शनिवार, 16 जुलाई 2011

व्यवस्था परिवर्तन संभव है परन्तु


व्यवस्था परिवर्तन संभव है परन्तु इससे पहले एक नजर, कि कितना भटक गए हैं हम अपने संबिधान के लक्ष्यों से?भारतीय नेताओं ने एकसाथ बैठ कर बड़े विचारविमर्श के बाद देश के लिए एक संविधान तैयार किया था, जो कुछ थोड़े संशोधनों के साथ आज भी लागू है !

भारतीय संबिधान की प्रस्तावना में कहा गया है
हम भारत के लोग, भारत को संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न सामाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को समाजिक, आर्थिक, और राजनैतिक न्याय, विचार अभिव्यक्ति, विश्वाश, धर्म और उपासना की स्वंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा सभी के लिए व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढाने के लिए, द्रढ संकल्प हो कर, एतद द्वारा इस संबिधान को अंगीकृत और आत्मार्पित करते हैं!"

उपरोक्त लक्ष्यों को और भी सपष्ट करते हुए, संविधान के निर्देशक सिद्धांतों में भी कहा गया है:

"राज्य आय की असमानताओं को कम करने का प्रयास करेगा और केवल व्यक्तियों के बीच नहीं बल्कि विभिन्न व्यवसायों में लगे लोगों के बीच भी प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास करेगा, और सभी लोगों के पोषाहार और जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के साथ ही लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपने प्राथमिक कर्तव्य मानेगा |"

भारतीय संविधान के अनुसार किसी भी राज्य के दो प्रमुख कर्तव्य हैं,
१) सभी के लिए न्याय तथा उनके बीच अवसरों और सुविधाओं की समानता सुनिश्चित करना,
२) लोकतंत्र को मजबूत बनाना!

आईये, अब देखते हैं की संबिधान के लागू होने के 60 वर्षों बाद भी संबिधान के लक्ष्यों को प्राप्त करने में हमें कितनी सफलता मिली है?

क्या देश में आर्थिक विषमता कम होने के बजाय, तेजी से बढ़ी नहीं है? किसानो और गैर किसानो के बीच बढती आर्थिक विषमता पर नजर डालें तो पाते हैं की जो आंकड़े आज नजर आते हैं वो निस्संदेह चौंकाने वाले हैं, क्यूंकि 1950-51 में कृषि क्षेत्र की सकल घरेलु उत्पाद में हिस्सेदारी आधे से कुछ अधिक थी, जो आज गिर कर लगभग पांचवा हिस्सा रह गई है,

इसी अनुपात में यदि देश की कुल जनसंख्या में किसानो का प्रतिशत भी गिरा होता तो कोई शिकायत न होती पर तब से लेकर आजतक किसानो की पूरे देश की जनसंख्या में केवल 10-11 प्रतिशत गिरावट आई है, जबकि उनकी आय कुल राष्ट्रीय आय के आधे से गिर कर अब केवल 5वाँ अंश ही रह गई है, नतीजन आज किसानो और गैर किसानो की ओसत आय का अनुपात, जो पहले 1:2 था, आज 1:5 हो गया है,

भारत के संविधान में अलग अलग भूभागों में बसे और अलग अलग व्यवसायों में लगे नागरिकों को समान अवसर और सुविधाएँ सुनिश्चित करने का आदेश दिया था पर उस दिशा में हम आज कोसों पिछड़े हुए हैं, ग्रामीण क्षेत्रो में निरक्षरता दर अभी शहरों की तुलना में लगभग दुगनी है, और गांव में शहरों की तुलना में मृत्यु दर लगभग डेड गुना है, और 1,50,000 से ज्यादा गावं आज भी पक्की सड़कों से नहीं जुड पाऐ हैं, और 1,10,000 से ज्यादा गावं आज भी बिजली और पानी जैसी सुविधाओं को पाने के लिए मोहताज हैं, इन सुविधाओं के अंतर के कारण ही आज भारत दो भागों में बंट गया है, एक शहरी भारत और दूसरा ग्रामीण भारत, शहरी भारत प्रगति और खुशहाली की और बढ़ रहा है तो ग्रामीण भारत अवनति और बदहाली की और,

