो उन्होंने लौटकर बताया कि हरेक जापानी अपनी छत पर तो अपने घर के लिए सब्ज़ी पैदा करता ही है लेकिन अगर उसे घर के बाहर भी एक अंगुल जगह बीज बोने की मिलती है तो वे उसमें मक्का का बीज बो देते हैं और सभी जापानी यही करते हैं और मात्र इतनी सी बात की वजह से ही वे अपना राष्ट्रीय उत्पादन लाखों कुन्तल अतिरिक्त बढ़ा लेते हैं।
    जहां शिकार और सुरक्षा की वैधानिक और सामाजिक ज़रूरत हो तो कुत्ता पालना जायज़ है लेकिन सिर्फ़ अपने पैसे और अपने रूतबे को प्रदर्शित करने के लिए ऐसा करना ठीक नहीं है।
    मैं समझता हूं कि इस बात में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

    ...क्या लेख में एडिटिंग करके कुछ अंश हटा दिए गए हैं ?

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  11. आदरणीय अनवर जमाल जी , इस लेख में कोई संपादन नहीं किया गया है |

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  12. शत-प्रतिशत सहमत! आशा है, जल्दी ही देश में एक ऐसी सरकार बनेगी, जो पूरी तरह "भारतीय" होगी...

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  13. गाय के शरीर में देवताओं का वास व पैरों में तीर्थ स्थल होता है। महंत जी ने कहा कि जब कोई भी मनुष्य गऊ माता की धुली को अपने माथे पर लगाता है तो उसे तत्काल किसी तीर्थ स्थल के जल में स्नान करने जितना पुण्य प्राप्त होता है और सफलता उसके कदम चूमती है। जहां पर गाय रहती है वह स्थान पवित्र होकर तीर्थ स्थल के समान हो जाता है। ऐसी भूमि पर प्राण त्यागने वाला इंसान तुरन्त मुक्ति प्राप्त करता है। गाय ही भूत और भविष्य है। ये सदा रहने वाली पुष्टि का कारण व लक्ष्मी की जड है। गौ माता को जो कुछ दिया जाता है उसका पुण्य कभी नष्ट नहीं होता जो लोग गो दान करते हैं वे समस्त संकटों से मुक्त होकर दुष्कर्मो के पाप समूह से भी तर जाते हैं।
    गाय के सींगो के अग्र भाग में देवराज इंद्र, हृदय में कार्तिकेय, सिर में ब्रह्मा और ललाट में शंकर, दोनों नेत्रों में चंद्रमा और सूर्य, जीभ में सरस्वती, दांतो में मरुद्गण, स्तनों में चारों पवित्र समुद्र, गोमूत्र में गंगा, गोबर में लक्ष्मी व खुरों के अग्र भाग में अप्सराए निवास करती है। उन्होंने कहा कि गाय के सींगो में चर व अचर सभी तीर्थ विद्यमान है। ललाट में देवी पार्वती व हुंकार में भगवती सरस्वती का वास है। गालों में यम व यक्ष निवास करते हैं।

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  14. gaay aur kutte par behas kaaeh chhid gai. kutta ek jaanwar hae gaay ham hinduon ki maa he

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  15. एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर सराहनीय प्रयास किया गया है.
    लेख कुछ लंबा हो गया है.
    विषय वस्तुनिष्ठ रहता तो और अच्छा रहता.
    प्रयास जारी रखिए.

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