पिछले दशक में देश का कृषि उत्पादन उस गति से नहीं बढ़ा है जिस गति से देश की जनसंख्या बढ़ी है, (Food & Agriculture Organization) ने भी अपनी रिपोर्ट में लिखा था की “भारत विश्व के उन 17 देशो में से एक है जिसमे कुपोषण घटने की बजाए बढ़ा है,

भारत में खेती और किसानो की दुर्दशा का मूल कारण यह है की जो भी सरकार सतासीन रही उसने किसानो को निचले दर्जे का प्राणी समझा, पहले किसान सामंतवाद के शिकार थे, अब वो नए शासकों की उपेक्षा का शिकार हैं |

किसानो की दशा सुधर सकती थी परन्तु हमारे देश की चोर और लूट्खोर सरकारों ने ‘कृषि एवं सम्बद्ध कार्यक्रमों’ तथा ‘सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण’कार्यों पर व्यय में निरंतर गिरावट करी यानि की नाममात्र सहयता दी, सच तो यह है की भारत सरकार के कुल खर्च में सरकारी कर्मचारियों और तामझाम पर खर्च का अंश निरंतर बढ़ता रहा, इससे साबित होता है भारत सरकार को अपनी और अपने दरबारियों की सुख सुविधाओं को बढाने की अधिक चिंता है, अपेक्षा कि जनसाधारण कि दशा सुधारने की,दूसरी तरफ व्यपार कि शर्तें हमेशा से ही किसानो के प्रतिकूल रही हैं, यद्यपि सरकारें किसानों को यह भरोसा देती हैं कि उन की उपज को न्यूनतम समर्थन मूल्यों पर खरीदकर उन्हें राहत पहुंचाएगी पर देश के 75 प्रतिशत किसानों के लिए ये सरकारी वादा बन कर रह जाता है, अकेले उत्तर प्रदेश में गेंहू और चावल कि पैदावार पंजाब और हरयाना से कहीं अधिक् होती है फिर भी उत्तर प्रदेश में गेंहू और चावल की सरकारी खरीद पंजाब और हरयाना कि तुलना में छठा अंश भी नहीं होती|

तीसरा तथ्य यह है कि कृषि क्षेत्र में पूंजी निवेश का प्रतिशत लगातार गिर रहा है, पर हमारी भ्रष्ट सरकार इस स्थिति को सुधारने के लिए कृषि क्षेत्र में पूंजी निवेश बढाने कि बजाए और कम कर रही है,

आईये अंत में देखें कि भारतीय लोकतंत्र की आज क्या दशा है?
आज के हालातों को देखते हुए कहा जाए तो लोकतंत्र पूरी तरह से खोखला और जर्जर हो चुका है, लोकतंत्र की मूलभूत मान्यता है कि जो भी पार्टी सत्ता में हो उसे देश के मतदाताओं के बहुमत का समर्थन प्राप्त हो पर अपने देश में सत्तासीन होने के लिए केवल सदन के अन्दर सदस्यों का बहुमत जूता लेना ही काफी है, सदन के बाहर मतदाताओं के बहुमत कि आवश्यकता नहीं होती,

चुनाव प्रणाली के अंतर्गत किसी क्षेत्र के जितने उम्मीदवार चाहे खड़े हो सकते हैं, और उन में से जिस किसी को सबसे अधिक वोट मिल जाते हैं वही विजयी घोषित कर दिया जाता है, चाहे उसे कुल पड़े वोटों में से आधे से भी बहुत कम वोट प्राप्त हुए हों, मित्रों दुःख के साथ कह रहा हूँ इसी चुनाव प्रणाली के कारण ही ज्यादातर नेता राष्ट्र कि चिंता छोडकर किसी सम्प्रदाय, जाति, उपजाति के पैरोकार बनकर केवल चुनाव जीतने भर के लिए किसी प्रकार से वोट बटोरने में लगे हुए हैं, देशवासिओं सोचने कि बात यह है कि क्या ऐसे व्यक्ति को जिसे उसके क्षेत्र में पड़े वोटों में से आधे से भी कम का ही समर्थन मिला हो उसे उस क्षेत्र का प्रतिनिधि मानना उचित है?

और जब ऐसे ही चुने गए सदस्यों के गठजोड़ से सरकारें बनती है तब उन्हें भी देश के अधिकाँश मतदाताओं का समर्थन प्राप्त नहीं होता इस तरह से सरकारों का बनना लोकतंत्र कि बुनयादी मान्यता के खिलाफ है,आज जो सरकार केन्द्र में सत्त्सीन है उसका हाल भी ठीक ऐसा ही है, कई दलों को मिलाकर इक्कठा किया है, जिससे निर्माण हुआ UPA सरकार!

मित्रों यह तमाशा पहली बार ही नहीं हुआ है, इससे पहले भी ऐसी सरकारें बनती रही हैं और राज करती रहीं हैं, परन्तु मेरा मत है कि जब तक हमारे देश में ऐसी सरकारें बनती रहेंगी तब तक पार्टियां देशहित, राष्ट्रहित को छोडकर टुकड़े टुकड़ों कि राजनीति में लगीं रहेंगी, जो देश के लिए एक बहुत बड़ा ख़तरा हैं!

दोस्तों आज हमें जागरूक होने की सख्त जरुरत है, परन्तु सिर्फ इसीलिए ही मात्र नहीं कि हम अपने वोट का 100% मतदान करें और किसी पार्टी विशेष का परिवर्तन करें, और सत्ता में दूसरी पार्टी लाकर सत्ता परिवर्तन करें, नहीं इतने कार्य मात्र से नहीं चलेगा क्यूंकि हम और आप आज तक पिछले 64 वर्षों से यही तो कर रहे हैं परन्तु क्या आपकी बुनयादी जरूरतों पर (जिन्हें हमारे संबिधान में दर्शाया गया है) क्या कुछ परिवर्तन हुआ है? मेरे ख्याल से शायद कुछ खास नहीं !

इसीलिए इस बिमारी का अब एक ही इलाज है वो है “व्यवस्था परिवर्तन” तो आज के बाद ये मन में संकल्प ले लो कि अब हम व्यवस्था परविर्तन चाहते हैं और उसी के लिए हम काम करेंगे उसी के लिए ही सोचेंगे मेरा मतलब साफ़ है दोस्तों कि आज से हमें इस वर्तमान चुनाव प्रणाली का परित्याग करना होगा और उस चुनाव प्रणाली को अपनाना होगा जिसमे की व्यवस्था परिवर्तन का समाधान हो, प्रावधान हो|

8 टिप्‍पणियां:

  1. संजय भाई दिल जीत गए आज तो आप...
    भारतीय संविधान की हालत तो आप भी जानते हैं भाईसाहब| इसी भारतीय संविधान के अंतर्गत Indian Independence Act की प्रस्तावना के दो बिंदु इस प्रकार हैं...
    1. Two independent dominions India and Pakistan shall be set up in India.
    2. Both dominions will be completely self governing in their internal affairs, foreign affairs and national security, but the British monarch will continue to be their head of state represented by the Governor General of India and a new Governor General of Pakistan.
    जब भारत कोई स्वतंत्र राष्ट्र है ही नहीं तो इसकी नीति तो विदेशी ही निर्धारित कर रहे हैं|

    किसानों पर वही अत्याचार हो रहे हैं जो अँगरेज़ किया करते थे| १८६० का बना भूमि अधिग्रहण क़ानून आज भी चला आ रहा है|
    किसानों की उन्नति के लिए गुजरात की नरेंद्र मोदी सरकार ने पुराने ढर्रे से हटकर बेहतर प्रयास किये हैं| उन्होंने किसान व बाज़ार के मध्य की मध्यस्थता ही समाप्त करवा दी| इससे किसानों को अपनी फसलों के उचित दाम मिल जाते हैं|
    किसान ऋण के लिए बेहतर सुविधा उपलब्ध है|

    "1,50,000 से ज्यादा गावं आज भी पक्की सड़कों से नहीं जुड पाऐ हैं, और 1,10,000 से ज्यादा गावं आज भी बिजली और पानी जैसी सुविधाओं को पाने के लिए मोहताज हैं"

    अब आप ही देख लीजिये, भारत में करीब 6,50,000 गाँव हैं, जिनमे से इतने गाँव आज भी मुख्या धरा से बहुत दूर हैं| 1,50,000 अथवा 1,10,000 कोई छोटी संख्या नहीं है| यदि आज़ादी(?) के 64 वर्षों बाद भी गाँवों की ये हालत है तो उखाड़ दो ऐसी सरकारों को व कचरे के डब्बे में फेंक दो ऐसे संविधान को, जो भारत की अर्थव्यवस्था के आधार किसान को ही विकसित न कर सके|
    इस विषय पर कुछ सुझाव के रूप में एक लेख समय मिलते ही लिखूंगा|

    बहरहाल एक अच्छे आलेख के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद...

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  2. संजय भाई जरा ब्यास्त्ता के कारण पोस्ट देरी से पढ़ पाया..
    जानकारीयाँ बहुत तथ्यात्मक है और एक गर्त में जाते हुए भविष्य की और इशारा करती है..
    जो खाई बढ़ रही है समाज में उसके ही दुष्परिणाम के रूप में नक्सलवाद और आतंकवाद जैसी सम्सयें उत्त्पन्न हुए और बढती जा रही है...
    लोकतंत्र की चुनाव व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन भी एक मुद्दा है..जिससे की सही लोग व्यवस्था में आये और सबके लिए प्रगतिशील व्यवस्था का निर्माण करे ..
    बहुत सुन्दर आलेख हमे ये चैये की हम कम से कम अपने हिस्से को सुदारें व्यवस्था में परिवर्तन आएगा ही,,

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  3. देश के हालात पर गहन चिंतन, लेख जितना जानकारी युक्त और मुद्दा निहित है, वैसा ही देवेस जी की टिप्पणी है. साधुवाद

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  4. इस संविधान में भी और व्यव्हार में भी सभी नीतियां बड़ी कंपनियों के हिसाब से बन रही हैं , एक फैक्ट्री लामाने के लिए तो एकल खिडकियों की व्यवस्था की जा रही है परन्तु कभी किसान के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गयी , कारें दिल्ली स आगरा तक कम समय में पहुँच जाएँ इस लिए किसानो की जमीन छीन ली गयी , , क्या अमीरों का समय गरीबों के प्राणों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है आज के शासन के लिए या यह शासन व्यवस्था का दोष है ??

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  5. कृषि क्षेत्र की अनदेखी एवं शोषण करके देश का धन बिदेशों की अर्थव्यवस्था में लगाया जा रहा है..और किसान आत्महत्या कर रहा है..
    इस संविधान और इस लोकतंत्र का इससे बड़ा मजाक क्या होगा..निरर्थक होते संविधान और लोकतंत्र की और इंगित करती हुए आप की रचना के लिए धन्यवाद्..

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  6. आँकड़ों के साथ बढ़िया विश्लेषण किया है आपने!

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  7. सबसे पहले मैं सुव्यवस्था सूत्रधार मंच को ह्रदय की गहराइयों से धन्यवाद देता हूँ जिसने इस भारतीय संस्कृति - धरोहर, सामाजिक मूल्यों व भारतीयता के विचारों को सांझा करने वाले मंच पर मेरे लेख को प्रकाशित कर मेरा सम्मान बढ़ाया ! आशा व् उमीद करूँगा कि यह मंच अपनी इस गरिमा को (हम व् आप सब पाठकों व् लेखकों के अमूल्य विचारों से) हमेशा बानाए रखेगा और एक दिन अपने आप में कोई कीर्तिमान स्थापित करेगा, जिसके सम्मान के पात्र आप सभी बंधुगन होंगे !
    @ दिवस भाई आपने मेरे लेख को सराहा और उसके अंतर्गत इस में छूटी कमियों को पूरा किया और कुछ तथ्यों पर ध्यान दिलाया और साथ में एक वादा किया कि समय मिलते ही एक सुझावों भरा लेख लिखोगे, वरह्हाल तब तक इन्तजार करूँगा, परन्तु इन सबके साथ मेरे लेख को सरहाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !
    @ आशुतोष भाई मुझे पता है आप व्यस्त चल रहे हैं, पर फिर भी लेख पर प्रतिक्रिया और सराहना के लिए आपका आभार !
    @गीत जी @ डा० रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी आपका भी बहुत बहुत आभार !

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  8. साथियों,
    जय हिन्द.
    खुशहाल, स्वावलम्बी और शक्तिशाली भारत के निर्माण का एक खाका हमने भी तैयार किया है: http://khushhalbharat.blogspot.com/
    ईति.

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